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चाहिए

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उसे वैभव नही वैराग्य चाहिए उसे मंहगा चढा़वा नही बस राख चाहिए उसे अमृत पान नही विष पान चाहिए और मुझे तो बस महादेव का साथ चाहिए।

ये स्मृतियां

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ये स्मृतियां सुःखद"ये स्मृतियां " ये स्मृतियां सुःखद या दुःखद! जमीं होती परत दर परत! मन की भित्तियों पर । जैसे सेल्फ पर लगी किताबें ,, खङी रहती हैं अथक!       ✍️"पाम"   इन्हें हिलाना डुलाना होता है,, पङी धूल हटानी होती है। तब ये सज जाती हैं बिल्कुल नई सी,, और आंखों को सुकून दे जाती हैं।  मन की दिवारों की धूलें इतनी आसानी से नहीं जातीं।  पङी रहती हैं किसी कोने में  हमारे व्यक्तित्व को खोखला करते,, दीमक की तरह अन्दर ही अन्दर सबकुछ रूग्ण करते,, जब तलक सब गिर नहीं जाता... भरभराकर,,अचानक!! पर अचानक तो कुछ नहीं होता! दिखता जरूर है। कितना कुछ ढोता है मन... मान,,अपमान,,प्रतिष्ठा,,सम्मान।  सिर्फ नेह के बन्धन नहीं दिखते,, आज अभी जो हमारी मुट्ठी में है नहीं दिखता..        ✍️"पाम " हम देखते रहते बीता कल.. अपने ह्रदय की मिट्टी पर .. राख से कुछ उगाने का प्रयत्न करते! या भविष्य के त्रिशंकु की तरह  कुछ तो अधर में लटकाते रहते! मन के दरवाजे पर चिटकनी लगा कर  कुछ भी सुनना नहीं चाहते! बंद कर पङे रहते  रौशनी अवरूद्ध कर! पर अंधकार में...

वो डरावने सपने - भाग २

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सोनाली के हाथ से चाय का कप छूट गया और फर्श पर पड़ते ही टूट गया | क्या हुआ सोनाली तेरी तबीयत तो ठीक है ना ! हां मां सब ठीक है ये बोल कर वो घर से बाहर चली गई | पीछे से सोनाली कि मां आवाज देते रह गयी | नाश्ता तो कर ले बेटा... तब तक सोनाली स्कूटी स्टार्ट कर के ऑफिस के लिए निकल गई | इधर सोनाली कि मां मधु अपनी सास के पास जाकर रोने लगी | क्या हो गया है मेरी बच्ची को किसकी बुरी नजर लग गयी है ! हे भगवान अब तुम ही हमारी मदद करो |  मधु कि सास शंकुतला देवी ने अपनी बहू को समझाया और जल्दी से तैयार होने के लिए कहा | मधु - हम कहा जा रहे हैं मां ! मधु कि सास - हम ऐसी जगह जा रहे है जहां हमारी समस्या का समाधान होगा |  कुछ ही देर में दोनों एक मंदिर के सामने थे | सोनाली कि मां और दादी शंकुतला देवी अपने शहर चांपा के प्रसिद्ध काली माता के मंदिर में थे | दोनों मंदिर में प्रवेश करके माता के दर्शन करते हैं | दर्शन करने के बाद वहां के परोहित जी से मिलते हैं | प्रणाम परोहित जी!!! मधु और शंकुतला देवी ने एक साथ कहा | परोहित जी - मां काली आपकी सभी मनोंकामना पूर्ण करें | कहिए क्या समस्या लेकर आयी है ...

अंग तस्कर बन गया डॉक्टर-इंसान

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आज कितना बदल गया इंसान। पैसे के खातिर देखो है परेशान।      बेच रहाहै मानव अंगों को इंसान।      डर नहीं लगता देख रहा भगवान। मानव अंगों की तस्करी है करता। ऑपरेशन में अंग निकाला करता।     बेहोशी में मरीजों से खोट करता।     जान बचाने को खेला वह करता। डॉक्टर तो धरती के हैं भगवान। जाने क्यों फिर बनता है शैतान।    कितने करते स्वयं ही हैं अंग दान।    ब्रेन डेड बॉडी  का होता अंग दान। यहाँ तो धोखे से ले लेते हैं जान। पैसे के खातिर बेच रहे हैं ईमान।    मानव अंगों की तस्करी का रैकेट।    कुछ निकृष्ट मिल चलाएं ये रैकेट। हृदय लीवर किडनी का पैकेट। आँख कॉर्निया टिसू का पैकेट।         बना-बना कर बेंच रहे हैं इंसान।         औषधियों में अंग रखते शैतान। मानवता में करते जो अंग दान। जीते जी ही कर वे जाते हैं दान।      अंगों के व्यापार में भारी मुनाफा।      देख-2 तस्करों का हुआ इजाफा। बड़े-2 लोग रुपया भरा लिफाफा। जरूरी अंग खरीदें देके लिफाफा...

तस्करी

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वो ज़माने लद गए, जब मानवता ज़िन्दा थी। अब जीते जी इंसान, किसी काम का नहीं।। बैठें हैं कई आदमख़ोर, तस्करी की कश्ती में। बेच खाते है अंगों को, अमीरी की बस्ती में।। इनको फ़र्क़ नही जीने, या जीते जी मारने वाले से। ये बस दाम लगते है, महँगे खरीदने वाले से।। अस्पतालों के आड़ में, ये व्यापार चलते हैं। किसी की किडनी, लिवर, तो किसी का दिल बेच खाते है।। हज़ारो की कीमत को, ये करोड़ो तक ले जाते हैं। गरीब को हो ज़रूरत, तो खाली हाथ दिखाते हैं।। फ़रेब और चोरो की दुनिया के, ये बादशाह कहलाते है। ऑपरेशन की आड़ में, ये ऑर्गन फेल बताते हैं।। हेरा फ़ेरी अंगों की करते, पैसा खूब कमाते है। बड़े बड़े हस्तियों से मिलकर, ये तस्करी की दुनिया चलाते है।। ~राधिका सोलंकी (गाज़ियाबाद)

भुतहा मकान भाग 3 : साक्षात दर्शन

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एक विशेष प्रकार की आवाज सुनकर राजन की नींद खुल गई । आवाज ऐसी आ रही थी जैसे कोई सांप रेंग रहा है । उसने धीरे से अपनी आंखें खोली मगर उसे कुछ दिखाई नहीं दिया । उसे लगा कि उसने डर के मारे आंखें खोली ही नहीं थीं । उसने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी थोनों आंखें मसली फिर खोलीं । अभी भी कुछ दिखाई नहीं दिया । राजन सोच में पड़ गया कि आखिर माजरा क्या है ?  राजन के दिमाग में अचानक कौंधा कि वह शायद बिजली बंद करके सोया था । पर उसे याद आया कि वह तो बिजली जली छोड़कर बिसार लेटा था और हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था कि अचानक उसकी आंख लग गई । लेकिन पूरे मकान में ये अंधेरा क्यों है ? शायद लाइट चली गई होगी , राजन के मस्तिष्क में एक क्षण को यह बात आई लेकिन अगले ही पल उसने गर्दन घुमाकर बाहर की ओर देखा तो पता चला कि रोड लाइट जल रही थी । "ये क्या माजरा है" ? राजन को कुछ समझ नहीं आ रहा था । जब दिमाग में भय समाया हुआ हो तो फिर वहां बुद्धि और ज्ञान नहीं रहते हैं । दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है ।  राजन ने सोचा कि वह उठकर लाइट जला दे । क्या पता बंद करके सोया हो ? लेकिन उठना कोई कम जोखिम का काम था क्य...

अंगों का व्यापार

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मानवता की हद सारी यह पार करने लगा  अरे अब तो यह अंगों का व्यापार करने लगा   विद्या बुद्धि बल को शर्मसार करने लगा   मानवहोके मानव का संहार करने लगा   धरती का भगवान मानकर पूजा जिसे है जाता   जीवन उसके हाथ सौंपते  जिससे ना कोई नाता   वह भी जान बचाने में है पूरी जान लगाता   खुशियां देता है सबको तो दुगनी खुशियां पाता   फिर भी कुछ मक्कारों को यह जीवन नहीं है भाता   पैसों का लालच उनसे यह गलत काम करवाता   अंग तस्करों से मिलकर वह दानव फिर बन जाता   अपने कौशल को फिर वह बद नीयति में है लगाता   करते हैं खिलवाड़ जान से जो चंगुल में आता   तब मरीज की जान से उसका रह जाता ना नाता   तस्कर गैंग में शामिल होकर जेबे भारी करने लगा   अरे अब तो यह अंगों का व्यापार करने लगा                      प्रीति मनीष दुबे     .              मण्डला मप्र