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Showing posts from June, 2022

समाज के पिशाच

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आज समाज भरा पड़ा है  जगह जगह पिशाचों से  नही सुरक्षित देश हमारा दरिंदो नर पिशाचों से !! नही कोई बहु बेटी सुरक्षित  आज इस समाज में  गिद्ध बन झपटने को बैठे  पिशाच हैं कबसे ताक में!! मौका पाते लड़की का अस्मत लूट  उसे जीते जी मार देते हैं  फिर खुद खुली हवा में वो निडर हो  बिचरते रहते हैं!! जब देखो लड़की के साथ जबरदस्ती होती है रहती प्रतिदिन एक निर्भया सड़क पर मरती दिखती है रहती लड़की ने अवहेलना की तो तेजाब मुंह पर फेक देते  उसका जीवन बर्बाद कर नेताओं के आड़ में छिप जाते !! ये देश के नेता भी किसी पिशाच से कम नही वो भी देश को लूटने से कभी बाज आते नही! अपने ओहदे का ये भरपूर लाभ उठाते है  नरभक्षी राक्षस ये औरतों बेटियों  को कहां बख्शते हैं!! दहेज लोभी भी सच पूछो तो समाज के पिशाच हैं होते ? दहेज खातिर ये कुछ भी ,करने से कहां चूकते! आए दिन समाज में बहुओं के साथ अत्याचार के किस्से सुनने में आते उनको घुट घुट कर जीने के लिए, ये हैं बाध्य करते !! कई जगह तो पति भी मां बाप के साथ मिला होता  नई नवेली दुल्हन को तिल तिल करके है तड़पाता! शारीरिक म...

मैं कवियत्री हूँ

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मैं कवियत्री हूँ श्रृंगार सजाती हूँ 🌹🌹🌹🌹 सभी रस भाव छंद बंध लिखती हूँ प्रेम के सभी अनुबंध लिखती हूँ हाँ मैं कवियत्री हूँ श्रृंगार सजाती हूँ 🌹 मै ही ओज हास्य विभत्स और रस सार लिखती हूँ विश्व व्यापक सर्वोच्च अभिसार लिखती हूँ हाँ मैं कवियत्री हूँ अंलकार सजाती हूँ 🌹 मण्डन खण्डन अभिनन्दन में ही रचती हूँ कृष्णा माधव केशव सा चितरंजन रचती हूँ हाँ मैं कवियत्री हूँ शिवात्व सजाती हूँ 🌹 दैवित् निमित्त उद्धत  ब्रह्मत्व  बुनती हूँ आकाश निमित्त प्राणो के श्वास बुनती हूँ हाँ मैं कवियत्री हूँ संसार  सजाती हूँ 🌹 कोमल समता रमता में ही होती हूँ प्राणो से भी प्रिय प्रिया ममता होती हूँ हाँ मैं कवियत्री हूँ मातृत्व सजाती हूँ 🌹 रोली अक्षत दीप मोती ज्योती सी जलती हूँ . बागो की ठण्डी छाव हूँ पलको में सोती  हूँ हाँ मैं कवियत्री हूँ अर्चन सजाती हूँ 🌹 लक्ष्मी दुर्गा काली चन्डी शिव को लिखती हूँ  मन के भीगे अहसासो को सत्य मेव लिखती हूँ हाँ मैं कवियत्री हूँ सौन्दर्य सजाती हूँ 🌹  ईद दीवाली होली कभी  गुरुवाणी सी खिलती हूँ भावो के भीने पोखर में पंकज कभी जलज सी खिलती हूँ हाँ म...

अग्निवीर"(आखिर कब तक)

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             आजादी को 75 साल पूरे होने वाले हैं। सरकार ने कई सपने बुने कुछ पूरे हुए,कुछ अधूरे और कई सपने तो सपने ही रह गए।आख़िर क्यों??? कथनी और करनी सदैव एक सी नहीं होती। जब सरकार युवाहित के भविष्य के लिए कुछ योजनाओं का आगाज करती है तो उसके शुरू होने के पहले ही कहीं कोई छोटी सी चिंगारी, आग भड़काने को तैयार रहती है।एक विनाशकारी ज्वालामुखी की तरह सब तहस-नहस करने के लिए। आखिर कब तक हमारे देश में नवयुवकों को दिग्भ्रमित किया जाएगा। जो जोश व उत्साह अपने मातृभूमि के प्रति समर्पण व अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए होना चाहिए। वही युवावर्ग हिंसात्मक घटना में अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं। किसने भड़काया , किसने चिंगारी सुलगाई इन युवाओं के जेहन में????? इन सबसे परे,  सिर्फ़ हमें अब यही सोचना है कि हम सब सर्वप्रथम भारतीय हैं, जो हमारे हित में है, उसे हम सब मिलकर आगे बढ़ायेंगे , व कामयाब होने की कोशिश करेंगे। तू, तेरा और मैं, मेरा से नहीं......... यह संस्कारों, एकता ,सद्भभावों की भारत भूमि है। यहां सिर्फ और सिर्फ "हम और हमारा" ही होना चाहिए। तभी हमारा भा...

अग्निवीर (सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) (अंतिम भाग)

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(लाइफ स्टोरी ऑफ अलख पांडे)  पांडे अब इतना विश्वसनीय बन चुके थे कि कुछ ही समय में ऐप पर 2 लाख स्टूडेंट आ गए और एप क्रैश हो गई। असंख्य युवा ऐप में एनरॉन कर चुके थे, ऑनलाइन फीस भर चुके थे । इसी बीच पांडे के पास एक ऑफर आया। एक बड़े व्यापारी ने उनकी ऐप का मूल्य  लगाया , मूल्य था 75 करोड़ रुपए । पांडे  चाहते तो उसी समय इतनी धनराशि के मालिक बन सकते थे । लेकिन उन्होंने इस ऑफर को लात मारकर ठुकरा दिया । जैसे कि मैंने शुरुआत में ही कहा कि पांडे का "फिजिक्स वाला" अब 777 करोड़ से ऊपर फंडिंग जुटा चुका है । आज के तारीख में राष्ट्र के सबसे सफल स्टार्टअप में से एक हैं।  आज पांडे रोजगार बांट रहे हैं। फिजिक्स लगभग 19000 लोगों को रोजगार दे रहा है। इनमें टीचर्स, एसोसिएट प्रोफेसर, सब्जेक्ट मैटर, एक्सपर्ट से लेकर टेक्नीशियन आदि शुमार हैं। पांडे अकेले नहीं हैं ,जिन्होंने अपने सपनों का पीछा करते शून्य से  करोड़ों तक का सफर तय किया है। सिर्फ पांडे ही नहीं जो भुखमरी के दौर से उठकर करोड़ों के मालिक बन गए। ऐसे कई उदाहरण हैं । र उन सभी उदाहरणों में एक बात सामान्य है कि उन सभी ने कभी ...

"हे भारत के वीर जवान"

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हे ! भारत के वीर जवान, तुझसे है जिंदा यह हिंदुस्तान पिता तेरा यह खुला आकाश, सरहद की भूमि तेरी मात समान। हे ! भारत के वीर जवान। तेरी रग-रग में बहता लहू दर्प का, ह्रदय तेरा राष्ट्रप्रेम से है भरा, माथे पर चमक रहा सूर्य शौर्य का, भुजाओं में अदम्य साहस है भरा, किन शब्दों से करूं तेरा गुणगान। हे ! भारत के वीर जवान। वंदे मातरम् स्वर के गर्जन से, देश के हर दुश्मन थर्राते, नमन करता उस माटी को माथा, तेरे कदम जहां-जहां तक जाते, तू ही इस मातृभूमि की शान। हे ! भारत के वीर जवान। स्वरचित रचना रंजना लता समस्तीपुर, बिहार

अग्निवीर

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देश की माटी इनका चंदन रक्त प्रवाह इनका नवयौवन रिपु की राह में स्थिर रहते अग्निवीर है यह कहलाते क्या कर लेगा अंधड़ इनका अटल रहे हर झंझावात में देश प्रेम में निशदिन रहते अग्निवीर है यह कहलाते मात पिता का आदर करते भ्रात सखा संग प्रेम भी करते देशप्रेम सर्वोपरि रखते अग्निवीर है ये कहलाते देश भी इनको देता सब कुछ भोजन स्वास्थय सुरक्षित भविष्य आन बान और शान से रहते अग्निवीर है ये कहलाते।                       साधना सिंह                      

समाज के कोढ़ हैं,राक्षस हैं,ये नर पिशाच हैं

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देखो कैसी झेल रहीं हमारी बेटियाँ चारो तरफ है जुल्म। समाज के पिशाचों की बर्बरता औ बुरी नजर का जुल्म। जीवन जीना मुश्किल होगया रस्ता चलना हो गया दूभर। सड़क छाप मजनुओं के मारे जाएं वह कैसे कहाँ किधर। नहीं सुरक्षित जीवन उनका खतरा रहता है आने जाने में। कैसे करें पढ़ाई पूरी अपनी स्कूलों कालेजों में वे जाने पे। मानव भेष में दानवी घृणित सोचों घूरती नजरों से बैचेन। बेटियों को मिलता नहींहै कहीं भी सुख शान्ति और चैन। मानवता की हदें पार कर क्रूरता से इंसानियत हो शर्मिंदा। सभ्य समाज में रहने लायक नहींहैं ऐसे इंसा नहों शर्मिंदा। पहन मुखौटा इंसा के ये राक्षस घूम रहे हैं घर बाहर अंदर। भरी शरारत जेहन में इनके पिशाच बैठाहुआ इनके अंदर। रूप रंग से लगते मानव कृत्य करम दिखते असुरों के जैसे।  मौके की बस तलाश में ही सिरफिरे झपटें नोचें काटें कैसे। मानसिक रूप से बीमार हैं होते यह हैं समाज के पिशाच। दरिन्दगी बहसीपन अमानवीय करम का सरताज पिशाच। निर्भया की पीड़ा भूले भी नहीं लोग मौत की शिकार हुई। हैदराबाद में डॉ. सक्सेना भी दरिन्दों की मौत शिकार हुई। हाथरस में भी घटी घटना है मनीषा पर अत्याचार किया। ऐसे अनजानी कितन...

समाज के पिशाच

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इंसान के भेश में, हैं ये पिशाच। न करते दया किसी पर, न है करते विश्वास।। देखो ज़रा संभल जाओ, कही हो न तुम्हारे आस पास। पहचान नही सकते इनको, ये हो सकते है तुम्हारे खास।। मानवता की कब्र खोदे, ये कातिल कसाई हैं। हो सकते है ये कोई ग्राहक, जिसने प्यास खून से बुझाई है।। ये नही छोड़ते किसी कीमत पर, ये तो अंधे व्यापारी हैं। ये मांस नोचते फिरते है, इन्होंने कसम शैतान की खाई है।। ये बन के रिश्तेदार, पड़ोसी, तुमसे जोल बढ़ाते हैं। फिर नफरत के खंजर लेकर, तुम्हारी बली चढ़ाते हैं।। ये किसी की टांग चीरते, अंगों की करते कटाई हैं। रोज़ी रोटी फूँक डालते, दंगो की करते अगुवाई हैं।। ये झट से गायब हो जाते, न खोज इनकी हो पाई है। आंख मूंदे कानून है बैठा, तो सबकी शामत आई है।। सारेआम ये बंदूक उठाते, पत्थरों की बारिश आई है। नही बख्शते बच्चे बूढे, औरत की इज़्ज़त लुटाई है।। ~राधिका सोलंकी (गाज़ियाबाद)

अग्निवीर (सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग -५

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(लाइफ स्टोरी ऑफ अलख पांडे)  अमन की बातों को सुन वह व्यक्ति मुस्कुराने लगता है। वह समझ जाता है की ये लड़का अंदर ही अंदर टूट चुका है , किंतु अभी भी उसके अंदर सैनिक बनने का जज्बा है। फिर वह उमार्दराज व्यक्ति अमन से कहता है -  अलख पांडे !  नाम सुना है ....नहीं सुना? फिजिक्स वाला .....नाम सुना है ...शायद सुना होगा ।  क्योंकि पांडे जी द्वारा स्थापित फिजिक्स वाला स्टार्टअप लगभग 100 मिलियन डॉलर की फंडिंग यानी 770 करोड रुपए जुटा चुकी है।  दोहरा रहा हूँ......777 करोड़  पांडे छठी कक्षा में थे । घर की आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पांडे के पिता को उनका पुश्तैनी मकान बेचना पड़ा। पूरा परिवार सड़क पर आ गया। पांडे पढ़ाई में अब्बल थे ,और जिम्मेवार भी ।आठवीं कक्षा में पांडे छठी कक्षा के बच्चों को जीवन यापन हेतु ट्यूशन पढ़ा रहे थे इसलिए पढ़ा रहे थे कि दो वक्त की रोटी के इंतजाम में कुछ योगदान उनका भी हो।  पांडे आठवीं में ही मास्टर जी बन चुके थे । स्कूल से लेकर कॉलेज तक पांडे जी बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर जीवन यापन करते थे। फिजिक्स में उनका ऐसा इंटरेस्ट बैठा कि उन्ह...

पिशाचों की जंग नरपिशाचों से

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  जंगल के इस हिस्से में पिशाचों की बस्ती बनी हुई थी। अनेकों पीपल और बरगद के पेड़ थे। जिनपर पिशाच रहते थे। रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्यों के साथ साथ पिशाचों की भी मूल जरुरत है।     पर मनुष्यों से अलग वे केवल अपनी जरूरतों से ही खुश रहते। भरे पेट पर किसी से कुछ न कहते। जगह की कमी होने पर शाखाएं भी बांट लेते। भोजन तो बांटते ही थे।    पिशाचों का भोजन क्या। सुना जाता है कि पिशाच खून के शौकीन होते हैं। ये भी खून के शौकीन थे। पर नरपिशाचों के खून के।    रात अंधेरी होते होते पिशाचों की टोली शिकार करने निकलती। जंगल में अनेकों जानवर थे। पर इन पिशाचों की जीभ पर तो नरपिशाचों का खून लग चुका था। जैसे किंग कोबरा का भोजन दूसरे सर्प हैं। उसी तरह इनकी मुख्य खुराक नरपिशाच थे।   " चाचा। दो दिन हो गये। पेट में कुछ भी नहीं गया। अब कुछ करना होगा।"   एक नये पिशाच ने अपने सरदार से कहा।   पिशाचों का सरदार गंजे सिर बाला, बड़ा़ दुबला पतला सा पर नरपिशाचों के लिये निर्दयी था। जब वह जिंदा था तो बड़ा शरीफ आदमी था। ठाकुर के आदमियों ने उसके बाप को मारा। उसकी बहन की इज्ज...

🌵🌻समाज के पिशाच🌻🌵

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🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵🌻🌵 कहने को तो अब वक़्त बदल रहे है दुनियादारी के नाम चलन बदल रहे है फिर भी बदलते नहीं सोच भेडियो की समाज के पिशाच बने सरेआम घूम रहे है लड़कियों की नज़र उठ जाये तो खैर नहीं हर कदम पर लाखो हिदायते मिल रहे है पर उनका क्या जो अपनी गंधी नज़रे लिए चलते राह में भी बहन बेटियों को देख रहे है क्यों लड़की ही बदनामी के खाते में आए किस लिए समाज इन्हे ये दाग़ देते आरहे है क्यों नहीं बंद करते ऊन औलादो को अपने जो आए दिन किसीके ज़िन्दगी बर्बाद कर रहे है लाख मना करने पर भी नहीं सुनते बात कभी दिल के बहाने हर दिन ज़ज़्बातो से खेल रहे है जो मान गयीं लड़की तो तोड़ जाते है इस कदर की अब हर साँस पे मौत की इंतजार कर रहे है दुनिया में हर किसीका परिवार ख़ास होते है हर कोई अपने शख्सियत की मिसाल दे रहे है फिर क्यों नहीं सोचते ऊन परिवारों की तकलीफ जो घुट घुट कर पल पल ज़िन्दगी की काट रहे है अपनी बच्ची को खरोच भी लगे तो गँवारा नहीं पर दूसरे की बेटियों को जिन्दा जलाये जा रहे है शगुन के नाम पर चाहिए इन्हे करोड़ो की दौलत क्यों बेटियों के स्वगुणो को नज़रअंदाज़ कर रहे है दुनिया के कुछ खोखली स...

अग्निवीर को समर्पित

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प्रजंडता के शिखर पर, हिम नदी बहा रहा ... धधक रही लौ मशाल वो जला रहा ...। नायक ,अग्निवीर का ऋतुराज आव्हान कर रहा .. बासंतिक, सौंदर्य का वसन पीत हरा- भरा..! पंछियों का कलरव दिशा को चहका रहा .. जाति -धर्म से परे बिगुल गुंजन कर रहा..। देश की माटी का श्रृंगार चंदन नित सजा रहा .. प्रात: ,तेज़ से तन कुंदन -कुंदन निखर रहा ..! प्रज्वलित ,लगन का गीत -गीत गा रहा .. नौनिहाल ,ध्वजा को शौर्य से लहरा रहा..! घट ले ,नभ से आस की बौछार भिगा रहा.. सर्वोपरि ,देश हित शीर्ष पर रख रहा ..! ये, अग्निवीर का चक्र अग्निपथ पर चल रहा.. लाखों ,युवकों का कौशल बिंदु चमक रहा ..! पाताल,धरा,जल ,अग्नि ,वायु अस्त्र का जल जला .. देश की रक्षा करने का प्रण बना रहा ..! अम्बर, पर गण सुदूर टिमटिमा रहा ... कर्मयोग, के चक्षुओं से धर्म निभा रहा ..! काल आया जो बैरी ज्वाला बुझा रहा.. भयभीत बैठ वो अब थर- थर कांप रहा ..! सौगंध मातृभूमि की प्राणों से निभा रहा.. सुप्त भाग्य की विडंबना को जगा रहा ..! (✍️स्वरचित काव्य) दिनांक: ३०/६/२०२२ समय : ३ (शाम) शहर : लखनऊ  सुनंदा असवाल

"हे! देश के अग्निवीरों"

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कहां जा रहे हो, हे देश के अग्निवीरों, तनिक ठहरो! और झांकों अपने अंतर्मन में, तुम्हीं हो शक्ति पुंज, इस राष्ट्र के निर्माण के, फिर क्यों भटक रहे हो, पतित गलियों में। यह देश देख रहा है अब तुम्हारी तरफ, तुम ही बनोगे आजाद, शेखर और भगत, जागो, आगे बढ़ो, बनो देश का संबल, फिर क्यों सो रहे हो, अब तक चिरनिद्रा में। देश के निर्माता हो, विनाश तेरा कार्य नहीं, मातृभूमि का गौरव बनो, राह भूला राही नहीं, राम, कृष्ण, बुद्ध की भूमि के हे वीर सपूतों, फिर क्यों भूल रहे हो खुद को पहचानने में। तुम चाहो तो मोड़ दो धारा नदी का, लड़ो आलस दंभ से विवेकानंद हो इस सदी का, हां, तुम कर सकते हो भारत का नवनिर्माण, फिर क्यों उलझ रहे हो, व्यर्थ की बातों में। उखाड़ फेंको उस चौसर को,  जो भविष्य दांव पर लगाती है, रुख मोड़ दो उस हवा का, जो साथ बहा ले जाती है, सही दिशा दो उर्जा को, कि फैले चहूं ओर सुरभि, फिर क्यूं जला रहे हो खुद को, अंगार लिये हाथों में। स्वरचित रचना रंजना लता समस्तीपुर, बिहार

अग्निपथ

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सरकार ने राष्ट्र हित हेतु एक नयी मुहिम चलाई युवा देशसेवा में आये सोच  एक अग्निपथ योजना लाई। बेरोजगारों को भी कुछ रोज़गार मिल जाये तत्पर युवा देश के लिए  अग्निवीर बन आगे आये। आज का युवा वर्ग कहाँ समझें कब अपनी भलाई दिग्भ्रमित हो कर बस पहचाने हिंसा औऱ लड़ाई। आक्रोश के स्वर बुलंद कर घूम रहा सड़कों पर  पथ से भटका मंजिल अपनी ढूढ़े रस्तों पर। शिक्षित होकर भी यह देश का हित न जाने उपद्रव और आगजनी को जन आंदोलन माने। अन्याय का विरोध करने यह किसी भी हद तक जाये बेकसूरों को क्यों यह बेमतलब नुकसान पहुचाये। भारतीय लोकतंत्र में न्याय की जब भी मांग करे सत्य औऱ अहिंसा के मार्ग पर ही अडिग रहे। ऐसे उत्पात से सोचो अहित सभी का होगा बिगड़ेगे हालात औऱ जनता को भरना होगा। अग्नि जो तुम्हारे अंतस में प्रज्जवलित हो रही वीर योद्धा होने की गर अनुभूति भी हो रही। अग्निपथ की राहों पर साहसी बन डट जाओ अग्निवीर बन देश को समर्पित देह प्राण कर जाओ। हे! शूरवीर माँ भारती के मस्तक को अपने कर्मों से न झुकाओ सच्चे योद्धा राष्ट्र निर्माण में भारतीय होने का फर्ज़ निभाओ। स्वरचित एवं मौलिक शैली भागवत "आस" इंदौर (म. प...

अग्निपथ की राह में अग्निवीर।

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भारत सरकार ने सेना में युवाओं की भर्ती के लिए 14 जून 2022 को अग्निपथ योजना लागू की है।इस योजना के आते ही पूरे देश में विरोध शुरू हो गया। आखिर क्या है ?ये अग्निपथ योजना ,जिसके विरोध में भावी अग्निवीरों ने राष्ट्रीय संपत्ति को अग्नि के हवाले कर दिया। इससे क्या साबित होता है ,जिसे अपने देश की परवाह नहीं वो खाक देश सेवा करेगा। आइए पहले जानते हैं क्या है ये अग्निपथ योजना _ _अग्निपथ योजना में सरकार युवाओं को 4 साल तक सेना के तीनों अंगों में से एक में सेवा का अवसर प्रदान कर रही है। _ इसमें भर्ती की उम्र 17.5 साल से 21 साल की है। 6 महीने की कड़ी ट्रेनिंग देकर इन्हें अग्निवीर बनाया जाएगा। _भर्ती की योग्यता_मेरिट बेसिस पर,कक्षा 10  से 12 तक के युवा। वेतन_ 30 हजार से 40 हजार तक के बीच होगा।  _यह भर्ती अधिकारी रैंक से नीचे के रैंक के  लिए होगी। _चार साल बाद सेवाकाल में प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन कर 25% युवाओं को आगे की सेवा के लिए नियमित किया जाएगा।  _सेवाकाल में बीमा का भी लाभ दिया जाएगा,मृत्यु,विकलांगता सभी के लिए अलग अलग बीमा की राशि प्रदान की जायेगी। क्यों है विरो...

अग्निवीर

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आजकल सरकार की अग्निपथ नामक योजना  जिधर देखो चर्चा का विषय बना हुआ है ! सरकार की इस अग्निपथ योजना के खिलाफ कई विरोधी पार्टी मोर्चा खड़ा कर रही है ,सड़को पर नारे लग रहे हैं किंतु मैं तो कहती हूं  इस योजना को समझने की जरूरत है !इसे सफल बनाने में आगे कदम बढ़ाओ ये राष्ट्र हित के लिए सफल सिद्ध होगा ! आइए जानते है कि ये योजना क्या है ! सरकार द्वारा बनाई गई इस योजना को अग्निपथ का नाम दिया गया है !इस पथ पर जो भी चलेगा वो अग्निविर कहलाएगा! इसमे भारत के तीनो सेनाओं  थल सेना, नौसेना ,वायुसेना में इच्छुक सैनिकों की चार वर्ष की अवधि के लिए भर्ती की  अनुमति दी जाएगी ! और इन सेनाओं को अग्नि वीर नाम से संबोधित किया जाएगा! इनको बकायदे प्रशिक्षित किया जाएगा और वो सामान्य सेना की भांति ही देश की सेवा में सदा तत्पर रहेंगे ! चार साल की अवधि पूरा होने पर इनको 11.71 लाख रुपए का भुगतान एकसाथ किया जाएगा ! इनका 48 लाख का जीवन बीमा  कवर  भी मिलेगा! हर साल  ४५,०००से ५०,००० तक लोगो  की भर्ती होगी!इनमे से मात्र 25%=को ही  चार साल बाद पुनः 15साल के लिए भर्ती किया जा...

समाज के पिशाच

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न्याय है कहाँ।जिस तरह से हमारे देश मे एक के बाद एक बेटियो पर जुल्म हो रहे है । उनकी सुरक्षा पर प्रश्न उठ रहे हैं।हम यह सोचने पर विवश है कि हमारी बेटियां  सुरक्षित खान है । जो लोग लड़कियो  के साथ अमानवीय कृत्य करते हैं यह समाज के उन पिशाच की तरह हैं जिन्होंने  सभ्य मनुष्य का  मुखौटा पहना हुआ है लेकिन कृत्य उनके पिशाच की ही तरह हैं ।बेशक उनके लंबे लंबे दांत और नाखून नही हैं लेकिन उनकी सोच इतनी घृणित है कि बुराई भी इनके आगे कम पड़ जाती है। वह मानसिक रूप से बीमार है ।उन्हें किसी तरह की सजा का भी कोई भय नही है।और न ही उनके हाथ कांपते है ।इनकी आंखे एक लड़की को  देखते ही ऐसे घूरती है कि उसका  एक्स रा कर रहीं हों। बिना नाखून और लम्बे लम्बे दांतो के ही आंखो से ही उसके शरीर का सारा खून पी जाते हैं। ऐसे दरिंदे समाज में निर्भय हो घूमते रहते हैं। ना तो उन्हे सजा का भय है और नही समाज का। ।पहलेनिर्भया के साथ दरिंदगी की।उसे न्याय मिलने मे इतना समय लगा कि दरिंदो के मन से मौत का ख़ौफ़ ही चला गया। उन लोगो ने यह सोच लिया कि कोई हमारा कुछ नही बिगड़ सकता। अभी पिछले साल हैदरा...

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४

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कुछ समय बाद अमन जगता है तो उसकी नजर दीवार पर टंगी हुई घडी पर पड़ती है जिसमें ८ बज रहा होता है। समय देखकर उसे राहत महसूस होती है, की "कल जो भी उसके मित्र गण बोल रहे थे वह ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे , अगर ऐसा करना होता तो वह उसे अपने आंदोलन में शामिल होने को जरूर कहतें।  दूसरी तरफ अमन के सभी मित्र और  गाँव के बहुत से लडके जिन्हें सैनिक में नहीं जाना था, वह भी इनलोगों के साथ मिलकर ट्रेनों, बसों, ट्रक इत्यादि यहाँ तक की बहुत से पब्लिक कारों तक को आग लगा देते हैं। करण अमन को वहाँ न देखकर कुछ लड़कों के साथ उसके घर आ जाता है और अमन को आंदोलन में शामिल होने को कहता है। अमन और सीमा (अमन की माँ) के लाख मना करने पर भी वह नहीं मानता है। आखिरकार अमन को आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए जाना ही पड़ता है।  अमन बचपन में ही ये संकल्प लिया होता है की परिस्थिति चाहे जैसी भी हो वह कभी अपने देश का अहित नहीं करेगा। वह अपने बल का प्रयोग सदा देश हित के लिये ही करेगा।ट्रेनों, बसों में आग लग जाने के कारण बहुत से यात्री वहीं बैठे घर जाने की प्रतिक्षा कर रहे होते हैं।  वहाँ पहुँचते ही अमन भीड़ म...

'वीर सैनिक'

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मातृ भूमि का सपूत, शत्रु का वो कालदूत, लिए प्राण हार सूत, वायु पे सवार है। स्वर में ऐसी तान है, विजय गीत गान है, दूर तक उड़ान है, वार को तैयार है तन में भारी जोश है, रण का जय घोष है,        रिपु के लिए रोष है,चेतना अगार है। रुधिर में उबाल है, तेज तुरंग चाल है, वक्ष बहु विशाल है, शत्रु जार जार है। धार हृदय धीर है, कांधे पर तुणीर है,  सपूत माँ का वीर है, उगता विचार है। चमचमाता भाल है,सीमा पर वो ढाल है, अरि के लिए जाल है,दृष्टि आरपार है। तिरंगा आन बान है, प्रेम रस वितान है, काम हर महान है, देश की कटार है। देश प्रेम की लगन, वीर तुझे है नमन, वैरि का करे दहन, तेरी जय कार है। कवयित्री- गोदाम्बरी नेगी (हरिद्वार उत्तराखंड)

फौजी पिता का सपना

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    डाक्टरी की पढाई पूरी करके रोशनी की नौकरी एक बहुत अच्छे अस्पताल में लग गयी। न जाने कितने साल पढाई में लङकी ने खपा दिये। पहले एम बी बी एस किया। बहुत अच्छे से उत्तीर्ण हुई। फिर भी पढाई बंद नहीं हुई। खाली एम बी बी एस से मन नहीं भरा। तो मास्टर की डिग्री भी प्राप्त की। खेलने खाने के दिन पढाई और पढाई को अर्पित कर दिये। अभी तक रोशनी के लिये न कोई दिन था और न कोई रात।     रोशनी की इस सफलता में उसकी मम्मी, दादी और बहुत हद तक उसके पिता का भी हाथ था। पर एक मृतक व्यक्ति का अपनी बेटी की सफलता में भला क्या हाथ हो सकता है। आप भी दूसरों की तरह लेखक की मानसिक स्थिति पर संदेह कर सकते हैं। पर लेखक केवल वही लिख रहा है तो घर की तीनों स्त्रियां मानती आयीं हैं। आज तक रोशनी को उसकी हर सफलता पर उसे उसके पिता से आशीर्वाद दिलाया जाता था। जिन्हें रोशनी ने केवल चित्र में देखा था।     "अरी छोरी । बहादुर से आशीर्वाद लेकर काम पर जाइयो। जी नाहे कि बैसे ही चली जाये। पहली दफा काम पे जा रही है।"     "बिलकुल दादी। पापा को हाय बोले बिना मैं तो घर से भी नहीं निकलती...

बारिश की बूंदे

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नभ में काली- काली बदरा छा जाती है प्रेम का राग छेड़कर मधुर गीत सुनाती हैं। बारिश की बूंदे,,,,,,,,,,,, अठखेलियाँ करके जिया ललचाती है छन,,,, से गिरकर तपती वसुधा को ठंडक पहुंचाती है। बारिश की बूँदे,,,,,,,,,, प्रकृति को हरीतिमा कर सुंदरम बना जाती है बारिश की टपकती बूंदों का स्पर्श पाकर पेड़ -पौधे लहलहा उठते है बारिश की बूंदे बरसकर,,,,,,  प्रेयसी को प्रीतम की याद दिलाती है। बारिश की बूँदे,,,,,,,,,,,  की संगीतमय तान सुनकर  कोयल मल्हारती हुए मीठे गीत गाती है मयूरी की पांँव थिरकने लग जाते है। बारिश की बूंदे,,,,,,,,,,, ऊमस भरी गर्मी से राहत दिलाती है। बारिश के बूंदे,,,,,,,,,,,,,, धरती पर बरसाकर नदीयाँ उफान खाकर बलखाती, इठलाती हैं। बारिश की बूँदे ,,,,,,,,,,,,,,,,, को पाकर बच्चे बूढे सब मग्न हो जाते गढो में पानी भरने पर बच्चे  छईछपाछई करते हुए कागज की नाव चलाते है। बारिश की बूँदे,,,,,,,,,,,,,,, सतरंगी धनुष बनाकर नभ पर अपनी छटा बिखरते है। शिल्पा मोदी ✍️✍️

अग्निवीर

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 पापा- पापा एक अंकल आए थे लिफाफा दे गए हैं कह रहे थे इस बार स्वतंत्रता दिवस पर सरकार अग्नि वीरों को सम्मानित करेगी ।क्या आप अग्निवीर हैं ?यह क्या होते हैं ?7 वर्ष के बेटे के इस सवाल पर राकेश अतीत में खो गया ।12वीं में 85% अंक हासिल करके जब वह कॉलेज पहुंचा तब नए नए मित्र, नया माहौल ,नया खुला पन पचा नहीं पाया और बुरी संगति में पडकर आवारा हो गया ,घरवालों के बस में ना रहा ,नशे का आदि भी हो गया और फिर पैसों के लिए नित नई अपराध करने लगा ।पिता का साया सिर से उठ गया ,मां की परेशानियों से उसे कोई सरोकार न रहा पर मां तो आखिर मां थी येन केन प्रकारेण उसे अग्निपथ योजना के तहत अग्निवीर बनाने का निर्णय लिया। घर से बहुत दूर ट्रेनिंग के लिए भेज दिया अफसरों को कह दिया यह कभी लौट ना पाए विशेष ध्यान रखियेगा। फिर क्या था कड़े प्रशिक्षण के बीच राकेश का विशेष ध्यान रखा गया ।जब वहां से छूटने के सारे प्रयास असफल हो गए तो सोचा जो कर रहा हूं मन से ही कर लूं। धीरे-धीरे वहां के अनुशासन और वातावरण ने उसे पक्का राष्ट्रभक्त बना दिया ।4 साल देश को सेवाएं देने के बाद जब वापस आया तो खाते में एक सम्मानित राशि...

पुनर्विवाह - प्यार कि एक नयी शुरूआत ( अंतिम भाग )

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रविश प्यार से स्वाति का चेहरा देख रहे होते हैं । स्वाति सबके बीच रविश को इस तरह देखता पाकर शरमा जाती है । और आंखें नीचे कर तेजी से अपने रूम में चली जाती हैं । कुछ देर बाद रविश भी स्वाति  के पीछे रुम में जाते हैं । जहां स्वाति अपने रूम में बने खिड़की की तरफ मुंह करके सिर झुकाए खड़ी थी । रविश पीछे से आकर , स्वाति के कान में धीरे से कहते हैं - आप वहां से ऐसे क्यूं चली आई !  स्वाति जो अब तक खिड़की को निहारे खड़ी थी । अचानक से रविश की तरफ मुड़कर कहती हैं - आपके कारण ‌!  रविश अनजान बनते हुए - मेरे कारण ! वो कैसे !  स्वाति - अब ये भी मैं ही बताऊं !  रविश - बिल्कुल आप बताएंगी ! मैंने किया क्या है कि आप इस तरह से वहां से भाग आयी ! स्वाति को अपनी बाहों के घेरे में लेते हुए ...हम तो बस अपनी खूबसूरत सी बीवी को देख रहे थे । अब इसमें हमें  किसी तरह की कोई गलती नहीं दिखती ! ( स्वाति को अपने सामने लाते हुए ) अगर आप को ये ग़लत लगता है , तो बात अलग है ।  स्वाति - मैंने ऐसा कब कहा ! रविश - वैसे मानना पड़ेगा आपको , मैंने कभी सोचा नहीं था कि आप रिचा को ऐसे हैंडल कर...

" मन चितेरी बारिश की बूँदें "

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ये बारिश की बूँदें, बरखा का पानी,जाको कोउ नहीं है सानी। मोरा मन चितवत चहुँओर, कहाँ गयो चितचोर। बरसा बरस रही चहुँओर। घन गरजत हरषत मोरा जियरा, नाचत बन में मोर। पिहु-पिहु जो रटत पपीहा,देखत घन की ओर,  हँसत-हँसावत श्याम हमारे, श्यामल परम मनोहर मनहर, प्रीतम नंद किशोर। दादुर की टर्र टें सुनि-सुनि,  कोकिल मधुर तान से कूके, पंख पसार मयूर जो नाचे, रुनझुन मयूरी दौरी आवे, किशन कन्हैया, राधे प्यारे  लेते मन चित चोर। बिजरी चमकत हे गिरधारी,  बीती पल-पल रैना सारी। तू मन मोहन आराध्य जो मेरा,  मैं तेरी गणगौर। गौरांगिनी राधिका प्यारी,  सुखी संत महिमा लखि भारी। सुषमा भजन करै, होकर प्रेम विभोर। आई हैं बारिश की बूँदें,  पावस ऋतु को शोर, निकल गई तपिश, अंग से,  मिली जो शीतल कोर।      रचयिता- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक भाव, सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

🌹🌧️बारिश की बुँदे🌧️🌹

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🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹🌧️🌹 कब से छुपा रखे थे हम राज़ जो दिल में हर भेद खोल रहा ये बरसती बारिश की बुँदे धुन कयी छेड़ गया ये बारिश की रिमझिम साँसो में नशा घोल रहा हैं यूँ बरस बरस के हवाओ के साथ उड़ता आया बहकता मदहोशी में सिमटे ये घने बादल कहीं से छागया दिल के आसमान पे इस कदर की  बस में नहीं रहा हमारी धड़कन दिल के क्यों इतना बेकरार हैं ये हवा क्या जाने एक अहसास लिए गुज़रा अभी यही से अजब हाल होजाता हैं इस दिल का भी जब छूकर गुज़रता हैं दिल को मदहोसी से जाने क्यों इतना छेड़खानी करने लगे हमसे  खन खन करती कंगन व ये बलखाती झुमके कलतक तो नहीं थे हम ऐसे दीवानी उनके आजकल धड़कन भी थमती हैं मुश्किल से कल भी हमें बेकरार करता था इश्क़ उनकी हर रोज़ गुज़रते हैं वो हमारे दिल के गली से फिर भी कभी कहते नहीं वो हाले दिल अपनी जिसका इंतजार हैं हमें इश्क़ में बड़े बेसब्री से ए बांवरा बादल ज़रा थम के पिघला कर डरने लगा हैं दिल तेरे इस तरह दिल्लगी से  लाख कोशिश कर तू हमें पिघला ना पायेगा अच्छी तरह वाकिफ हैं हम तेरे इस दीवानगी से इस तरह गुस्ताखी ना किया कर ए हवा तू भी कहाँ तक उड़ा ...

" रिश्तो की डोर "

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" रिश्ते " जो हमें एक डोर की तरह आपस में बांध कर रखते हैं । रिश्ते जो हमारे अंदर जज्बात पैदा करते हैं और हमें जोड़ कर रखते हैं । हमारे जिंदगी को बेहतर बनाते हैं आगे बढ़ने में सहायता करते हैं पर शायद आज रिश्तो के मायने बदलते जा रहे हैं ।      चाहे कोई भी रिश्ता हो टूटा हो या छुटा हो एक बार गांठ पड़ जाए तो फिर से नहीं जुड़ती है । रिश्ते कांच की तरह नाजुक होते हैं अगर यह समझ गये तो जीवन खुशियों से भर देते हैं नहीं तो जीवन भर चुभते हैं । रिश्तो में निखार लाने के लिए हमें खुद को भी बदलना चाहिए। बेवजह नाराजगी से रिश्ते बिखर जाते हैं वक्त रहते संभल गए तो जीवन सफल हो जाते हैं । मंजू  रात्रे (कर्नाटक )

बारिश की बूंदे

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अक्सर मुझे भिगो के चली जातीं हैं, बारिश की बूंदों की तरह तुम्हारी यादें, हमें भी अच्छा लगता है, उसमे भीगना,भीग कर खुद को भूल जाना, तुम एक प्यारा सा बादल हो, हां तुम एक बादल हो, जो हवा की झोंके से मेरे ज़िंदगी में आए हो, हर वक्त बारिश बनकर मुझे भिगाते हो, इतना भिगाते हो की खुद को भूलने को,  मजबूर कर देते हो, तुम्हारे साथ ये नशीली रात, धीमी हवा, ये बारिश की बूंदे बहुत अच्छी लगती हैं, अच्छी लगती हैं महकती फूलों की खुशबू, बहते पानी की आवाज़, अच्छा लगता हैं चांद का शर्माना, अच्छा लगता हैं मेरी ज़ुल्फों में तुम्हारा हाथ चलाना, अच्छा लगता है तुम्हारे साथ बारिश में भीगना, अच्छा लगता है बारिश के साथ तुम्हारी आंखों में खो जाना, अच्छा लगता है एक अनसुनी धुन में गुनगुनाना, ये वक्त ढलता जा रहा है, देखो ना जान, बारिश भी शायद थमने वाली है, चलो ना थोड़ा और भीग जाते हैं, एक दूसरे में थोड़ा और खो जाते हैं, ये बारिश के बूंदे शायद हमें बुला रहे हैं, जी भर के हमें भिगोना चाहती हैं, चलो ना थोड़ा और भीग जाते हैं, इन बूंदों के साथ थोड़ा और यादें समेट लेते हैं, चलो ना जान, थोड़ा और भीग जाते हैं, थो...

अग्निवीर

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हे अग्नि वीर  तुम कर्मवीर काटते शत्रुओं के तुम हो तीर पीछे मुड़ के न देख वीर  दुश्मन के छाती को दो चीर !! देश के तुम आस हो  हम सबके तुम  विश्वास हो न डिगना कर्तव्य पथ से तुम देश हेतु  सबसे खास हो!! देश के कर्णधार तुम  जीवन के आधार तुम मां भारती के तुम सपूत मानो विधाता के तुम हो दूत !! तैनात रहते हो सदा  मंशा तुम्हारी  देश हित  छक्के छुड़ा दुश्मन के तुम    देश को दिया हैअद्भुत जीत!! करते न्योछावर जान तुम  शांति अमन के लिए अपने सुखों को भूल कर  हमारे खुशी खातिर जिए !!

बारिश की बूंदों से वर्षा का आनंद

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इंद्रदेव की कृपा से,वर्षा का मौसम आया। छाता छतरी रेनकोट,भी बारिश ले आया। मास जेठ का जाते ही,आषाढ़ शुरू होता। वर्षाऋतु भी कहें इसे,बारिश खूब है होता। बारिश के मौसम में,ये बादल बरसात करें। नाचे मन का मोर भी,पक्षी भी कलरव करें। मंद-2 वर्षा फुहारों से,मन होये भाव विभोर। जंगल में नाचे है मोरनी, संग ही नाचे है मोर।  चहुँओर दिखे हरियाली,खिले फूल हैं डाली। पपीहे की टेर लगे प्यारी,कोयल कूके डाली। रिमझिम-2 बरसे पानी,शीतल बहती बयार। प्रेमी दीवानों का उमड़ता,एक दूजे का प्यार। उमड़ घुमड़ बादल बरसे,टर्र टर्र मेढ़क बोले। बिजली तड़के बादल गरजे,झींगुर भी बोले। वन उपवन खिल जाये,झरना संगीत सुनाये। कल-2 करती नदियाँ, अविरल बहती जाये। बच्चे उछलें पानी में,कागज की नाव चलायें। खेतों में जायें किसान,स्वयं हल बैल चलायें। काले भूरे सफ़ेद बादल,आषाढ़ी बरसात करे। तपती गर्मी से छुटकारा, वर्षा अकस्मात करे। आषाढ़ के बादल बरसें,धरती की प्यास बुझे। बदली छा काली घटा, बरसे अच्छा लगे मुझे। बारिश में बैठे-2,गर्म पकौड़ी चाय पियें खायें। लूडो चेस कैरम  खेलें, वर्षा का आनंद उठायें। रचयिता : डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव वरिष...

बारिश की बूंदें

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बारिश की वो पहली फुहार, लायी है सावन की बहार। हर कली खिल आई है, डाल डाल मुस्काई है।। बागों में रौनक लाई है, खेतों की फसल लहराई है। हर दिल बच्चा बन के झूमे, देखो बारिश आई है।। बारिश की इन बूंदों से, अंग अंग खिल जाए है। मोर नाचे पंख फैलाये, मोरनी गीत सुनाय है।। इन्द्रधनुष चमके गगन में, धरती की प्यास बुझाय है। ये बचपन लेकर आई है, कागज़ की नाव बनाई है।। पीपल पे झूले है पड़ गए, ऐसी मस्ती छाई है। अमीया जामुन रसभरी, वो बूढ़ी अम्मा लाई है।। देखो बारिश आई है! सबका मन हरषाई है!! ~राधिका सोलंकी (गाज़ियाबाद)

ये बारिश की बूँदे

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ये बारिश की बूँदे लिख रही थी एक अनोखी दास्तां हो रहे थे एक हम ज़ब मिलती हो बूँदे जमीँ से  खोकर अपना अस्तित्व जैसे सहरा सहरा हो रहे थे हम तुम्हारे रूह तुझमें समाती जा रही थी बिजली की कड़कती आवाज़ से तुझमें सिमटती जा रही थी, ये बारिश की बूंदें तन मन बहका रही थी  बादलो की गर्दिश आसमान में गहरा रही थी, मोहब्बत की अनोखी दास्तां ये रात लिख रही थी  हुई सुबह, हुआ नया सवेरा खामोश था समॉ सुहाना ना तुम थे ना वो रात थी, सोचा तो बस वो एक ख्वाब था ख्वाब भी कितना हसीन था जिसमें तू मेरे करीब था सूरज की रौशनी नई कहानी लिख रही थी जम के बरसा था बादल रात इंद्रधनुष की जुबानी बयां हो रही थी आये थे तुम या था ख्वाब सवाल यही रूह कर रही थी....... 🌹 निकेता पाहुजा ✍️

बारिश की बूंदें

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नभ में चमकी चंचल चपला, उमड़ घुमड़ कर बरसे बादल। श्याम घटा छाई अम्बर में, रिमझिम बरसा बर्षा का जल। मिट्टी ने छोड़ी सौंधी खुशबू, हरिताभ हो उठी फसलें झूमी। शीतल, मन्द,सुगन्ध मलय संग, कुसुमित मन की कलियां झूमी। वृक्षों में छाई हरियाली, कोयल ने राग सुनाया है। सखियों ने सावन झूलों संग, राग मल्हारी गाया है। घनन-घनन गहन मेघ बरसते, आद्रा बरस रही मूसलधार। तपिश भरी धरती पर देखो, अब्र करे प्रेमिल बौछार। अनुपम शोभा नील गगन की, हर्षित हुए हंस पारावत। इंद्र धनुष से सजे है अम्बर, हुए मुदित धरणी और पर्वत। स्वाति बिंदु पा हर्षित चातक, मयूरा मन चाह रहा नाचन को। चली उमड़ि सरिता और बनिता, प्रिय प्रियतम आलिंगन को। स्वरचित एवं मौलिक शीला द्विवेदी "अक्षरा" उत्तर प्रदेश "उरई"

बारिश की बूंदे

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बारिश की बूंदे धरती को नहला रहीं प्यासी है धरा उसकी प्यास बुझा रहीं नन्हीं नन्हीं बूंदे कर रहीं अटखेलियां पत्तों पर ठहर कर मोती की मानिंद चमक रहीं स्ट्रीट लाइट की रोशनी में डिस्को सी थिरक रहीं झूम रहे पेड़ पौधे खुशी से मानो कर रहे स्वागत लहराकर मोर नर्तन कर रहे पी यू पीयू बोल रहे पपीहा कोयल मधुर राग गा रही चातक भी प्यास बुझा रहा ओढ़कर धानी चुनर धरा भी शर्मा रही मानो सब मिल स्वागत कर रहे बूंदों का।

" बारिश की बूंदे "

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रिमझिम - रिमझिम सी बूंदे , जग कर ,आंगन में आई ... अपने लघु उज्जवल तन में, कितनी है सुंदरता लाई... मेघों ने भी गरज गरज कर, मादक संगीत है सुनाया... ठंडी ठंडी हवा है चलती, चारों तरफ हरियाली छा जाती... वर्षा के यह मनमोहक बादल , लाते हैं रिमझिम बारिश का जल... रिमझिम बारिश की छंटा निराली, दे खुशियां , भर दे सबकी झोली.... मंजू रात्रे ( कर्नाटक )

बारिश की बूदें

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बारिश की बूंदे 💦☔ बारिश की बूदें कितनी खूबसूरत होती है,  तुम्हारी पड़ती एक एक बूदों का तो जवाब नहीं,  मिट्टी पर गिरते ही समा जाती हो,  अपनी खुशबू से फिजाओं  को महका जाती हो,  अपनी बूदों से सुखी नदियों को भर देती हो ,  धरती को हरा भरा कर देती हो 🌳💚🍏,  मोर भी शर्म हया छोड़ कर नाचने लगते है,  चांदी जैसी बूदों की वो छम छम आवाज,     मधूर संगीत जैसी लगती है,          तपती हुई  रोशनी को ,  अपनी झटकती हुई जुल्फों की बूदों से छुपा देती हो,  सीपी मे पड़ते ही एक बूंद मोती हो जाती है,  सच मे बारिश की बूदें कितनी  खूबसूरत होती है ।

उम्रदराज लोग

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कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्रदराज लोग । कुछ हसंते से कुछ रोते से  कुछ पाते से कुछ खोते से , कुछ अपनों से बतियाते हैं  कुछ अपनों से ही दूर नजर आते हैं।  कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग। कुछ मोह माया में हर पल है मगन  कुछ प्रभु का करते हैं सिमरन,  कुछ घर में पड़े रहते बेकार  कुछ के हिस्से में नहीं है प्यार। कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग। कुछ सब कुछ दे बैठे अपनों को  कुछ ढूंढते टूटे सपनों को,  कुछ पेंशन का करते इंतजार  कुछ के जीवन में छाई बहार। कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्रदराज लोग। कुछ रिश्तो से छल पाते हैं  कुछ ना आते हैं ना जाते हैं  जिनको माना जीवन अपना  वही नजरें अब चुराते हैं । कैसे होते हैं ना यह उम्र बिताए हुए उम्र दराज लोग। जीवन में संध्या आएगी  शायद रंगना बिखेर पाएगी , खुद को कर लो तुम खुद तैयार  किसी का क्यों देखो इंतजार।  कैसे होते हैं ना यह उम्रबिताए हुए उम्र दराज लोग। खुद ही जीवन बिताना है अंत का नहीं ठिकाना है , बस जेब सेहत ना खाली हो  किसी ...

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

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ऐ नौजवां तुम्हें अबतो अग्निपथ पर चलना होगा। देश के तीनों सेनाओं में ही अग्निवीर बनना होगा। ऐसी एक योजना शासन ने तेरे लिए ही बनाई है। देशसेवा हेतु नौजवानों ये योजना ले कर आई है। जब तक खून गर्म है तेरा दहक रही सीने में आग। इस बेरोजगारी में तू इधर उधर कहीं भी ना भाग। देश प्रेम में चार साल की सेवा कर कुछ लो कमा। जैसा पैकेज दिया गयाहै उसका ये लो लाभ उठा। बात समझ में नहीं आरही बिल्कुल ये जवानों के। 4वर्ष की देश सेवा बाद क्या होगा इन जवानों में। कहाँ जायेंगे क्या करेंगे दस परसेंट आरक्षण लेके। नहीं सुरक्षित कोई भविष्य हैं इनके ये सेवाएं देके। विपक्षी पार्टियों नेभी है इनको खूब भ्रमित किया। नई जवानी जोश देख के इनको हैं पथभ्रष्ट किया। इनके कदम उठे हैं गलत दिशा में तोड़फोड़ करते। अपने विरोध के प्रदर्शन में येसब आगजनी करते। धधक रहा देश आज क्रांतिवीर अग्निपथ पे खड़े। देश सुरक्षा ये ना सोचें निज भविष्य के लिए लड़ें। देश की संपत्तियों को नौजवान नुकसान पहुंचाएं। होने लगीहै धर पकड़ इनके ऊपर मुकदमें लगाएं। शासन सत्ता भी समझाने में इनको होजाती फेल। देशद्रोह की धाराओं में भेज रहीहै इनको वो जेल। ऐसे दाग...

ग़ज़ल

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कतरा - कतरा   पानी  का  बरसाना  होगा यानी  बादल  को  भी कर्ज़  चुकाना  होगा उसकी आंखों में खोया हूं सब कुछ अपना इश्क़ किया है अब इतना तो जुर्माना होगा मसला ये  है  मैं घर  से खाली  निकला था गम ये है अब  घर  फिर खाली जाना होगा लैला  के  ख़्वाब  मरे  हैं  महलों  में लेकिन मजनू  को  सड़कों  पर  पत्थर खाना होगा तुम ही बतलाओ  कब तक दोगे साथ मिरा मुझको  तो   राहों  में   चलते  जाना  होगा यानी  पल  भर के  लब  छूने के  बदले  में  सारी   उम्र  मुझे   अब  शेर  सुनाना  होगा ~ विवेक विस्तार | दतिया, मध्यप्रदेश