पुनर्विवाह - प्यार कि एक नयी शुरूआत ( अंतिम भाग )
रविश प्यार से स्वाति का चेहरा देख रहे होते हैं । स्वाति सबके बीच रविश को इस तरह देखता पाकर शरमा जाती है । और आंखें नीचे कर तेजी से अपने रूम में चली जाती हैं । कुछ देर बाद रविश भी स्वाति के पीछे रुम में जाते हैं । जहां स्वाति अपने रूम में बने खिड़की की तरफ मुंह करके सिर झुकाए खड़ी थी ।
रविश पीछे से आकर , स्वाति के कान में धीरे से कहते हैं - आप वहां से ऐसे क्यूं चली आई !
स्वाति जो अब तक खिड़की को निहारे खड़ी थी । अचानक से रविश की तरफ मुड़कर कहती हैं - आपके कारण !
रविश अनजान बनते हुए - मेरे कारण ! वो कैसे !
स्वाति - अब ये भी मैं ही बताऊं !
रविश - बिल्कुल आप बताएंगी ! मैंने किया क्या है कि आप इस तरह से वहां से भाग आयी ! स्वाति को अपनी बाहों के घेरे में लेते हुए ...हम तो बस अपनी खूबसूरत सी बीवी को देख रहे थे । अब इसमें हमें किसी तरह की कोई गलती नहीं दिखती ! ( स्वाति को अपने सामने लाते हुए ) अगर आप को ये ग़लत लगता है , तो बात अलग है ।
स्वाति - मैंने ऐसा कब कहा ! रविश - वैसे मानना पड़ेगा आपको , मैंने कभी सोचा नहीं था कि आप रिचा को ऐसे हैंडल करेंगी !
स्वाति शून्य में निहारते हुए - मुझे भी नहीं पता था कि मैं रिचा के साथ ऐसे पैश आऊंगी । लेकिन किसी अपने को खोने के डर ने मुझे ये हिम्मत दी , की अपना हक किसी को नहीं देना चाहिए । चाहे वो कुछ पल के लिए ही क्यूं ना हो ।
रविश - आपको ऐसे देखकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई । अब आप हमेशा ऐसे खुश रहा करिए ।
स्वाति - रविश , पर मुझे डर लग रहा है । कहीं कुछ गलत ना हो जाए । कहीं रिचा अपने अपमान का बदला लेने के लिए कुछ गलत ना करें ।
रविश - नहीं करेगी कुछ गलत ! और मैं आपके साथ हूं ना , मैं हमेशा आपके साथ रहूंगा । आप रिचा कि बिल्कुल भी फिक्र मत करिए । (रविश , स्वाति को गले लगाते हुए कहते हैं )
स्वाति - अब छोड़िए मुझे और आप हास्पिटल जाइए । आपको देर हो रही है । 10 बज रहे हैं , आपके पेशेंट आपको कोस रहे होंगे कि डाॅ . रविश
आजकल बहुत लेट आने लगे हैं । स्वाति , रविश से दूर होती हुई कहती हैं ।
रविश - अब उन्हें क्या पता कि अब ये डाॅ. रविश किसी के परमानेंट पेशेंट बन चुके हैं ।
स्वाति शरमाते हुए - आप भी ना .. कुछ भी बोलते हैं । अब जाइए , आपको लेट हो रहा है ।
स्वाति , रविश को बाहर तक छोड़कर आती हैं ।
स्वाति आज बहुत खुश हैं और उसकी खुशी उसके काम में दिख रही हैं । गुनगुनाते हुए घर के काम कर रही हैं , जिसे सरला जी ने भी महसूस किया ।
शाम को रविश जल्दी घर आ जाते हैं ...
रविश घर पहुंच कर स्वाति से " स्वाति आप और शिवांश तैयार हो जाइए । हमें कहीं जाना है ।
स्वाति घबराते हुए - कहां जाना है रविश ! सब ठीक तो है ना ..!
रविश मुस्कराते हुए - सब ठीक है बस आप जल्दी से तैयार हो जाइए । मैं शिवांश को लेकर आता हूं ।
स्वाति बात काटते हुए - पर रविश जी ! आप इतनी हड़बड़ी क्यों कर रहे हो , सच में सब ठीक है ना !
रविश - हां .. सब ठीक है स्वाति , आप जाइए और जाकर तैयार हो जाइए । वैसे भी महिलाओं को तैयार होने में थोड़ा ज्यादा वक्त लगता है । धीमे से कहा रविश ने ... जिसे स्वाति ने सुन लिया ।
क्या कहा आपने ! स्वाति ने पूछा !
रविश कुछ नहीं कहकर रूम से बाहर आ जाते हैं ।
रविश बड़बड़ाते हुए - यें स्वाति भी ना ! सोच ही लिया है , मेरी सरप्राईज का कबाड़ा करने का ,कितने सवाल करतीं हैं । कहते हुए सरला जी के कमरे में जाकर ...
रविश - मां , शिवु है क्या आपके पास !
सरला जी - शिवु , मेरे साथ तो नहीं है । वो नेहा के साथ गया है , पता नहीं कब तक आयेंगे । क्यूं कुछ काम था !
रविश हिचकिचाते हुए - मां , वो मैं ..आज स्वाति और शिवांश को बाहर ले जाना चाहता था । इसलिए पूछ रहा ।
सरला जी - एक काम करो आज तुम दोनों चलें जाओ । शिवु को फिर कभी ले जाना और तुम दोनों शिवु की फ़िक्र बिल्कुल मत करना । मैं हूं ना , मैं सम्भाल लूंगी । अब तुम लोग जाओ ।
स्वाति के तैयार होकर रूम से बाहर आती है ।
रविश - आप बस दस मिनट रूकिए । मैं तैयार होकर आता हूं ।
थोड़ी देर बाद रविश काले पेंट और नीले शर्ट पहने सिर के बालों को अच्छी तरह से सेट किया हुआ था । जिससे रविश और भी हैंडसम लग रहे थे । स्वाति बस उन्हें ही देखें जा रही थी ।
रविश मुस्कराते हुए स्वाति के पास आकर ...
चलें वरना देर हो जायेगी ।
स्वाति - मगर शिवांश ! शिवांश नेहा के साथ गया है , उन्हें घर आते देर हो जायेगी । मां है ना मां सम्भाल लेगी शिवु को । अब चलें ! कहते हुए रविश ने अपना हाथ आगे बढ़ाया जिसे देख बिना किसी संकोच के स्वाति ने हाथ रविश जी के हाथ में दे दिया ।
कार के पास पहुंच कर रविश ने स्वाति के लिए कार का दरवाजा खोला । स्वाति के बैठने के बाद खुद अपनी तरफ की सीट पर आकर बैठ गये । रविश ने कार स्टार्ट की और सीधे महादेव घाट पहुंचे । जहां उस स्वाति को ले जाने वाले थे । पर रिचा की वजह से नहीं ले जा सके । महादेव के मंदिर पहुंचकर स्वाति के चेहरे पर मुस्कान आ गई । और स्वाति को देखकर रविश के । उन्होंने पास ही पूजा की सामग्री ली और दोनों ने साथ में मंदिर में प्रवेश कर महादेव को प्रणाम किया ।
मंदिर में पूजा कर दोनों वहीं कुछ देर बैठे रहे । अचानक रविश को कुछ सूझा और उन्होंने मोबाइल निकाल कर स्वाति को नदी की निहारते हुए उसकी पिक क्लिक करने लगे । फोटो खींचने के बाद उन्होंने चुपके से मोबाइल को अपने पाॅकेट में रख लिया ।
रविश स्वाति के उड़ते हुए बालों को देख रहे थे ।
स्वाति उठते हुए - अब चलें ! अंधेरा हो रहा है , अब हमें चलना चाहिए ।
रविश - चलिए ..
रविश कार चलाते हुए शहर को पीछे छोड़ते जा रहे थे । शहर के पीछे छूटते ही जंगल शुरू हो गये । सूनसान रोड और रोड के दोनों तरफ घने लंबे पेड़ों वाला जंगल । स्वाति घबराते हुए रविश को देखती है , जो निश्चिंत होकर कार ड्राइव कर रहे थे ।
स्वाति अपने आसपास सूनसान सड़क को देखते हुए , रविश की बांह को पकड़ लेती है ।
रविश , स्वाति की तरफ देखते हुए - डरो मत स्वाति , हम सुरक्षित जगह पर जा रहे हैं । कह कर रविश ने कार दूरी पर कार रोक दी । रविश पहले कार से उतरकर , स्वाति के तरफ के दरवाजे को खोलकर स्वाति की तरफ अपना हाथ बढ़ाते है । जिसे स्वाति रविश का हाथ थाम कर कार से बाहर आती है ।
थोड़ी दूर चलने पर ही स्वाति को बहुत सारी लाइटों से सजा एक बोर्ड दिखाई देता है । जिसे देखकर स्वाति खुश हो जाती हैं । स्वीटी दा ढाबा ....।
स्वाति उस ढाबे को मुस्कराते हुए देखकर रविश से कहती हैं। मैं तो इस ढाबे के बारे में भूल ही गई थी , एक अरसा हो गया यहां आये । पर आपको इस ढाबे के बारे में कैसे पता चला । रिसेप्शन के दिन बातों ही बातों में मां ने बताया था । ढाबे पर ज्यादा भीड़ नहीं है , इक्का दुक्का लोग ही नजर आ रहे होते हैं । जिसे देखकर स्वाति एक - बार फिर घबरा जाती हैं । जिसे देखकर रविश , स्वाति का थाम लेते हैं ।
रविश - आप ये सब बातें छोड़िए और चलिए मुझे जोरों की भूख लगी है । स्वाति हामी भरकर रविश के साथ ढाबे में जाती हैं ।
दोनों ढाबे के बाहर ही बने खाट पर बैठ जाते हैं । कुछ देर बाद एक लड़का उनका आॅडर लेने आता है ।
रविश स्वाति को खाना आॅडर करने को कहते हैं ।
स्वाति , बिना ना नूकूर करे खाना आॅडर करने लगती हैं ।
स्वाति - हां भैया ! दो प्लेट नान , दो दाल मखनी , एक प्लेट चावल और यहां की पसंदीदा मटर पनीर की सब्जी और मीठे में जो भी है एक प्लेट में सब थोड़ा - थोड़ा सब ले आऊं यही ना ! स्वाति की बात काटता हुआ वो लड़का कहने लगा ...।
स्वाति मुस्कुरती हुई रविश को देखती है , जहां रविश आंखें फाड़कर स्वाति को देखें जा रहा था ।
स्वाति - क्या हुआ ! ये सब मैंने हम दोनों के लिए मंगवाया है । मेरे अकेले के लिए नहीं !
रविश - मैंने कुछ कहा क्या आपसे , मैं तो बस आपको याद दिला रहा था कि आप एक चीज मंगवाना तो भूल ही गई । स्वाति - भूली नहीं हूं , वो यहां के खानें के साथ फ्री मिलता है । मीठा आचार ...।।
तभी खाना आ जाता है ...
स्वाति - रविश जी , आप खाना लग गया है । और बहुत देर भी हो रही है जल्दी से खाना खाकर घर चलते हैं । देखिए ना मौसम भी बिगड़ने वाला है । ठंडी - ठंडी हवाएं चल रही है ।
रविश - कुछ नहीं होगा स्वाति जी आप बिल्कुल टेंशन मत लीजिए । मैं हूं ना ! उसी बात की तो टेंशन है , स्वाति अपने आप से !
रविश - आपने कुछ कहा ! स्वाति - कुछ भी तो नहीं।
रविश और स्वाति खाना खत्म कर जल्दी से घर के लिए निकलने वालें होते हैं कि ढाबे का मालिक उन्हें कहता है ।
ढाबे का मालिक - देखिए साब आप बुरा ना समझे तो एक बात कहूं । रविश के हामी भरने पर वो कहता है । साब लगता है आप लोग बहुत दूर से आये है । अभी समाचार में बता रहे हैं की भारी बारिश शुरू होने वाली है । हो सके तो यहां से जल्दी निकल जाइए । वरना रास्ते में पड़ने वाले नाले में फंस जायेंगे । रविश उसकी बातें सुनकर उसे धन्यवाद कहकर । वहां से स्वाति के साथ निकल जाते हैं । लेकिन रास्ते में ही बारिश शुरू हो जाती है । धीरे - धीरे कार को ड्राइव करके रविश और स्वाति किसी तरह घर पहुंचते हैं । कार को रखने के बाद दोनों भीगते हुए घर में घुसते हैं । जहां सरला जी पहले से ही दोनों का इंतजार कर रही होती हैं ।
सरला जी - ये वक्त है , तुम दोनों के घर आने का ! 12 बज रहे हैं । ऊपर से पूरी तरह से भीग चुके हो । डांटते - डांटते सरला जी पीछे घूम जाती है । रविश कुछ कहने ही वाले होते हैं कि स्वाति रविश का हाथ पकड़ कर उन्हें कुछ भी कहने से रोक देती है । सरला जी मुड़ती है दोनों किसी अपराधी की तरह सर झुकाए खड़े रहकर कांपते रहते हैं ।
सरला जी - इतनी देर से मेरी डांट सुन रहे हो । जाओ जाकर कपड़े बदल लो वरना सर्दी लग जायेगी । जब तक मैं तुम दोनों के लिए काढ़ा बना कर लाती हूं ।
स्वाति रुम में जाकर अपने कपड़े लेकर बाथरूम में घुस जाती है । और रविश अपने कपड़े लेकर सरला जी के कमरे में चला जाता है । कुछ ही देर में सरला जी दोनों के लिए काढ़ा बनाकर लाती है । और अपने सामने बिठाकर दोनों को काढ़ा पिलाती हैं ।
सरला जी - बहुत रात हो गई है , अब तुम दोनों आराम करो । कहकर सरला जी चली जाती हैं ।
सरला जी के जाने के बाद स्वाति , रविश से ...
स्वाति - रविश जी , आज के दिन को खूबसूरत और यादगार बनाने के लिए धन्यवाद ... ।
मैं आपको बता नहीं सकती कि मैं कितनी खुश हूं । थैंक्यू सो मच ... मेरी जिंदगी में खुशियां लेकर आने के लिए ।
रविश - धन्यवाद आपका जो आप मेरी जिंदगी में आईं । मुझे और मेरे परिवार को आपने दिल से अपनाया । उसके लिए आपका धन्यवाद ।
स्वाति - खुशियां क्या होती हैं ये तो भूल ही गई थी । लेकिन आज आपकी वजह से उन खुशियों को एक बार फिर से जी पाई हूं । कभी - कभी डर लगता है कि कहीं ये कोई सपना तो नहीं ! आंख खुले और टूट जाये । स्वाति , रविश के गले से लग जाती हैं ।
रविश - ये सपना नहीं , हमारी जिंदगी की हकीकत है । मैं आपसे वादा करता हूं कि परिस्थिति कैसी भी हो । मैं आपका साथ कभी नहीं छोडूंगा ....।।
स्वाति और रविश अपनी जिंदगी के सफर में प्यार की एक नई शुरुआत कर आगे बढ़ते हैं ....।।
समाप्त
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