वो डरावने सपने - भाग २


सोनाली के हाथ से चाय का कप छूट गया और फर्श पर पड़ते ही टूट गया | क्या हुआ सोनाली तेरी तबीयत तो ठीक है ना ! हां मां सब ठीक है ये बोल कर वो घर से बाहर चली गई | पीछे से सोनाली कि मां आवाज देते रह गयी | नाश्ता तो कर ले बेटा... तब तक सोनाली स्कूटी स्टार्ट कर के ऑफिस के लिए निकल गई | इधर सोनाली कि मां मधु अपनी सास के पास जाकर रोने लगी | क्या हो गया है मेरी बच्ची को किसकी बुरी नजर लग गयी है ! हे भगवान अब तुम ही हमारी मदद करो | 

मधु कि सास शंकुतला देवी ने अपनी बहू को समझाया और जल्दी से तैयार होने के लिए कहा | मधु - हम कहा जा रहे हैं मां ! मधु कि सास - हम ऐसी जगह जा रहे है जहां हमारी समस्या का समाधान होगा | 

कुछ ही देर में दोनों एक मंदिर के सामने थे | सोनाली कि मां और दादी शंकुतला देवी अपने शहर चांपा के प्रसिद्ध काली माता के मंदिर में थे | दोनों मंदिर में प्रवेश करके माता के दर्शन करते हैं | दर्शन करने के बाद वहां के परोहित जी से मिलते हैं | प्रणाम परोहित जी!!! मधु और शंकुतला देवी ने एक साथ कहा | परोहित जी - मां काली आपकी सभी मनोंकामना पूर्ण करें | कहिए क्या समस्या लेकर आयी है ? 

शंकुतला देवी ने अपनी बहू कि ओर देखते हुए कहा - परोहित जी ये मेरी पोती सोनाली कि जन्म कुडंली है और ये उसकी तस्वीर आप थोड़ा देख कर बताइये कि मेरी नातिन कि शादी का योग बन रहा है या नहीं | उसके लिए जितने भी रिश्ते आये उनके साथ कुछ ना कुछ अनहोनी हो जाती है और रिश्ते जुड़ने से पहले ही टूट जाता है | क्रिपा कर के आप हमारी समस्या का समाधान करें | 

पुरोहित दयानंद जिनके चेहरे पर एक अलग ही तेज है  सोनाली कि कुडंली को देखकर चिंतन कर रहे है | वही दूसरी तरफ सोनाली ऑफिस पहुंच कर काम करने का उपक्रम कर रही है | सुबह वाली घटना से परेशान वो थोड़ी विचलित हो गयी इसलिए सोनाली का काम में मन नहीं लग रहा | हैलो सोनाली पीछे से एक जानी पहचानी आवाज आई ! ओह हाय प्रशांत ! प्रशांत और सोनाली सहकर्मी है एक ही ऑफिस में साथ काम करते हैं | प्रशांत सोनाली को मन ही मन पंसद करता है और सोनाली भी उसे पंसद करती है लेकिन ये बात उसने प्रंशात पर कभी जाहिर नहीं होने दी | 

प्रशांत भी सोनाली कि दोस्ती खोना नहीं चाहता था इसीलिए उसने अब तक सोनाली को प्रपोज नहीं किया और सोनाली प्रशांत के साथ कुछ अनहोनी ना हो इसीलिए चुप है | 

इधर मंदिर में पुरोहित जी सोनाली कि जन्म कुडंली को देखकर कुछ विचार कर रहे थे कि अचानक उन्होंने शंकुतला देवी कि ओर देख कर कहा  - समस्या जितनी छोटी दिख रही है वैसी है नहीं ये तो बस शुरूआत है | सोनाली के विवाह का योग तो है लेकिन उसे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा | मां काली ने चाहा तो सब अच्छा होगा | 

अच्छा किया जो आप समय रहते यहां आ गये | आज से दो दिन बाद मैं आपके घर आउंगा | मुझे आपके घर में शांति पूजा करनी पड़ेगी | पुरोहित जी ने  पूजा कि  सामान की लिस्ट  शंकुतला देवी को देते हुए कहा ये सामान आप मंगा लेना | बाकि के विशेष सामान मैं लेकर आउंगा  | 

पुरोहित जी कोई डरने वाली बात तो नहीं है ना ?  इस बार सवाल सोनाली कि मां ने किया | आप ईश्वर पर भरोसा रखे सब ठीक होगा और हां इस पूजा में सोनाली को बैठना है | अब आप जा सकती हैं | प्रणाम परोहित जी दोनों ने कहा और घर आ गई | 

पुरोहित दयानंद कुछ विचलित से थे जिसे उनके शिष्य ने गौर कर लिया था | शिष्य - महाराज लगता है कोई बड़ी समस्या है इसलिए आप इतने परेशान हो रहे हैं | 

पंडित दयानंद - जितना हम सोच रहे हैं समस्या उससे काफी बड़ी है | छाया ग्रह राहू और केतु कुंडली में जिस ग्रह के साथ होते है या तो उसके प्रभाव को दूषित कर देते हैं या समान व्यवहार करने लगते है | सोनाली कि कुडंली में राहू सप्तम भाव में विराजमान है और बाकिे ग्रह कि दशा भी ठीक नहीं है | इसका सिर्फ़ एक मतलब है कि कोई बुरी शक्ति है जो सोनाली के पीछे पड़ी हैं और उसे नुकसान पहुंचा सकती है | हमें वहां जाकर देखना है कि ऐसी कौन सी काली शक्ति है जो उस घर में है | 

शिष्य - जी महाराज 🙏  

ऑफिस में प्रशांत और सोनाली में बैठे है ! प्रशांत सोनाली से -तुम भी आज आज लंच बॉक्स लाना भूल गयी !मैं भी भूल गया यार! चलो ना बाहर पास में ही एक अच्छा सा रेस्टोरेन्ट है चलो कुछ खा कर आते हैं | मुझे तुम्हारा तो पता नहीं लेकिन मैं बेहोश हो जाउंगा | प्रशांत ने फनी फेस बनाते हुए कहा | जिससे देखकर सोनाली हंसने लगी | चलो तुम्हारे चेहरे पर हंसी तो आई  ! प्रशांत अपने आप से बोलता है!  

सोनली प्रशांत के साथ जा ही रही थी कि उसे अपने पास किसी के होने की अनूभुति हुई और अचानक ही उसे ठंड लगने लगी | 
सोनाली - ये अचानक से मुझे ठंड क्यों लग रही है और मुझे ऐसा क्यूं लग रहा है कि कोई मुझे देख रहा है | वो अपने आस पास देखती है तभी उसे किसी मरे हुए जानवर कि बदबू आती है | सोनाली अपना मुँह दुपट्टे से ढकती है , उसे उबकाई सी होने लगी | तभी पीछे से प्रशांत ने आवाज दी!  

तुम अभी तक यही खड़ी हो और मैं कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ | अब चलो भी और तुमने अपना मुँह क्यों ढक रखा है | प्रशांत हंसते हुए कहता है मैं दिखने में इतना भी बुरा नहीं हूं कि तुम अपना मुँह ढक रही हो...हा.. हा..हा | 

प्रशांत ये सब बोल रहा था और इधर सोनाली को अपने सामने काला धुंआ उठता हुआ दिखाई दे रहा था | उस काले धुंए ने सोनाली के पास आ कर उलके कान में फुसफुसा कर कहा.... शयामली...और सोनाली के कान में किसी के चीखने कि आवाज आई ! आवाज इतनी कर्कश थी कि सोनाली को ऐसा लगा कि किसी ने गरम लोहा पिघला कर उसके कान में डाल दिया हो  और सोनाली बेहोश होकर गिर जाती है | "धड़ाम " 



क्रमश: 
रचयिता - श्वेता सोनी

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