अंग तस्कर बन गया डॉक्टर-इंसान



आज कितना बदल गया इंसान।
पैसे के खातिर देखो है परेशान।

     बेच रहाहै मानव अंगों को इंसान।
     डर नहीं लगता देख रहा भगवान।

मानव अंगों की तस्करी है करता।
ऑपरेशन में अंग निकाला करता।

    बेहोशी में मरीजों से खोट करता।
    जान बचाने को खेला वह करता।

डॉक्टर तो धरती के हैं भगवान।
जाने क्यों फिर बनता है शैतान।

   कितने करते स्वयं ही हैं अंग दान।
   ब्रेन डेड बॉडी  का होता अंग दान।

यहाँ तो धोखे से ले लेते हैं जान।
पैसे के खातिर बेच रहे हैं ईमान।

   मानव अंगों की तस्करी का रैकेट।
   कुछ निकृष्ट मिल चलाएं ये रैकेट।

हृदय लीवर किडनी का पैकेट।
आँख कॉर्निया टिसू का पैकेट।

        बना-बना कर बेंच रहे हैं इंसान।
        औषधियों में अंग रखते शैतान।

मानवता में करते जो अंग दान।
जीते जी ही कर वे जाते हैं दान।

     अंगों के व्यापार में भारी मुनाफा।
     देख-2 तस्करों का हुआ इजाफा।

बड़े-2 लोग रुपया भरा लिफाफा।
जरूरी अंग खरीदें देके लिफाफा।

      गरीब बेचारा मर जाता है बेनाम।
      होता नहीं फ्री में उसका है काम।

अंग दान में लेते जो भी संस्थान।
गरीबों को जरूरत पे देते न दान।

    इंसानियत की सारी हदें पार करे।
    मानव अंगों का बुरा व्यापार करे।

चिकित्सा में पढ़ाई ये बेकार करे।
निज पवित्र पेशे को शर्मशार करे।
       
     मानवता का गला घोंटता इंसान।
     अंग तस्करों से  मिला बैठा मान।

वाह रे! इस धरती के भगवान।
ऐसे क्यों कर रहे हो गंदे काम।

     छोड़िये अंग तस्करी का ये काम।
     आप तो धरती धरती के भगवान।
    
      


रचयिता :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

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