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Showing posts from May, 2022

तेरे जाने के बाद

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शहनाईयों की गूंज से सारा वातावरण संगीतमय हो गया था। सब तरफ रौशनी ही रौशनी थी। नीलिमा और विवेक विवाह के पवित्र बंधन में बंध रहे थे। एक अटूट बंधन जो टूटे ना टूट सके। सात फेरों के साथ जीने मरने की कसमें खाईं। परिवार में सब तरफ खुशी का माहौल था।  नयी नवेली दुल्हन का ज़ोरदार स्वागत किया गया। सबने नीलिमा को सिर आंखों पर रखा। नीलिमा भी अपने नये परिवार में रम सी गई थी। अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझ रही थी कि उसे इतना प्यार करने वाला पति और परिवार मिला है।  शादी के दो साल तक सब फूलों की सेज की तरह था। खुशहाल और परिपूर्ण। फिर विवेक का तबादला दिल्ली से रांची हो गया। पोस्ट बहुत ऊंची थी इसलिए सबने उसपर दबाव बनाया कि उसे तबादला स्वीकार कर लेना चाहिए।  नीलिमा, अपनी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थी। इसलिए उन्होंने तय किया कि नीलिमा दिल्ली रहेगी और विवेक रांची चला जाएगा।‌ विवेक के जाने के बाद कुछ समय तक तो सब ने नीलिमा को विवेक की कमी महसूस नहीं होने दी।‌ पर कुछ महीने पश्चात नीलिमा ने महसूस किया कि सब कुछ बदल गया है। उसके सास - ससुर अब हर बात पर उसे ताना कस देते थे।‌ बाकी रिश्तेदार भी अब खिंचे ...

गलती भाग १४

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  दया के विवाह की बात सैरावत जी के छोटे बेटे जुगनू के लिये चल रही थी। निम्मो और सुरैया का वैर भी अचानक प्रेम में बदल गया। अब सुरैया निम्मो का बहुत ध्यान रखती। काम के बोझ में अगर निम्मो कलेऊ करना भूल जाये तो सुरैया खुद थाली लगाकर उसके पास आ जाती।   "काम तो जीजी पूरे जीवन खत्म न होगा । समय से नाश्ता करना बहुत जरूरी है।"   "अरे मैं तो आ ही रही थी। फिर अभी देर ही कितनी हुई है।"   "देर जीजी। अरे पूरे दस बजने बाले हैं।"   निम्मो ने थाली हाथ में पकड़ ली। हाथ से बनायी रोटी के दो ही कौर मुंह में गये कि वह रुक गयी। " अरे। अभी तूने भी तो कलेऊ नहीं किया सुरैया। " " मुझे क्या है जीजी। अभी तो मैं जवान हूँ। थोड़ी देर से मेरा क्या बिगड़ जायेगा। " " बहुत जवान है। बेटी की शादी होने बाली है। और इधर जवानी भी हाजिर है। ज्यादा बात ना बना।"   यह सब देखना सुखद लगता। वैसे सौम्या के विवाह तक यही स्थिति थी। दोनों के मध्य अपार स्नेह था। दोनों एक दूसरे का बहुत ध्यान रखतीं थीं। पर सौम्या के विवाह के बाद से अब वह स्थिति आयी है।  " जीजी। बड़े लोगों के क...

धारावाहिक : बहू पेट से है भाग - 8 : खुशखबरी

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जब लाजो जी ने कहा कि बिल्ली दही पर जमी मलाई चट कर गई है और लाजो जी उस दही को चौधराइन को भिजवाने को कह रही है । तो चौधराइन को बड़ा बुरा लगा । मगर उन्होंने कुछ कहा नहीं । मन मसोस कर ही रह गई  । पर उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि लाजो जी ने अभी तक यह नहीं पूछा कि यह "घाट की राबड़ी" किस उपलक्ष्य में बनाई है । लगता है कि लाजो जी बातों बातों में भूल गई हैं । पर जब तक वे कारण सुना नहीं दें तब तक उनके पेट में "आफरा" आता ही रहेगा । इसलिए चौधराइन ने कहा  "तुमने यह नहीं पूछा कि ये "घाट की राबड़ी" किस उपलक्ष्य में बनाई है" ?  "अरे दीदी ! साॅरी, साॅरी । बातों बातों में मैं तो भूल ही गई थी । अब बताओ कि क्या खास बात थी कि जिसे "घाट की राबड़ी से सेलिब्रेट किया आपने" ?  शीला चौधरी ने चहकते हुए कहा "बात ही कुछ ऐसी है कि तुम भी सुनोगी तो खुश हो जाओगी" ।  "तो जल्दी से सुना दो ना दीदी । इतना सस्पेंस क्यों जनरेट कर रही हो ? बेटी का रिश्ता तय कर दिया है क्या कहीं पर" ?  "अरे कहां लाजो जी , वो तो मानती ही नहीं है अभी । कहती है...

अहिल्या बाई

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सनातन धर्म की रक्षक। भोलेनाथ की भक्त अहिल्या बाई शत् शत् नमन।।  किया धर्म हित अथक प्रयास शत् शत् नमन।  जन जन की सेवा मे रत हर शत् शत् नमन।।  न्याय किया अपराधी को दण्ड  दिया  शत् शत् नमन।  है ऋणी राष्ट्र आपका शत् शत् नमन।।  मालवा की माटी काममान बढ़ाया शत् शत् नमन।  आशा की कामना यश कीर्ति गाएँ हम शत् शत् नमन।।  स्वरचित मौलिक अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉ आशा श्रीवास्तव जबलपुर

मेरी बारी

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      .....जब मैं दसवीं में पढ़ता था ,तो घर के सभी लोग मेरे पीछे पड़े रहते थे। उनकी कोई गलती नहीं थी ,यह बात मैं आज कह सकता हूं ।आखिर मैं पढ़ाई पर बिल्कुल जो नहीं ध्यान  देता था। मैं मध्यमवर्गीय परिवार से था, चार भाई बहनों में मैं तीसरे नंबर पर था। मेरी तीनों बहनें पढ़ाई में अच्छी थी। मैं एक तो अकेला लड़का..... ऊपर से लड़के लड़की का भेद करने वाला हमारा समाज ........इसलिए मम्मी पापा और तीनों बहनें मुझे पढ़ाई पर एकाग्र चित्त करने के लिए कभी प्यार से समझाते , कभी डांटते और कभी कभी पिटाई भी लगाते थे ।लेकिन मजाल जो कभी कोई हथियार मेरे काम आया हो।  मैं तो बस मस्त मौला अपनी धुन में रहता , कभी छत पर पतंग उड़ाता, कभी दोस्तों के साथ क्रिकेट  खेलता, कभी कैरम खेलता और कभी-कभी मां के साथ रसोई में सब्जी बनाने में मदद करता । सब्जी की रेसिपी जानने और वैसे ही सब्जी बनाने में मुझे बड़ा मजा आता था। लेकिन जैसे ही बात गणित, भौतिक शास्त्र ,रसायन शास्त्र और अंग्रेजी की होती तो मेरा दिमाग सुलगने लगता।     हमारे घर में मम्मी ने बर्तन मांजने के लिए एक कामवाली को रखा हुआ था...

बस एक......

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मैं बह जाऊँगी सदियों तक, तुम्हारें लिए गंगा की तरह  तुम बस एक बार भागीरथ की तरह लेने तो आओं। बिना सवाल चल दूँगी मैं पीछे पीछे तुम्हारें, तुम बस एक बार भागीरथ की तरह लेने तो आओं। नग, घाटी और मैदान पार कर मिट जाऊँगी सदा के लिए  मैं, बस एक बार भागीरथ की तरह लेने आओं। अपने प्रचंड वेग को त्याग कर ,धार बन तुम्हारें कदमों को चूमती जाऊँगी मैं, बस एक बार भागीरथ की तरह लेने तो आओं। बस एक...... गरिमा राकेश 'गर्विता' कोटा राजस्थान

रोज़गार की तलाश

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कोविड की महामारी ने लोगों से ना केवल उनके अपनों को सदा के लिए उनसे छीन लिया, बल्कि लाखों लोगों को बेरोज़गारी के कगार पर  लाकर खड़ा कर दिया। आलम ये हो गया था कि लोगों के पास जीवन निर्वाह करने के भी पैसे नहीं बचे थे। ऐसी ही एक संघर्ष भरी कहानी थी आदया की। "लेकिन मैम, मैं भी बहुत अच्छे से ऑनलाइन क्लास हैंडल कर रही हूं। फिर आप मुझे क्यों निकाल रहे हैं?" आदया ने अपनी स्कूल की प्रिंसिपल से पूछा।  "आदया, हम जानते हैं कि आप एक अच्छी अध्यापिका हैं। लेकिन इस कोविड समय में हम भी मजबूर हैं। एक तो बच्चों के अभिभावक फीस नहीं भर रहे जिससे हर टीचर की सैलरी निकालनी मुश्किल हो रही है। दूसरा, आपकी भी बहुत सी समस्याएं हैं। आपके पास लेपटॉप नहीं है जिससे ऑनलाइन क्लास को मैनेज करना बहुत आसान हो जाता है। हर समय आपका नेटवर्क का प्रोब्लम रहता है, जिसकी शिकायत अभिभावक हमसे करते हैं। आप एक साथ तीन क्लास के बच्चों को पढ़ा नहीं पातीं। ऐसे में आप बताइए हम आपको कैसे रखें। इसलिए, आई एम सॉरी आदया।" ये कह प्रिंसिपल ने फोन काट दिया।  आदया वहीं बैठ रोने लगी। इस महामारी के समय में वो कैसे अपने बूढ़े मात...

भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला

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महाराजा वीर विक्रमादित्य को जानें "भारत को सोने की चिड़िया" बनाने वाला। बोलो कौन था ? असली राजा  महाराजा।। कौन था राजा ? जिसके राजगद्दी पर बैठने। के बाद  श्रीमुख से देववाणी निकलती थी।। और देववाणी से ही उनका न्याय होता था। उसके राज्य में अधर्म का  संपूर्ण नाश था।। महाराज विक्रमादित्य हिन्द देश के राजा थे। दुःख है "महाराज विक्रमादित्य" के बारे में।। देश के बच्चों को लगभग 0 बराबर ज्ञान है। जिसने भारत का  स्वर्णिम काल लाया था।। वही भारत को सोने की चिड़िया बनाया था। तभी भारत सोने की चिड़िया कहलाया था।। उज्जैन के राजा गन्धर्वसैन को 3 संताने थी। सबसे बड़ी लड़की उनके मैनावती था नाम।। उससे छोटे थे गंधर्वसेन का यह पुत्र भृतहरि। सबसे छोटे पुत्र का ये विक्रमादित्य था नाम।। बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा। राजा पदमसेन के  साथ धूमधाम से कर दी।। जिनको एक लड़का हुआ गोपीचन्द था नाम। आगे वो श्रीज्वालेन्दर नाथ से योग दीक्षा ली।। और तपस्या हेतु गोपीचंद जंगलों में चले गए। मैनावती श्रीगुरू गोरक्षनाथ से योग दीक्षा ली।। आज भारत देश एवं यहाँ की संस्कृति केवल। उस विक्रमादित्य के कारण ह...

जब से तुमसे मुहब्बत हम करने लगे

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जबसे तुमसे मुहब्बत हम करने लगे  खूबसूरत से अरमान सजने लगे  बेकरारी में हद से गुजरने लगे  अनगिनत सपने आंखों में पलने लगे  जबसे तुमसे मुहब्बत हम करने लगे  खूबसूरत से अरमान सजने लगे ।।  नजन जब नजर से टकरा गई  हाले दिल हमको तेरा वो बतला गई  थरथराते लबों का इशारा हुआ  दिल मुहब्बत में तेरा दीवाना हुआ  इश्क की आंच पे हम सुलगने लगे  अनगिनत सपने आंखों में पलने लगे  जबसे तुमसे मुहब्बत हम करने लगे  खूबसूरत से अरमान पलने लगे ।। रात दिन अब तो तेरे खयाल आते हैं  अपनी बांहों में मुझको सुला जाते हैं  चांदनी की तरह से तू आती है  घर मेरा रोशनी से तू भर जाती है  शबनमी ओस में हम झुलसने लगे  अनगिनत सपने आंखों में पलने लगे  जबसे तुमसे मुहब्बत हम करने लगे  खूबसूरत से अरमान पलने लगे  बेकरारी में हद से गुजरने लगे  अनगिनत सपने आंखों में पलने लगे  हरिशंकर गोयल "हरि" 

काश कुछ ऐसा करें बेटियां

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सिर्फ घर की लक्ष्मी ही नहीं होती बेटियां, घर की शान और पिता की अभिमान होती है बेटियां, लेकिन क्या इन बातों को समझ पाती है बेटियां।  बदलते समय के साथ सोच भी बदल लेती है बेटियां, जिस पिता ने उन्हें बोलना सिखाया उन्हीं के विरुद्ध खड़ी हो जाती है बेटियां, वह भी उनके लिए जिन्हें कुछ सालों से जानती हैं बेटियां। आर्थिक स्थिति कैसी भी हो एक पिता की, ख्वाइशें उनकी यही होती है कि अपनों से अच्छे घरों में ब्याह पाएं वह अपनी बेटियां, इस प्यार को क्यों नहीं समझ पाती है बेटियां।  जिस पिता ने बचपन से सर उठा कर चलना सिखाया, अपने काले करतुतों से उन्हीं का सर झुका देती है बेटियां, कमी क्या रह जाती है, जो यूँ दगा दे जाती है बेटियां।  बन जाती है क्यों इतनी कमजोर जो एक लड़के के प्यार भरी बातों से पिघल जाती है बेटियां, एक लड़के के लिए मां-बाप को नहीं,  मां-बाप के लिए उन लड़कों को छोड़ पाती बेटियां अगर कुछ करना ही चाहती हैं तो ऐसा करे बेटियां,  जिससे वह अपने पिता की बोझ नहीं सर का ताज लगने लगे बेटियां, काश कुछ ऐसा करे बेटियां।  गौरी तिवारी  भागलपुर बिहार

धूम्रपान निषेध दिवस पर

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  आग का दरिया बचो लत बूरी इंसा बचो सिंधु यह दुख भरा डूब मत जाइये व्याधि मूल मानो इसे भारी भूल जानो इसे अवगुण की खान को  मन से हटाइये आये मूर्छा फुले सांस  तन मन का हो नाश जड़ विनाश की यह खुद को बचाइए नाना यह बीमारी दे  दौलत छीन सारी ले खुशियों के चंद पल सुख से बिताइये बीड़ी पान मसाला या गुटका वाला हो शौक लत बुरी होती है ये कभी न लगाइए धुआं धुआं कर देती जिंदगी को पल में ही धूम्रपान की आदत गले न लगाइए कहते है सब जन धूम्रपान अभिशाप रोग का ठिकाना तन कभी न बनाइए केंसर टीबी का रोग कोरोना का भी संजोग जहरीला नाग है ये सबको बताइए रमाकांत सोनी नवलगढ़

"नया अवसर"

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'विचार'         कहते ही नहीं अपितु अकाट्य सत्य हैे कि गया वक्त वापस नहीं मिलता किंतु प्रत्येक मंजिल के लिए एक नया अवसर अवश्य मिलता है।उसका भरपूर लाभ उठाइये। निष्ठा, विश्वास एवं अनवरत बिना परिणाम की फिक्र किए लगे रहिए एक न एक दिन मंजिल आपके कदमों तले होगी। यह भी पूर्णतः निश्चित है। धन्यवाद! राम राम जय श्रीराम! द्वारा - सुषमा श्रीवास्तव,मौलिक विचार, सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

ये जिन्दगी

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क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी.... क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी.... हम टूटे है हर तरफ से हर तरहां से  क्या क्या अब तुझे बताऊं ये ज़िन्दगी.... कितना सुनाऊं, कितना समझाऊं तुझे ये ज़िन्दगी.... क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी.... जब भी उड़ना चाहूं मैं  तूं मेरे सिर से मेरा आसमां छीन लेती है....२) छांव देखकर जिस राह से मैं चलूं तूं उन राहों में पत्थर गाड़ देती है.... क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी.... क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी.... ज़ख्मों पर मरहम तो लगाना आता नही है तुझे ये ज़िन्दगी.... फिर क्यों हजारों दर्द तूं दे जाती है ये ज़िन्दगी.... कभी मेरी एक भी बात तो तूं सुनती नही है ये ज़िन्दगी.... फिर क्यों इतना मुझे तूं सुना जाती है ये ज़िन्दगी.... क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी.... क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी.... तेरा मेरा साथ तो है बहुत पुराना ये ज़िन्दगी.... बेपनाह नफ़रत का बीज कैसे बोया तूने ये ज़िन्दगी.... क्यों इतने इंतिहा लिए जा रही है ये ज़िन्दगी.... क्यों इतना परेशान किए...

गलती भाग १३

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  बदलाव ही जीवन है। फिर भी यकायक इतना बदलाव किस तरह उचित है। मनुष्य को बदलने में भी जरा समय लगता है। एक परिवार जो मेहनत मजदूरी कर अपना पेट पालता था, यकायक संपन्न बन गया। यहाँ तक तो ठीक है। पर यकायक वही परिवार विपत्ति के असीम सागर में डूबने लगे। क्या यह ईश्वर का अन्याय नहीं है।   वैसे माना तो यही जाता है कि ईश्वर पूर्ण समदर्शी हैं। हमेशा निष्पक्ष रहते हैं। फिर जो सुख और दुख सामने आते हैं, वे भी ईश्वर प्रदत्त नहीं होते अपितु कर्मफल होते हैं। कब किस जन्म का किया शुभ कर्म किसी को आनंद देने लगता है। तो कब किसी जन्म की भूल सामने आकर अपार कष्ट दे जाती है। सौम्या का विवाह हुए कुछ महीने ही गुजरे थे। ठाकुर रोशन सिंह जो कि कालीचरण के अन्नदाता थे, जिनकी कृपा से वह प्रधानी का सुख भोग रहा था, पुश्तैनी जायदाद का मुकदमा हार गये। पुश्तैनी जायदाद में परिवार के बीसियों की भागीदारी को अदालत ने स्वीकार कर लिया। ठाकुर साहब की शान वह हवेली कई टुकड़ों में बट गयी। इतने छोटे छोटे भाग हो गये कि खुद ठाकुर रोशन सिंह ने अपना हिस्सा दूसरे परिजन को बेच दिया। जब गांव में रहना ही नहीं है तो फिर गांव में घर रखक...

ऐसी शादी से भगवान बचाए

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हास्य-व्यंग्य  ऐसी शादी से भगवान बचाए  1980 की बात है। हमारे गांव में एक लड़की को देखने के लिए कुछ लड़के वाले आये । पहले घरों में बहुत सारा सामान नहीं होता था । मौहल्ले से ही अच्छे अच्छे बर्तन, टेबल, कुर्सी और दूसरे आइटम इकठ्ठे किये जाते थे जिससे लड़की वालों का स्टेटस बढिया नजर आये । यहां पर भी मौहल्ले के अच्छे अच्छे बर्तन , बिस्तर , कुर्सी , टेबल सब उनके घर पहुंचाये गये । लड़की वाले खानदानी लगने चाहिए चाहे घर में चूहे व्रत करते हों । लड़के वाले भी कम खानदानी नहीं थे। सबने जो कपड़े पहने थे वे भी उनके पड़ौसियों ने ही दिये थे । कहा कि खुद के फटे कपड़े पहन कर जायेंगे तो गांव की क्या इज्जत रह जायेगी ? फिर कोई भी आदमी अपनी बेटी का ब्याह गांव में नहीं करेगा । कितना भाईचारा था सबमें उन दिनों । वैसे चाहे आपस में एक दूसरे की टांग खींचने में सारा दिन निकाल देते थे । लेकिन मजाल है कि गांव की इज्जत पर कोई कीचड़ उछालने की हिम्मत करे ? तो ऐसे में वह दूल्हा पूरे गांव की इज्जत का रखवाला होता था ।  खैर, दोनों पक्ष ताम-झाम देखकर राजी हो गये और रिश्ता तय हो गया । लड़के वाले बड़े "गं...

बहू पेट से है भाग : 7 ब्रेड पिज्जा और घाट की राबड़ी

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रितिका ने ब्रेड पिज्जा सर्व किया । प्रथम ने तो बिना चखे ही ब्रेड पिज्जा का बखान करना शुरू कर दिया । यह देखकर लाजो जी से जब रहा नहीं गया तो वे तपाक से बोली "हां, ब्रेड पिज्जा तो आज पहली बार ही बना है ना नाश्ते में ?  पर ये बता कि जब तूने इसे चखा ही नहीं तो तुझे कैसे पता चला कि यह कैसा बना है" ?  "सिंपल मम्मा , इसका रंग रूप देखकर हर कोई बता सकता है कि यह कितना स्वादिष्ट बना होगा ? क्यों पापा , है ना यह मम्मा की तरह खूबसूरत" ? बड़ी ही चालाकी से प्रथम ने तूफान का मुंह पापा की ओर मोड़ दिया था । बच्चे लोग भी बेचारे अमोलक जी को बेवजह ही फंसा देते हैं । बेचारे अमोलक जी , न उनसे निगलते बनता है और ना ही उगलते । मगर यहां तो सिर बिल्ली के जबड़ों में फंसे चूहे की तरह था इसलिए कहना पड़ा "वाकई,  आपकी तरह ही खूबसूरत बना है , देवी जी" । यह कहकर उन्होंने अपनी जान बचाई  ।  जब प्रथम ने ब्रेड पिज्जा की तारीफ लाजो जी की खूबसूरती से की तो रितिका नाराज हो गई और इशारों ही इशारों में उसने प्रथम को बता दिया कि उसे आज सोफे पर ही सोना पड़ेगा । बस, आदमी यहीं मात खा जाता है । बे...

अवसर

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ये आदमी जो दौड़ रहा है और भटका सा दिन में लगता है वो शांत रात्रि में संभल जाता है जैसे कोई संत बन जाता है खुद को समझा देता है ख्वाहिशों को जज्बा देता है वो खुद को यही महसूस कराता है के यही तो जीवन हैं उतारचढाव ,धूप छांव, और न जाने क्या क्या  लेकिन धूप की हथेली भी स्वर्णिम प्रतीत होती है गर महसूस करे तो दुःख के क्षण भी तो जीवन के क्षण हैं और जीवन के अमूल्य अवसर है ये क्षण का भी उन्माद से स्वागत हो हर एक पल में कर्म ही पारसमणि हो जीवन तो अद्भुत यात्रा है  में को मिलने की और, में से जुदा होने की हर क्षण अपना गर्व पूर्ण हो हर दम अपना गरिमा पूर्ण हो रंजना झा

नया अवसर

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गुज़र गया कोई पल बुरा तो, कभी भी ये सोच घबराना ना, आएगा फिर नया अवसर कल, हौंसला बस अपना गंवाना ना। बदल जाती हैं कभी तकदीरे भी, हाथों में छुपी गहरी लकीरें भी, बस ये सोच काम करते जाना तुम, टूटन को मन में कभी बसाना ना। गुज़र गया कोई पल बुरा तो, कभी भी ये सोच घबराना ना। शाश्वत नहीं कुछ भी दुनिया में, बदलाव से कभी ढह जाना ना, ऐसे ही चलती ही ये सृष्टि सदा, भ्रम से अपना दिल बहलाना ना। गुज़र गया कोई पल बुरा तो, कभी भी ये सोच घबराना ना। पूजा पीहू

हिन्दी पत्रकारिता दिवस-पत्रकारों को मेरा नमन

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हिन्दी पत्रकारिता को जन्म दिए शुरु किया, राममोहन राय ने पत्रकारिता को धार दिया। ये पत्रकार होते हैं इस समाज के सच्चे प्रहरी, कहाँ हो रहाहै क्या ?रखें नजर अपनी गहरी। पत्रकार न हों धरती पर तो कुछ पता चले ना, कहाँ होरहाहै क्या कुछ जरा भी पता लगे ना। बड़ेही खोजी होते हैं बाल की खाल निकालें, ऐसे कलम चलाते स्वयं ख़बरें लिखें निकालें। कभी कभी स्टिंग ऑपरेशन भी करें निकालें, फंस जाते हैं बड़े बड़े जब ये कैमरा निकालें। कलम चल जाये इनकी तो होये जग जाहिर, ऐसी खबर बना देंगे यह खबरों के हैं माहिर। लोक तंत्र के कहलाते हैं यही तो चौथे स्तंभ, कुछ ये विनम्र शालीन होते कुछ में रहे दम्भ।  कुछ सच्ची बात हैं करते कुछ तो लाई चुपड़ी, बिना बातके नहीं उछलती यूँ ही कोई पगड़ी। होतेहैं सम्माननीय व समाज में आदर के पात्र, कुछ के कर्म धर्म हैं ऐसे जो इसके नहीं सुपात्र।   कुछ की पत्रकारिता है ऐसे माला उन्हें पहनायें, कहीं मिलें दिखें तो पब्लिक अपने सिर बैठाये। तुम सच्ची खबरों के स्वामी देश के होे पहरेदार, कलम चले सदा सच खातिर बने रहें जिम्मेदार। होते हैं जो स्वामिभक्त सरकारी ये नीति बखानें, दिखे गड़बड़ी तो एक ही...

पा लूँ

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बड़ी फुरसत लिए   तेरी फुरसत के इंतजार में हूँ कान्हा। थोड़ी फुरसत से एक नजर डालना कान्हा मेरी एक उम्र की प्रतीक्षा हैं कान्हा। तू मशरूफ़ है अपनी दुनिया में पर मेरी तो दुनिया भी तू है कान्हा। तेरा नाम लेना तेरे दर्शन पाना तुझे निहारना और अंत में तुझ में ही तो समाना है कान्हा।  तू भगवान नही है मेरा जो तेरी पूजा करूँ रोली, अक्षत, कलावे और भोग से तुझे प्रसन्न करूँ। तू मेरा वो अलौकिक प्रेम है कि बस तेरा नाम लूँ और तुझे हृदय में पा लूँ। गरिमा राकेश गर्विता कोटा राजस्थान

नया अवसर

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मिले जो असफलता जीवन में हार मा न कर रुकना नही चाहिए करो तलाश दूसरे मौके की एक बार हार जाने से जीवन खत्म नहीं हो जाता पहिया जीवन का थम तो नही जाता निराशा को छोड़ कर नए उत्साह के साथ त्तलाश में नए मौके की         जी जान से जुट जाओ कभी न कभी मिलेगा जरूर बस उसे पहचानने को नजर पारखी चाहिए जीवन है अनमोल व्यर्थ ना इसे गवाओं    तलाश कर नया अवसर सफलता की सीढ़ी चढ़ जाओ।

परिस्थितियां और महिलाएं

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परिस्थितियां महिलाओं को मजबूत  बना देती है,  एक अलग सा आत्मविश्वास जगा देती है,  तप तप के पक जाती है इतना कि चमका लेती है खुद को ,  खुद के  लिए सजने लगती है, रंग भी चुनने लगती है,      रुठना, रोना सब छोड़ देती है,  उलझनों को कर के एक किनारा, खुद को सुलझा लेती है,   बंद कमरो से निकल कर खुले आसमानों मे उड़ती है,        लिख देती है जिंदगी के तजुर्बे को,  अकेले ही जूझने लगती है मुश्किलों से,  मन दुखी हो तो कुछ खास पका लेती है, कभी घुंघरुओ के साथ, तो कभी साज की ओर हो जाती है।।           पर हिम्मत नही हारती,  रोती तो खुब है पर दुख नही मनाती,  मुश्किलें कितनी भी हो सबको हरा देती ,  ये औरतें ही होती है जो हर परिस्थितियों ,       मे खुद को ढाल लेती है। ।

राजा राममोहन राय

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"केवल ज्ञान की ज्योति द्वारा ही मानव मन के अंधकार को दूर किया जा सकता है" -राजा राममोहन राय यह कथन राजा राम मोहन राय द्वारा दी गई है। सर्वप्रथम हमें राजा राम मोहन राय द्वारा दी गई ,इस कथन का आशय समझ लेना चाहिए। इस कथन का आशय यह है की सृष्टि के प्रारंभ से लेकर आज तक मनुष्य ने जो प्रगति की है उसका सर्वाधिक श्रेय मनुष्य की ज्ञान चेतना को ही दिया जा सकता है। मनुष्य में ज्ञान चेतना का उदय शिक्षा द्वारा ही होता है! बिना शिक्षा के मनुष्य का जीवन पशु तुल्य होता है। शिक्षा ही अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्ति दिलाकर ज्ञान का दिव्य आलोक प्रदान करती है। हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है।वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशदीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वतः समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार में मोह- मूर्छा को मिटाने के लिए नहीं, अपितु लोभ  और अशक्ति के परिणाम स्वरुप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण और अनैतिकता जैसे भारी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है।...

❤️🔥करले नाम अपनी🔥❤️

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❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥 काश कोई ऐसा तूफान आजाए जो मेरे रोके से भी ना रुके मिटा लेजाए आशियाना ज़िन्दगी की कुछ ना बचे ऐसी कोई सैलाब आजाए कुछ इस तरह मिटे हस्ती मेरी किसी के ख्यालो मे भी नाम ना रह जाए काश कोई मार दें खंजर सीने मे चुभती साँसो को कुछ करार आजाए महफिल की तमन्ना बहुत कर लिए अब ख्वाहिश गहरी तन्हाई का है बहा लेजाए दर्द मुझे इस दुनिया से जहा से मेरी  चीख भी किसी तक ना जापाए हाँ मान लिए हम बेवफा है तेरे नज़रो मे अब तो तेरे दिल को करारे चैन आजाए चली जाऊगी इतनी दूर तेरे आशियाने से मेरी परछाई तक भी तुम्हे नज़र ना आए नहीं देरही दोष किसीको ए दुनिया वालो खता मेरी ही है उसकी सज़ा भी मिल जाए खाली कसम कभी खुशियों का ख्वाहिश ना करेंगे मेरे हिस्से की खुशियाँ भी सबके नाम होजाए अपने ज़िन्दगी मे हम भी एक शायरा होते थे क्यों ना नैना आज फिर वो लम्हा दोहराया जाए करले नाम अपनी हर दर्द -ए -गज़ल ज़िन्दगी की मोहब्बत के दिलकश शायरी महबूब के नाम होजाए....!! ❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥❤️‍🔥 नैना.... ✍️✍️✍️

हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष

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बेटा हिन्द का हूँ मैं, मेरी पहचान है हिंदी माँ सरस्वती कि वीणा की झंकार है हिन्दी, बेटा हिन्द का हूँ मैं मेरी पहचान है हिंदी।। लहू में बहती सांसों की सोहं धड़कन प्राण है हिंदी बेटा हिन्द का हूँ मैं मेरी पहचान है हिंदी।। अविनि के कण कण से प्रवाहित निशा सांध्य दिवस शुभ प्रभात है हिंदी।। ह्रदय मेरा एक मंदिर है माँ भारती देवी  स्वर साधना आराधना मेरी है हिंदी बेटा हिन्द का हूँ मैं मेरी पहचान है हिंदी।।      पूरब से पश्चिम ,उत्तर से दक्षिण जन आकांक्षा आत्म पुकार है हिंदी।। हिमालय से ऊंचा सागर से गहरी हिन्द की भाग्य है हिंदी बेटा हिन्द का हूँ मै मेरी पहचान है हिंदी।।   प्रेम की भाषा मानवता रसधार है हिंदी अविरल निर्मल निर्झर कल कल कलरव गान है हिंदी। मैं बेटा हिन्द का हूँ मेरी पहचान है हिंदी।। संस्कृति सम्यक संस्कार है हिंदी हिन्द एक नेक की बंधन सूत्र  राष्ट्र का सार है हिंदी। बेटा हिन्द का हूँ मैं मेरी पहचान है हिंदी।। नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

नया अवसर

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शाम का समय था। सब पंछी अपने रैन-बसेरे की तरफ उड़ रहे थे। पूरे दिन की थकावट के बाद अपने घोंसले में जाकर कितना सुकून और‌ आराम मिलता है। अपने परिवार से मिलकर सारी थकान दूर हो‌ जाती है।  अंकुर समुद्र किनारे बैठा ये सब देख रहा था।‌ मन में एक हूक सी उठ रही थी कि चल अपने घर की तरफ चल। पर कदम थे कि उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे।‌ किस मुंह से घर जाएगा। नौकरी से हाथ धो बैठा था। अंकुर एक कुरियर कम्पनी में डीलीवरी का काम करता था। आमदनी इतनी तो नहीं थी पर गुज़र बसर हो जाती थी। वह एक छोटी सी चॉल में अपनी पत्नी साक्षी और दो साल की बिटिया नुपुर के साथ रहता था।‌  शाम ढल चुकी थी। वह भारी मन से उठा और घर की तरफ चल दिया। रास्ते भर सोचता जा रहा था कि क्या ज़रूरत थी उसे कम्पनी के मालिक के आगे ज़ुबान चलाने की। माना गलती उसकी नहीं थी पर सिर झुका कर पगार में से कटवा लेता। कम से कम नौकरी से हाथ तो नहीं धोना पड़ता।  गरीब को अमीर हमेशा दबा कर रखते हैं। और अपनी ग़लती गरीब पर थोप देते हैं।‌आज भी कुछ ऐसा ही हुआ था। अंकुर के बॉस के भाई की गलती के कारण एक बहुत मंहगा पार्सल टूट गया। पर उसने ना जाने कैसे स...

विनायक दामोदर सावरकर

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देशप्रेमी विनायक दामोदर सावरकर। 28 मई 1883 को भगूर में जन्में थे। वे पहले ऐसे  क्रांतिकारी स्नातक जो।  स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। इस कारण से उनकी स्नातक उपाधि। अंग्रेज सरकार ने उनसे वापस ले ली। वह दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य योद्धा। जिन्हें 2-2 आजीवन कारावास मिले। सजा किए पूरी फिरसे हुए वे सक्रिय। राष्ट्र जीवन में हो गए बड़े वह सक्रिय। हिन्दू धर्म एवं हिन्दू आस्था से अलग। राजनैतिक हिंदुत्व की स्थापना किये। इन्हें  वीर सावरकर नाम से भी जानें। इनके कृत्यों को लोग सम्मान दें माने। वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज में धर्मचक्र। बीच में रखें ये सर्वप्रथम सुझाव दिए। इस सुझाव को डॉ.राजेन्द्र प्रसाद जी। राष्ट्रपति जी सहर्ष स्वीकार कर लिए। ये सावरकर दुनिया के पहले कवि थे। जो अंडमान के एकांतवास में रहकर। जेल की दीवारों पर कील-कोयले से। वे अपनी राष्ट्र भक्ति कविताएं लिखा। इन कविताओं को वह याद भी किये। जेल से छूट 10हजार पंक्तियां लिखे। प्रथम राष्ट्रवादी चिंतन क्रांतिकारी थे। राष्ट्र के सर्वांगीण विकास को चिंतित। बंदी जीवन खत्म होते ही अस्पृश्यता। की कुरीतियों के प्रति आंदोलन किये। वी...

बहू पेट से है भाग :6आज नाश्ते में क्या बनाऊं

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"आज नाश्ते में क्या बनाऊं,मम्मी"  लाजो जी जैसे नींद से जाग पड़ी । इतनी मीठी आवाज ! उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह आवाज उसकी बहू रितिका की है । उसने कन्फर्म करने के लिये अपना चेहरा आवाज की ओर घुमाया । सामने रितिका ही खड़ी थी । उसके चेहरे पर प्रश्न साफ दिखाई दे रहा था । लाजो को अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि आज रितिका इतनी सुबह जग गई और नाश्ता बनाने के लिए नीचे आ गई । लाजो जी की उन निगाहों से रितिका को समझ में आ गया कि उनके मन में क्या चल रहा है, इसलिए रितिका ने अपने होठों को थोड़ा चौड़ा करते हुए, बालों को झटकते हुए और जुबान में मिसरी घोलते हुए पूछा "क्या बनाऊं मम्मी नाश्ते में" ?  अब तो शक की कोई गुंजाइश नहीं रह गई थी । लाजो जी के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं था । आज रितिका को क्या हो गया है ? इसे तो किचन के नाम से ही चक्कर आने लगते हैं । लेकिन आज तो सूरज खुद चलकर आया है उसके आंगन में । लाजो की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । आलसी बहू अपने-आप किचन में आ जाए तो हर सास खुशी से मर ही जायेगी । इसलिए बहुएं अपनी सासों का इतना ध्यान रखती हैं कि वे बुलाने पर ही किचन में आत...

बस एक निवाला

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वह पाषाण नहीं ,  उनके अंदर भी दिल है,  उनके दिलों में भी गम है ,  आंखें उनकी भी नम है।  देखो जरा वह पिता है, देखो जरा वह पिता के रूप में भगवान ही तो हैं।  बचपन में तुम्हारे जरा सी , रोने से जिनका सीना छल्ली छल्ली,  हो जाता था, आज उन्हें रोने की  हजार वजह दे दिया करते हो।  तुम्हें काबिल बनाने के खातिर,   पिता दिन रात मेहनत करते थें,  तुम्हारी हर एक ख्वाहिशें पूरी करने के खातिर ,ना जाने वह कितनी रातें बिना आराम किये गुजार दिया करते थें ।   बचपन में कहा करते थे,  बड़ा होकर कमाकर खिलाऊंगा,  बस एक बार, बस एक बार,  इन बातों को दोहराकर तो देखो।  बेशक मत उठाना जिम्मेदारियां उनकी बेशक मत उठाना जिम्मेदारियां उनकी   उन्हें किस चीज की जरूरत है,  ये पूछ कर तो देखो।  उनके हिस्से का भी खाकर पले बढ़े हो  बस एक निवाला ,बस एक निवाला अपने हिस्से का खिलाकर तो देखो।  वह कांटे नहीं जो चुभने लगे हैं , आज भी फूलों की पंखुड़ियों की भांति तुम्हारे पथ पर पड़े हैं।  देखो जरा वह पिता हैं, ...

🌹🌹अंधेरा🌹🌹

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🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹 ज़ब ज़ब ये दिल सुकून -ए -पल महसूस किया अगले ही पल गम ने आकर गले लगाया है कैसे कदम बढ़ाये हम ज़िन्दगी के राहो मे जहा तक भी देखो दूर दूर तक बस अंधेरा ही अंधेरा है हर किसीका ख्वाब होता है ज़िन्दगी मे खुशियों का हमने भी कुछ ऐसी ही सपने सजा रखे थे क्या पता था खुदा ने लिखना ही भूल गए तकदीर मे हमारे चंद रौशनी आस थीं हमें और मिला अंधेरा ही अंधेरा है पहले समझ नहीं पाए हम लेकिन अब अहसास होगया ये इश्क़ का दुनिया बस एक वहम का ठिकाना है अनकहे ख्वाहिश लेकर आते है दिलवाले इस जहाँ मे हर ख्वाहिश चूर होकर ज़िन्दगी मे मिलता बस अंधेरा है दुनिया का पता नहीं पर साँसे इस दर्द को महसूस करते है एक बार दिल टूटने के बाद लोग कहाँ जिन्दा रहते है गर कोई हमदर्द मिलता भी है राहें ज़िन्दगी मे तो वो भी चंद लम्हो के बाद परिंदे बदल लेते अपनी बसेरा है जहा से भी गुज़रता है वो हमारी चाहत की शिकायत लिए क्या कभी हमने भी उससे वफ़ा निभाया है..? शायद नहीं आया मुझे ही मोहब्बत के रसमे निभाना इसीलिए रब ने लिख दी हक़ मे मेरे अंधेरा ही अंधेरा है ज़िन्दगी की इस तन्हाईयो मे अब किसीका इंतजार ना रहा...

प्रसन्न व्यक्ति के लक्षण-भाग 1

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एक खुश इंसान के क्या लक्षण होते हैं ? इसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा तो नहीं। फिर भी एक प्रसन्न व्यक्ति में गुण मिलते। जिसे किसी यंत्र से नापा जा सकता नहीं। खुशी का मात्र अनुभव किया जा सकता। जीवन में उपलब्धियों से जो संतुष्ट रहता। आगे बढ़ने हेतु सदा ही प्रयत्नशील रहता। वहभी शांति भाव से आगे है बढ़ता रहता। वह उपलब्ध भौतिक  सुविधाओं से संतुष्ट। कभी न रहता है जीवन में वह तो असंतुष्ट। वो सीधा सादा सच्चा होता नहीं रहता दुष्ट। अपने में वो मस्त रहता अपने में वो संतुष्ट। लेतेहैं आनंद उसी में जो उसके पास होता। पास नहीं है जो उसके लिए दुःखी न होता। ईश्वर माता-पिता स्वजन प्रति कृतज्ञ होता। शुभाकांक्षियों मित्रों के प्रति है कृतज्ञ होता। लाभ लोभ हरेक आकर्षण नियंत्रित करता। अपनी इच्छाओं को भी वो संयमित रखता। क्या संभव है क्या नहीं है दोनों तौल करता। दोनों के अंतर को विवेकपूर्ण ढंग से करता। आंतरिक-वाह्य दोनों स्थिति में प्रसन्न रहता। हरदम मुस्कान का आभूषण है पहने रहता। हास्य को आंतरिक उल्लास  मान के रहता। उर का आनंद अभिव्यक्ति माध्यम ये रहता। जीवन में प्रसन्न व्यक्ति प्रेम देना ही जानता। अपने आप ...

देर रात तक

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अगर देर रात तक बिजली, यदि ना आए तो, जैसे शामत आ जाती है। इस भीषण गर्मी में, पसीने नदियों से, बहती हुई हमें भींगा जाती है। देर रात तक नींद आती नहीं, सुबह नींद पूरी होती नहीं, देर उठने से आलसी का ठप्पा लगाती है।        -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण