मिठास का नगर शाहजहांपुर
कुछ स्थान और जगह अपने भीतर इतना कुछ समेटे होते हैं ,कि परतें खुलने पर उसकी सुगंध चारों और फैलने सी लगती है।
ऐसी प्रतिष्ठित जगहों पर जो कभी हो आया तो वहां के मोहपास में ऐसा बंध जाता है कि और लोगों को भी अपनी ओर खींचने को लालायित रहता है ।
दो दो नदियों के बीच लंबाई में बसा शहर,प्राकर्तिक सौन्दर्य से सुसज्जित, शाहजहाँपुर हिंदू मुस्लिम कीे साझा संस्कृति की मिठास को अपनी मिठास में पिरोए , वैदिक काल से लेकर वर्तमान समय की वस्तु स्थिति को सजीव करता हुआ प्रतीत होता है ।
इस जिले की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि सदैव ही चर्चा में रही है भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1857 से लेकर 1925 के काकोरी कांड तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक इस नगर की प्रमुख भूमिका रही है ।
शाहजहाँपुर को शहीदों की नगरी के नाम से भी जाना जाता है ।इस नगर ने देश के स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपने तीन सपूतों को भेंट स्वरूप प्रदान किया है ।
जब-जब इतिहास में स्वतंत्रता संग्राम को पढ़ा जाएगा स्वर्ण अक्षरों में लिखित तीनों शहीदों के नाम कोहिनूर की तरह दीप्तमान रहेंगे ।
राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खां, रोशन सिंह क्रान्तिकारियों के जन्म लेने से पवित्र और उनके बचपन की अठखेलियां को उद्घोषित करता पवित्र नगर अपने को धन्य समझता होगा।
बचपन में सुना करते थे, इस नगर को शाहजहां के मंत्री बहादुर शाह ने बसाया था ,उसी की याद में बना हुआ है बहादुर गंज बाजार के बीच में मकबरा ,जिस पर सब्जी वालों का कब्जा होने के कारण अपने इतिहास को धूमिल कर चुका है ।
शाहजहांपुर ने बंटवारे के दंश को झेला है ,शाहजहांपुर में बहुत सी पुरानी हवेलियां और कोठियां हैं ,जो अपने भव्य इतिहास की गवाह हैं।
आधुनिकता की आड़ में भव्य हवेलियां अपना इतिहास और भव्यता खो चुकी हैं ,पर कहीं कहीं उनके अंश आज भी अपनी भव्यता की घोषणा करते नजर आते हैं। बहादुरगंज के बीचोंबीच एक खग्गालाल का महल होता था ,जिसके नीचे बहुत बड़ा बाजार वगैरह भी होता था बारिसों के द्वारा बिकते बिकते अपने नामोनिशान को खो चुका है ।
छोटे खान का बाग तो इतना बड़ा है उसमें फैली हुई बड़ी बड़ी दुकान,उसकी विशालता को बताती हैं ।
जली कोठी के नाम से विख्यात घंटाघर में उसमें असंख्य दुकाने उसकी विशालता को बताती है ।
खग्गालाल के महल के निकट कुछ मकानों में उस समय की स्थापत्य कला का अंश अभी भी दिखाई दे जाता है, आधुनिकता की आड़ लेकर स्थापत्य कला को धूमिल किया जा रहा है ।
उस्मान बाग मोहल्ले में इतनी सुंदर और बड़ी बड़ी हवेलियां हैं ,जो अपने जमाने की स्थापत्य कला का प्रमाण है ,पर उसमें रहने वाले आधुनिकता की आड़ लेकर उसके स्वरूप को मिश्रित ना कर दे ,उससे पहले उनके संरक्षण की तरफ ध्यान देना चाहिए।
बड़ी-बड़ी कोठियों में दुकानें खुली हुई है और लोग अपनी सुविधा अनुसार उसमें निर्माण कराते रहते हैं ।
हमारे अतीत की धरोहर को धूमिल होने से पहले संभालना और सहेजना होगा ।
शाहजहांपुर का कालीन उद्योग इतना विस्तृत और प्रसिद्ध है और जिसकी विदेशों में भी मांग होती है। यहां जरी का काम होते देखना आंखों को बहुत सुखद लगता है दिल्ली की बड़ी-बड़ी दुकानों का जरी का काम शाहजहांपुर से होकर आता है ।इतना बारीक काम बुनकरी का ,कारीगरों के अंगुलियो के हुनर को दर्शाता है।
छोटे चौक और सदर बाजार का सर्राफा बाजार भी अपनी गुणवत्ता और चमक से आकर्षित करता है ।
शिक्षा के क्षेत्र में भी यह शहर अग्रणी है ,शहर के गांधी फैजाम डिग्री कॉलेज और स्वामी शुकदेवानंद महाविद्यालय के अनेकों छात्र अपनी योग्यता का परचम देश-विदेश में फहरा रहे हैं ।
शाहजहाँपुर को रंगकर्मियों की तीर्थस्थली कहना गलत न होगा ।टाउनहाल से संयुक्त गांधी प्रेक्षागृह में सभी रंगकर्मियों को अपने अभिनय की धार दर्शकों की तालियों की गडगडाहट में जॉचतें हुए देखा जा सकता है ।
खाने-पीने के शौकीनों के इस नगर में सुबह के नाश्ते में गरमा गरम जलेबी दही के साथ खाना पहली पसंद है और शाम को हर गली के नुक्कड़ वाली दुकान पर गर्मागर्म समोसे ,कचोरी के लिए खड़े लोग अपने स्वाद की लालसा को स्वयं ही बखान करते प्रतीत होते हैं।
शाहजहांपुर के सदर बाजार में स्थित चूड़ी बाजार अपनी रंग बिरंगी और बेशकीमती डिजाइन वाली चूड़ियों से महिलाओं को आकर्षित करते हुए बाजार का जिक्र करे बिना शाहजहांपुर की बात अधूरी सी लगती है ।
शाहजहांपुर के दुकानदारों व ग्राहकों का जो अजीब सौहार्द पूर्ण व्यवहार है ,वह अन्यत्र देखने में दुर्लभ है।
अपने ग्राहकों का अपने सह्रदय की तरह इंतजार करते हुए दुकानदार अपनी मिठास का अद्भुत परिचय देते हैं।
बहुत जगह घूमने का और वहां के मिष्ठान्न चखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ ,पर सदर बाजार में स्थित तिलहर मिष्ठान्न भण्डार की लौज का स्वाद, मिठाई का नाम लेते ही मुंह में स्वाद आ जाए , और तिलहर मिष्ठान भंडार की ही देसी घी से निर्मित सोनपापड़ी का स्वाद ऐसा कि उसको खाने के बाद भविष्य में जब भी आप सोनपापड़ी खाएंगे तो ऐसा हो नहीं सकता ,कि सोनपापड़ी का स्वाद आपको याद ना आए, और मीठे के शौकीन भी तेज मसालेदार होने पर भी उस दुकान की देसी घी की दालमोठ मिर्च लगने पर भी ,आंखों में पानी आ जाए पर नमकीन से मन नहीं भरता ,इसी दुकान से आगे बढ़कर निशात मार्केट में गायत्री व शक्ति मिष्ठान भंडार की रबड़ी और कुल्फी गजब की मिठास लिए हुए आमंत्रित करती है ।
शाहजहांनपुर के पुराने मोहल्ला केरूगज का खोये (मावा) का थोक बाजार विशेष आकर्षण का क्षेत्र है। हलवाई की दुकान पर सुबह के समय दूध से भरे गिलास में डूबी हुई जलेबियां एक नया स्वाद बखान करती हैं और वहां के लोगों के स्वाद प्रेमी होने से साक्षात्कार करवाती हैं।
बहुत सुन्दर शहर सौहार्द और धरोहरों की छाव में सिमटा शहर सच में बहुत सुन्दर है ।
जया शर्मा प्रियंवदा
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