" मन चितेरी बारिश की बूँदें "


ये बारिश की बूँदें, बरखा का पानी,जाको कोउ नहीं है सानी।
मोरा मन चितवत चहुँओर, कहाँ गयो चितचोर।
बरसा बरस रही चहुँओर। घन गरजत हरषत मोरा जियरा, नाचत बन में मोर।
पिहु-पिहु जो रटत पपीहा,देखत घन की ओर, 
हँसत-हँसावत श्याम हमारे,
श्यामल परम मनोहर मनहर, प्रीतम नंद किशोर।
दादुर की टर्र टें सुनि-सुनि,
 कोकिल मधुर तान से कूके,
पंख पसार मयूर जो नाचे,
रुनझुन मयूरी दौरी आवे,
किशन कन्हैया, राधे प्यारे
 लेते मन चित चोर।
बिजरी चमकत हे गिरधारी,
 बीती पल-पल रैना सारी।
तू मन मोहन आराध्य जो मेरा,
 मैं तेरी गणगौर।
गौरांगिनी राधिका प्यारी, 
सुखी संत महिमा लखि भारी।
सुषमा भजन करै, होकर प्रेम विभोर।
आई हैं बारिश की बूँदें, 
पावस ऋतु को शोर,
निकल गई तपिश, अंग से, 
मिली जो शीतल कोर।
     रचयिता- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक भाव, सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४