इंकलाब ज़िंदाबाद : भगत सिंह भाग ७


संपादक मार्डन रिव्यु के नाम पत्र - 

भगत सिंह ने अपने विचार स्पष्ट रूप से भारतीय जनता के सामने रखें। उनके विचार में क्रांति की तलवार विचारों की धार से ही तेज होती हैं। वह विचारधारा आत्मक क्रांतिकारी हालात के लिए संघर्ष कर रहे थे। अपने विचारों पर हुए सभी वीरों का उन्होंने तर्कपूर्ण उत्तर दिया। यह वार अंग्रेजी सरकार की ओर से किए गए या देसी नेताओं की ओर से अखबारों में।
शहीद यतींद्र नाथ दास 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद शहीद हुए। 'मॉडर्न रिव्यू ' के संपादक रामानंद चट्टोपाध्याय ने उनकी शहादत के बाद भारतीय जनता द्वारा शहीद के प्रति किए गए सम्मान और उनके  ' इंकलाब जिंदाबाद ' के नारे की आलोचना की। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने मॉडर्न रिव्यू के संपादक को उनके उस संपाठ संपादकीय का निम्नलिखित उत्तर दिया था।

श्री सम्पादक जी ,
मार्डन रिव्यू 

आपने अपने सम्मानित पत्र के दिसंबर , 1929 के अंक में एक टिप्पणी 'इंकलाब जिंदाबाद ' शीर्षक से लिखी है और इस नारे को निरर्थक ठहराने की चेष्टा की है। आप सरीखे के परिपक्व विचारक तथा अनुभवी और यशस्वी पर संपादक की रचना में दोष निकालना तथा उसका प्रतिवाद करना ,जिसे  प्रत्येक भारतीय सम्मान की दृष्टि से देखता है, हमारे लिए एक बड़ी धृष्टता होगी ।तो भी इस प्रश्न का उत्तर देना हम अपना करती अब समझते हैं कि इस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है।
या आवश्यक है क्योंकि इस देश में इस समय इस नारे को सब लोगों तक पहुंचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया है। इस नारे की रचना हमें नहीं की है। यही नारा रूस के क्रांतिकारी आंदोलन में प्रयोग किया गया है। प्रसिद्ध समाजवादी लेखक अष्टन सिकलेयर ने अपने उपन्यासों ' बोस्टन ' और   ' आईल में यही नारा कुछ और अराजकतावादी वादी क्रांतिकारी पात्रों के मुख से प्रयोग कराया है। इसका अर्थ क्या है इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि सशस्त्र संघर्ष सदैव जारी रहे और कोई भी व्यवस्था अल्प समय के लिए भी स्थाई ना रह सके। दूसरे शब्दों में देश और समाज में अराजकता फैली हैं।
दीर्घकाल से प्रयोग में आने के कारण इस नारे को एक ऐसे विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है, जो संभव है कि भाषा के नियमों एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्क सम्मत रूप में सिद्ध ना हो पाए ,परंतु इसके साथ ही इस नारे से उन विचारों को पृथक नहीं किया जा सकता जो इसके साथ जुड़े हुए हैं ।ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीकृति अर्थ के द्योतक है जो एक सीमा तक उनमें उत्पन्न हो गए हैं तथा एक सीमा तक उनमें निहित है।
उदाहरण के लिए हम यतींद्र नाथ जिंदाबाद का नारा लगाते हैं। इससे हमारा तात्पर्य क्या होता है कि उनके जीवन के महान आदर्शों तथा उसका उत्साह को सदा सदा के लिए बनाए रखें जिसने इस महानतम बलिदानी को उस आदर्श के लिए अकथ ने कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी। या नारा लगाने से हमारी या लालसा प्रकट होती है कि हम भी अपने आदर्शों के लिए अचूक उत्साह को अपनाएं। यही वह भावना है जिसके हम प्रशंसा करते हैं। इसी प्रकार इन क्लब शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए। इस शब्द का उचित एवं अनुचित प्रयोग करने वाले लोगों के हितों के आधार पर इसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न विशेषताएं जोड़ी जाती है। क्रांतिकारियों की दृष्टि में यह एक पवित्र वाक्य है। हमने इस बात को ट्रिब्यूनल के सम्मुख अपने वक्तव्य ने स्पष्ट करने का प्रयास किया था।
इस वक्तव्य मैं हमने कहा था कि क्रांति इंकलाब का अर्थ अनिवार्य रूप से सहस्त्र आंदोलन नहीं होता। बम और पिस्तौल कभी-कभी क्रांति को सफल बनाने के साधन मात्र हो सकते हैं। इसमें भी संदेह नहीं है कि कुछ आंदोलनों में बम एवं पिस्तौल एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध होते हैं , परंतु केवल इसी कारण से बम और पिस्तौल क्रांति के पर्यायवाची नहीं हो जाते। विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता यद्यपि हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो ।
एक वाक्य में क्रांति शब्द  का अर्थ 'प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांक्षा ' है। लोग साधारणतया जीवन की परंपरागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार से ही कांपने लगते हैं। यही एक अकर्मण्यता की भावना है , जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जागृत करने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता है और रूढ़िवादी शक्तियां मानव समाज को कुमार्ग पर ले जाती हैं। यही परिस्थितियां मानव समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण बन जाते हैं।
क्रांति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थाई तौर पर ओतप्रोत रहनी चाहिए, जिससे कि रूढ़िवादी शक्तियां मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिए संगठित ना हो सके। यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव न  रहे और वह नई व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि एक आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सकें। यह है हमारा अभिप्राय जिसको हृदय में रखकर हम  ' 'इंकलाब जिंदाबाद '  का नारा ऊंचा करते हैं।

भगत सिंह, बी.के .दत्त 
22 दिसंबर ,1929 

क्रमशः 

गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार

Comments

Popular posts from this blog

अग्निवीर बन बैठे अपने ही पथ के अंगारे

अग्निवीर

अग्निवीर ( सैनिक वही जो माने देश सर्वोपरि) भाग- ४