पति बेचारा हास्य कविता
एक पति जो अपना किस्सा सुनाता है ।
उठते ही सुबह लग जाता हूँ काम पर,
फिर भी न कहती कि थोड़ा तो आराम कर।
धिरे धीरे चाय बनाता कि बर्तन न खड़क जाए
चाय है रेडी, कहकर धीरे से जगाता की कही न भड़क जाए।
कामवाली है छुट्टी पर , समझे
झाड़ू, पोछा बर्तन भी है तुम्हे करना
बिस्तर भी और घर की साफ़ सफाई भी है करना
खाना भी तो है बनाना,
धमकी दी जाती है वरना।
बदल कर चिंटु का डाइपर , उसे भी चुप कराना है,
जल्दी से खाना बना कर देवी जी को भी भोग लगाना है ।
काम है कितना सोच के रो रो के फड़फड़ाता हू,
रोज शाम को पैसे मिलते हैं गिन के,
दो समोसे और चटनी मै लाता हू।
दिल बेचारा रोता है ,
पैसे भी कमाऊ, और घर मे भी खचाऊ,
मायके भी ना जाए कि छोड़ के मै आऊ ,
कुछ दिन तो चैन से बिताऊ।
थोड़ा और किस्सा सुनाता हु ,
सोने से पहले पावं भी दबाता हूँ,
जब देवी जी की आखं लगे तो झट से सो जाता हूँ।।
आओ एक किस्सा सुनाता हूँ,
बेचारे पति की गाथा गाता हूँ।
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