ये जिन्दगी
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
हम टूटे है हर तरफ से हर तरहां से
क्या क्या अब तुझे बताऊं ये ज़िन्दगी....
कितना सुनाऊं, कितना समझाऊं तुझे ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
जब भी उड़ना चाहूं मैं
तूं मेरे सिर से मेरा आसमां छीन लेती है....२)
छांव देखकर जिस राह से मैं चलूं
तूं उन राहों में पत्थर गाड़ देती है....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
ज़ख्मों पर मरहम तो लगाना आता नही है तुझे ये ज़िन्दगी....
फिर क्यों हजारों दर्द तूं दे जाती है ये ज़िन्दगी....
कभी मेरी एक भी बात तो तूं सुनती नही है ये ज़िन्दगी....
फिर क्यों इतना मुझे तूं सुना जाती है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
तेरा मेरा साथ तो है बहुत पुराना ये ज़िन्दगी....
बेपनाह नफ़रत का बीज कैसे बोया तूने ये ज़िन्दगी....
क्यों इतने इंतिहा लिए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
तक़दीर को मेरी तूं तुझसे जोड़ गई....
हाथों की लकीरें तूं हाथों में तोड़ गई....
क्यों आंखों में इतने आंसू छोड़ गई....
संग मेरे थोड़ा चलकर क्यों तो अपनी राह मोड़ गई....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िन्दगी....
हम टूटे है हर तरफ से हर तरहां से
क्या क्या अब तुझे बताऊं ये ज़िन्दगी....
कितना सुनाऊं, कितना समझाऊं तुझे ये ज़िन्दगी....
क्यों इतना परेशान किए जा रही है ये ज़िंदगी....
कु. आरती सिरसाट
बुरहानपुर मध्यप्रदेश
मौलिक एवं स्वरचित रचना।
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