कौम
सुबह नाश्ते की टेबल पर संदीप चौहान ने मोबाइल खोला और अपने बेटे राहुल को व्हाट्सएप चैट पर आया हुआ एक संदेश पढ़कर सुनाने लगे,
"ये शर्मा जी भी कमाल हैं, पता नहीं कहाँ से इतनी महत्वपूर्ण जानकारियां लेकर आते हैं, देख राहुल शर्मा जी ने ताजमहल के बारे में क्या भेजा है, लिखा है कि ताजमहल पहले एक हिन्दू मंदिर था, कमाल है यार"
"बिल्कुल ही गलत जानकारी है ये, बिना किसी शोध के आप कैसे किसी तथ्य को गलत ठहरा सकते हो"
शालिनी ने उनकी प्लेट में ब्रेड रखते हुए कहा।
"संदीप आप कब से इन सब फ़ालतू की इंफोर्मेशन्स को सही मानने लगे?"
"शालू माना कि तुम हिस्ट्री की प्रोफेसर हो पर और भी कुछ लोग हैं जो सच्चाई को समाज के सामने लाने के लिए मेहनत कर रहे हैं, अभी दो दिन पहले ग्रुप एडमिन खत्री जी ने चौहानों का इतिहास भेजा था, कुछ चीज़ें तो मुझे आजतक पता ही नहीं थीं"
उनका १५ साल का बेटा राहुल जो बिल्कुल भी इन बातों में ध्यान नहीं दे रहा था, वो मोबाइल में गेम खेलने में बिजी था।
"राहुल जल्दी नाश्ता करके स्कूल की ऑनलाइन क्लासेस को अटेंड करो और ये मोबाइल में गेम खेलना बन्द करो"
"क्या मॉम ! थोड़ा सा ही तो गेम खेलता हूँ फिर ५ घंटे लगातार बोरिंग ऑनलाइन क्लासेज"
"संदीप ये लॉकडाउन कितने दिन तक यूँ ही रहेगा, जीवन एकदम नीरस और ऊबाऊ हो गया है"
"लॉकडाउन आप लोगों की शारीरिक सुरक्षा के लिए है जिसके लिए हम पुलिस वाले दिन-रात सड़कों पर चिलचिलाती हुई धूप में ड्यूटी कर रहे हैं"
"फिर भी कोई तो विभागीय सूचना तो होगी आपके पास"
"शालू लॉकडाउन अभी कम से कम २ महीने और रहेगा और धीरे-धीरे ओपन किया जायेगा वो भी कोरोना केसेस के आधार पर"
" हे ईश्वर ! कितने दिन तक घर में कैद टेलीविजन के बोरिंग सीरियल देखूँ"
शालू ने संदीप को चाय देते हुए बोला।
संदीप चौहान जो मुज्जफरनगर के खतौली में थानाध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं, वो बहुत ही निर्भीक और सुलझे हुए इंसान हैं अभी २ हफ्ते पहले उनकी मुलाकात कस्बे के अनुराग शर्मा से मोर्निंग वॉक के दौरान हुई और उन्होंने संदीप को अपनी "मातृभूमि" संस्था से जोड़ लिया।
किसी भी जनसेवक का इस तरह की किसी भी सामाजिक संस्था जोकि किसी धर्म विशेष के लिए कार्य कर रही हो उससे जुड़ना क़ानूनन गलत है।
उनकी पत्नी शालिनी जो शहर के महाविद्यालय में हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं, उनको इन सब चीज़ों से दूर रहने की सलाह देती रहती हैं, शालिनी अक्सर उनसे कहती हैं कि अगर आप किसी समुदाय विशेष के लिए मन में द्वेष पाले हो तो आप कभी भी न्याय नहीं कर पाओगे।
आज सुबह संदीप जैसे ही थाने पहुंचे,
"जय हिंद सर!
"सर आज बड़े बाजार की मस्जिद के पास से २० लोंगों को उठाया है, ये लोग नमाज़ पढ़ने की कोशिश कर रहे थे"
कॉन्स्टेबल कुलदीप ने आकर उन्हें सूचना दी।
"मस्जिद के बाहर से उनको पकड़ने की क्या जरूरत थी, अगर वो मस्जिद के अंदर मिलते तो उनको गिरफ्तार करना ठीक भी था"
"नहीं सर सूचना मिली थी कि इमाम आदिल हुसैन लोगों को नमाज़ के लिए उकसा रहे हैं"
"देखो कुलदीप, मैं हुसैन साहब से खुद मिला हूँ और उनसे सहयोग के लिए बातचीत भी हुई थी, शायद तुमको कोई गलत खबर मिली है"
कुलदीप जोकि अभी ८ माह पहले ११ कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद पुलिस में भर्ती हुआ था, उसको भर्ती के लिए उसे ८ लाख की मिठाई खिलानी पड़ी थी, कुलदीप स्वभाव से बहुत ही धूर्त और चाटुकार नवयुवक है।
अचानक संदीप के फोन में शर्मा जी का मैसेज आया
"एहसान-फरामोश"
जिसमें देश के हर कोने से नमाज़ को लेकर हुई घटनाओं का लेखा-जोखा था,जिसको एक जिहाद का नाम दिया गया था।
पूरा मेसेग पढ़ने के संदीप के चेहरे के रंग बदल गए।
"कुलदीप सबकी एक लिस्ट बनाओ, पूरा पता, क्या काम करते हैं सब और थोड़ी सी सबकी सेवा भी करो।"
"जी सर"
कुलदीप को मानो अपनी मेहनत का पुरस्कार मिल गया था।
इसी बीच संदीप ने टेबल पर पड़ी हुई लंबित केसों की फाइलें देखनी शुरू कर दी।
तभी टेबल पर रखा फ़ोन बज उठा
"संदीप,आनंद बोल रहा हूँ"
"जय हिंद सर" संदीप कुर्सी से खड़े हो गये,लाइन पर एस.एस. पी.आनंद किशोर यादव थे।
"तुम लोगों ने बड़े बाजार से कुछ लोगों को उठा कर बिना किसी वजह के लॉकअप में डाल रखा है,इतने सेंसटिव टाइम में तुम इतने लापरवाह कैसे हो सकते हो,अभी उन सबको छोड़ो औऱ मुझे १ घंटे में तुम्हारा स्पष्टिकरण चाहिये और ध्यान रहे आगे से इस टाइप का कुछ भी हुआ तो मुझे तुम्हारे ऊपर विभागीय कार्यवाही करनी पड़ेगी"
"जी बिल्कुल सर ! सॉरी सर ! आपको आगे से शिकायत नहीं मिलेगी,
जय हिंद सर"
"जय हिंद आई एम इन वेटिंग फॉर योर जस्टिफिकेशन वीथिन वन ऑवर"
संदीप ने कुलदीप को बुलाया
"सर लिस्ट"
"सबको छोड़ दो अभी और गाड़ी में बिठाकर उन सबको उनके घर तक छोड़ के आओ"
"सर क्या हुआ ? आनंद सर का फोन आया था क्या ?आप जितनी भी समझ नहीं है उनमें लगता है मेरी तरह भर्ती हुए हैं"
कहकर कुलदीप खीझता हुआ लॉकअप की तरफ चला गया।
आरोपियों की लिस्ट को देखते ही संदीप चौक उठे,
मोहम्मद रेहान खान
पिता का नाम- मोहम्मद निसार खान
मोहल्ला - ज्योति नगर
संदीप ने ऑफिस की खिड़की से जाते हुए २० लोगों को देखा, उनमें एक १६ साल का दुबला- पतला गोरा लड़का जीन्स-टी शर्ट्स में दिखा,वो रेहान था,उसके चेहरे पर कुछ निशान से दिखे शायद वो निशान थोड़ी देर पहले हुई पुलिस सेवा के थे।
संदीप कुर्सी पर आकर बैठ गए,आज वो खुद को किसी गुनहगार जैसा महसूस कर रहे थे।
संदीप की आँखों के सामने १३ साल पुरानी घटना चलचित्र की तरह आ गयी,जब वो मुज्जफरनगर से १५ किमी दूर एक गांव की पुलिसचौकी पर चौकी-इंचार्ज थे,पुलिस चौकी में उनके अतिरिक्त २ कॉन्स्टेबल और थे।
"सर अभी-अभी सूचना मिली है कि पास के गांव सुणौली में ठाकुरों और जाटों में फायरिंग हो रही है,२ लोगों को गोली भी लग गयी है"
घबराये हुए कांस्टेबल जयवीर ने आकर उन्हें सूचना दी।
संदीप ने घड़ी को देखा उस समय रात्रि के ११:४५ हो रहे थे।
"तुम लोग जल्दी तैयार होकर मोटर साइकल निकालो"
संदीप ने कॉन्स्टेबल को आदेश देकर घटना की सूचना मुज्जफरनगर कोतवाली को भेज दी।
घनघोर काली रात और कच्चा ऊबड़-खाबड़ रास्ता मोटरसाइकिल की लाइट उस घने अँधेरे को दूर तक चीर रही थी।
उस गाँव के भौगोलिक ज्ञान से अनिभिज्ञ संदीप २५ मिनट में गाँव के पास पहुंच गए।
गाँव के प्रधान संदीप के परिचित थे,परिचय शायद राजपूत होने से था।
गहरे अँधेरे में गोलियों की आवाज रात के भयानक सन्नाटे को और भी भयानक बना रही थीं।
संदीप और उनके साथ के दोनों कांस्टेबलों ने मोटरसाइकिल को गाँव से २०० -२५० मीटर पहले ही सड़क के किनारे खड़ा कर दिया और वो तीनों धीरे-धीरे गांव की ओर बढ़ने लगे।
संदीप को सर पर मंडरा रहे खतरे का आभास भी नहीं था कि अचानक से उनको निशाना लेकर किसी ने फायरिंग शुरू कर दी,गोली संदीप की बायें हाथ से रगडती हुई उनके कॉन्स्टेबल विजयपाल के कंधे में जा लगी।
अचानक से हुए इस हमले ने उनको हिला कर रख दिया,वो तीनों अचानक से सड़क के नीचे गड्डे में बैठ गए,गोलियां को चलना अब भी बंद नहीं हो रहा था शायद इस जातीय हिंसा में संदीप को मारने की कोशिश की जा रही थी।
कॉन्स्टेबल के कंधे से ज्यादा खून बह रहा था,संदीप ने दूसरे कॉन्स्टेबल जयवीर को उसे अस्पताल ले जाने को बोला और उनसे कारतूस लेकर कवर फायरिंग देनी शुरू कर दी।
संदीप की इस कवर फायरिंग से छत पर बैठे दो लोगों को गोली लग गयी।
दोनों कॉन्स्टेबल को वहाँ से निकाल कर संदीप ने राहत की साँस ली तभी एक गोली संदीप के दायें कंधे को जख़्मी करती हुई निकल गयी।
संदीप ने फायरिंग करते हुए गाँव के अंदर जाना शुरू कर दिया क्योंकि कारतूस भी ज्यादा नहीं बचे थे।
उसी बीच २०-२५ लोग छत से नीचे उतर कर उनको सड़क के किनारे आकर ढूढ़ने लगे।
संदीप की जान खतरे में थी कि तभी किसी ने संदीप को अपने कंधो पर उठा लिया और वहाँ से गाँव के अंदर एक घर में लाकर लिटा दिया।
संदीप को बहुत दर्द हो रहा था लेकिन गोली शरीर में नहीं फंसी थी।
बहते हुए खून और असीमित दर्द से संदीप का बुरा हाल हो रहा था और तभी गर्म पानी से किसी ने संदीप के जख्मों को धोना शुरू कर दिया और संदीप बेहोश हो गए।
जब आँख खुली तो संदीप ने खुद को अस्पताल के बेड पर पाया, उनकी पत्नी और उनका बेटा पास में ही खड़े थे।
"आप का बहुत-बहुत धन्यवाद भाई साहब,मैं इस जीवन में हमेशा आपकी अहसानमंद रहूँगी, आज आपने मुझे विधवा होने से बचा लिया "
कहकर शालिनी सामने सादा से कपड़ो में खड़े व्यक्ति के पैरों में बैठ गयी और उनके पैर छू लिए।
बग़ल में खड़ी सलमा ने उन्हें उठा के गले लगा लिया।
बाद में शालिनी ने संदीप की बताया कि उनकी जान निसार खान ने अपनी और अपने परिवार जान ख़तरे में डाल कर बचायी है।
उस रात गाँव में जातीय रंजिश में ४ लोगों की जान गयी,पुलिस ने पूरा गाँव सील कर रखा था।
निसार खान पास के गाँव में सरकारी अध्यापक थे,उनके घर में माँ, पत्नी के अलावा एक बेटा-बेटी थे।
लगभग १० दिन बाद संदीप स्वस्थ हो गए।
संदीप की जान बचाने के कारण गाँव का एक वर्ग विशेष निसार खान से नाराज हो गया था,पत्नी की सलाह पर निसार खान ने अपने परिवार की सुरक्षा को ध्यान में रखकर अपना स्थान्तरण खतौली में करा लिया।
संदीप से निसार खान के रिश्ते ख़ून के रिश्ते से भी बढ़कर हो गये और वे दोनों एक-दूसरे से पारिवारिक और सामाजिक रूप से अटूट बन्धन में बंध चुके थे।
बाद में कुछ समय के बाद संदीप को उनकी बहादुरी के लिए प्रोन्नति और पुरस्कार मिला,जिसको हाथ में लेते हुए संदीप के मुंह पर एक ही नाम आया "निसार खान"।
आज थाने में जो भी घटित हुआ उसने संदीप को शायद अंदर से तोड़ के रख दिया था।
तभी शर्मा जी का व्हाट्सएप पर मैसेज आया "अहसान-फ़रामोश कौम"
संदीप ने ग्रुप एक्सिट करके डिलीट कर दिया।
आनंद किशोर यादव सर को जस्टिफिकेशन लेटर लिखते हुए संदीप के जेहन में एक ही सवाल गूँज रहा था,
"अहसान-फ़रामोश कौन ?"
रचनाकार - अवनेश कुमार गोस्वामी
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