'वीर सैनिक'
मातृ भूमि का सपूत, शत्रु का वो कालदूत,
लिए प्राण हार सूत, वायु पे सवार है।
स्वर में ऐसी तान है, विजय गीत गान है,
दूर तक उड़ान है, वार को तैयार है
तन में भारी जोश है, रण का जय घोष है,
रिपु के लिए रोष है,चेतना अगार है।
रुधिर में उबाल है, तेज तुरंग चाल है, वक्ष बहु विशाल है, शत्रु जार जार है।
धार हृदय धीर है, कांधे पर तुणीर है,
सपूत माँ का वीर है, उगता विचार है।
चमचमाता भाल है,सीमा पर वो ढाल है,
अरि के लिए जाल है,दृष्टि आरपार है।
तिरंगा आन बान है, प्रेम रस वितान है,
काम हर महान है, देश की कटार है।
देश प्रेम की लगन, वीर तुझे है नमन,
वैरि का करे दहन, तेरी जय कार है।
कवयित्री-
गोदाम्बरी नेगी
(हरिद्वार उत्तराखंड)
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