तेरे जाने के बाद
शहनाईयों की गूंज से सारा वातावरण संगीतमय हो गया था। सब तरफ रौशनी ही रौशनी थी। नीलिमा और विवेक विवाह के पवित्र बंधन में बंध रहे थे। एक अटूट बंधन जो टूटे ना टूट सके। सात फेरों के साथ जीने मरने की कसमें खाईं। परिवार में सब तरफ खुशी का माहौल था। नयी नवेली दुल्हन का ज़ोरदार स्वागत किया गया। सबने नीलिमा को सिर आंखों पर रखा। नीलिमा भी अपने नये परिवार में रम सी गई थी। अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझ रही थी कि उसे इतना प्यार करने वाला पति और परिवार मिला है। शादी के दो साल तक सब फूलों की सेज की तरह था। खुशहाल और परिपूर्ण। फिर विवेक का तबादला दिल्ली से रांची हो गया। पोस्ट बहुत ऊंची थी इसलिए सबने उसपर दबाव बनाया कि उसे तबादला स्वीकार कर लेना चाहिए। नीलिमा, अपनी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थी। इसलिए उन्होंने तय किया कि नीलिमा दिल्ली रहेगी और विवेक रांची चला जाएगा। विवेक के जाने के बाद कुछ समय तक तो सब ने नीलिमा को विवेक की कमी महसूस नहीं होने दी। पर कुछ महीने पश्चात नीलिमा ने महसूस किया कि सब कुछ बदल गया है। उसके सास - ससुर अब हर बात पर उसे ताना कस देते थे। बाकी रिश्तेदार भी अब खिंचे ...