पिशाचों की जंग नरपिशाचों से
जंगल के इस हिस्से में पिशाचों की बस्ती बनी हुई थी। अनेकों पीपल और बरगद के पेड़ थे। जिनपर पिशाच रहते थे। रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्यों के साथ साथ पिशाचों की भी मूल जरुरत है।
पर मनुष्यों से अलग वे केवल अपनी जरूरतों से ही खुश रहते। भरे पेट पर किसी से कुछ न कहते। जगह की कमी होने पर शाखाएं भी बांट लेते। भोजन तो बांटते ही थे।
पिशाचों का भोजन क्या। सुना जाता है कि पिशाच खून के शौकीन होते हैं। ये भी खून के शौकीन थे। पर नरपिशाचों के खून के।
रात अंधेरी होते होते पिशाचों की टोली शिकार करने निकलती। जंगल में अनेकों जानवर थे। पर इन पिशाचों की जीभ पर तो नरपिशाचों का खून लग चुका था। जैसे किंग कोबरा का भोजन दूसरे सर्प हैं। उसी तरह इनकी मुख्य खुराक नरपिशाच थे।
" चाचा। दो दिन हो गये। पेट में कुछ भी नहीं गया। अब कुछ करना होगा।"
एक नये पिशाच ने अपने सरदार से कहा।
पिशाचों का सरदार गंजे सिर बाला, बड़ा़ दुबला पतला सा पर नरपिशाचों के लिये निर्दयी था। जब वह जिंदा था तो बड़ा शरीफ आदमी था। ठाकुर के आदमियों ने उसके बाप को मारा। उसकी बहन की इज्जत लूटी। और तो और उसी को फसा दिया।
उसे कानून पर भरोसा था। पर कानून की देवी की आंखों पर तो पट्टी बंधी होती है। उसे किसी से न सुना। फांसी पाकर वह पिशाच बन गया। कुछ इच्छा बची होंगीं तभी तो इस योनि में आ गया।
फिर वह अपना इंसाफ करने चल दिया। एक एक कर उन सभी नरपिशाचों का उसने शिकार किया। उनके खून से अपनी प्यास बुझाई।
एक एक कर कांरवा बनता गया। और भी अनेक पिशाच उसके साथ हो गये। अब हर रोज वे ऐसे नरपिशाचों का शिकार करते। उनका खून पीते।
सचमुच कुछ दिनों से कोई शिकार नहीं मिला था। सरदार सभी को लेकर चला। आज वे जंगल से बाहर तक निकल आया।
हाईवे की सुनसान सड़क पर दो दरिंदे एक युवती को पकड़े हुए थे। शायद लड़की को आने में देर हो गयी थी। उनसे लिफ्ट मांग ली।
मनुष्यों के वेष में पिशाच कुछ कर पाते कि वास्तविक पिशाचों ने उनपर हमला कर दिया। युवती डर की बजह से कांप रही थी।
" डरो मत बहन। हम पिशाच हैं न कि नरपिशाच। अपने घर जाओ।"
युवती चली गयी। फिर उस स्थान पर खून ही खून फैला था। जिसे पिशाच पी रहे थे। जंगल की हू हू अब हाई वे पर होने लगी।
उसके बाद फिर पिशाचों को भूखा नहीं सोना पड़ा । नरपिशाचों के ठिकानों पर वह हमला करते। ड्रग्स बेचने बाले, बेटियों को धोखा देकर उनसे जबरदस्ती करने बाले, बेईमानी से अपना घर भरने बाले, धर्म के नाम पर झगड़ा कराने बाले, और भी न जाने कितनी तरह के पिशाच दुनिया में रह रहे थे।
जब तक दुनिया में एक भी नरपिशाच बचेगा। यह जंग जारी रहेगी। उसके बाद शायद इन पिशाचों का काम ही पूरा हो जाये। इस योनि से मुक्त हो जायें।
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'
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