अग्निवीर (सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) (अंतिम भाग)
(लाइफ स्टोरी ऑफ अलख पांडे)
पांडे अब इतना विश्वसनीय बन चुके थे कि कुछ ही समय में ऐप पर 2 लाख स्टूडेंट आ गए और एप क्रैश हो गई। असंख्य युवा ऐप में एनरॉन कर चुके थे, ऑनलाइन फीस भर चुके थे । इसी बीच पांडे के पास एक ऑफर आया। एक बड़े व्यापारी ने उनकी ऐप का मूल्य लगाया ,
मूल्य था 75 करोड़ रुपए । पांडे चाहते तो उसी समय इतनी धनराशि के मालिक बन सकते थे । लेकिन उन्होंने इस ऑफर को लात मारकर ठुकरा दिया । जैसे कि मैंने शुरुआत में ही कहा कि पांडे का "फिजिक्स वाला" अब 777 करोड़ से ऊपर फंडिंग जुटा चुका है । आज के तारीख में राष्ट्र के सबसे सफल स्टार्टअप में से एक हैं।
आज पांडे रोजगार बांट रहे हैं। फिजिक्स लगभग 19000 लोगों को रोजगार दे रहा है। इनमें टीचर्स, एसोसिएट प्रोफेसर, सब्जेक्ट मैटर, एक्सपर्ट से लेकर टेक्नीशियन आदि शुमार हैं। पांडे अकेले नहीं हैं ,जिन्होंने अपने सपनों का पीछा करते शून्य से करोड़ों तक का सफर तय किया है। सिर्फ पांडे ही नहीं जो भुखमरी के दौर से उठकर करोड़ों के मालिक बन गए। ऐसे कई उदाहरण हैं । र उन सभी उदाहरणों में एक बात सामान्य है कि उन सभी ने कभी नौकरी के लिए हाथ नहीं फैलाया । बल्कि उन हाथों को इतना सक्षम बनाया कि वह नौकरियां बांट सके।
पब्लिक प्रोपर्टी फूंकते....आगजनी करते....पॉलिटिकल पार्टी के इशारे पर नाचते उन युवाओं को नजरअंदाज कर दीजिए। और अंदाजा लगाइए अलख पांडे सरीखे युवाओं का जो इस राष्ट्र के भविष्य की नींव हैं।
आने वाले दिनों में ऐसे ही किरदारों से रूबरू करवाने का प्रयास कीजिए।
उस व्यक्ति की बातें सुनकर अमन का चेहरा खिल उठता है मानो अमन में फिर से वही पुरानी जोश आ गई हो । वह उठता है और उस व्यक्ति के चरण स्पर्श कर लेता है । और फिर उनको धन्यवाद कहता है क्योंकि उस व्यक्ति के वजह से ही उसके मन में जो बेचैनी थी वह शांत हुई थी ।
मन ही मन अमन प्रतिज्ञा लेता है की अब चाहे कुछ भी हो वह सैनिक बन कर ही रहेगा । और भविष्य में अलख पांडे के जैसे ही वह नौकरियां बांटेगा। वह जनता था की अगर वह अपने मित्रों से ये सब न करने को कहेगा तब भी वह लोग नहीं मानेंगे इसलिए वह बिना किसी को कुछ बोले अपने घर चला जाता है। और घर जाकर ये सारी बातें अपनी माँ से बताता है। उसकी बातें सुन माँ खुश हो जाती है।
फिर अमन माँ से कहता है "माँ मुझे आशीर्वाद दो मैं घर से दूर जा रहा हूँ , तुम चिंता मत करना जल्द लौटूंगा सैनिक बनकर। क्योंकि यहाँ रहने पर मेरे साथी ही मेरे मंजिल के रास्ते के कांटें बन जायेंगे। पहले तो सीमा भावुक हो जाती है किंतु फिर उसे जाने की अनुमति दे देती है।
कुछ ही देर में अमन अपना समान बांधकर निकल पड़ता है ,अपने मंजिल की ओर।
समाप्त
गौरी तिवारी
भागलपुर, बिहार
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