दुनिया के रंग भाग ५४ - धनराशि बनाम प्रेम


  अगर धन दौलत की बात की जाये तो शिवानी के घर बालों की हैसियत कहीं से भी दयानाथ के घर के बराबर न थी। जहाँ दयानाथ के पिता एक उच्च व्यवसायी थे। वहीं शिवानी के पिता एक बैंक में क्लर्क। उचित तो यही था कि वह खुद सामाजिक असमानता को समझते और शिवानी को भी समझाते। पर ऐसा नहीं हुआ। शिवानी ने दयानाथ को अपने रूप का दिवाना बना लिया तो परिवार में भी खुशियों के राग गूंजने लगे। वैसे दयानाथ के घर बाले आरंभ में इस रिश्ते के लिये राजी न थे। पर बेटे की जिद के आगे परिवार को झुकना पड़ा। कहा जा सकता है कि रईसी और गरीबी के भेद को मिटा प्रेम ने अपना लक्ष्य पा लिया।

  पर लगता है कि ऐसा नहीं हुआ। विवाह के दौरान भी अनेकों बार ऐसी स्थिति आयीं कि शिवानी के माता पिता को अपमान का घूंट पीना पड़ा। फिर दयानाथ के माता पिता का कथन गलत भी तो नहीं था। अपना सर्वश्व लूटाकर भी शिवानी के माता पिता इतने बड़े लोगों का स्वागत सत्कार कर पाने में भी असमर्थ थे। बड़े लोगों की बराबरी सामान्य लोग नहीं कर सकते। 

   शिवानी के माता पिता ने दयानाथ के लिये सोने की अंगूठी और चेन भेंट की। सभी बरातियों को भी यथायोग्य विदाई दी। पर दयानाथ की तरफ से आयी भेंटों के सामने वह कुछ भी न था। शिवानी के सगे भाई बहनों के लिये तो बहुमूल्य भेंट आये भी थे। जूता चुराई की रस्म के समय भी सगी और रिश्ते की सारी सालियों को जमकर भेंट दी गयी। चारों तरफ धनी जीजाजी की गूंज हो रही थी। हालांकि इन सबमें वास्तविक प्रेम न था। प्रदर्शन की अधिक मंशा थी। जताया जा रहा था कि शिवानी को अपनाकर मध्यम वर्गीय परिवार पर अहसान कर रहे हैं। 

   भोजन के समय वैसे तो अनेकों तरीके के व्यंजन तैयार थे। पर धनियों की बारात में आये बच्चे भी अपने पसंद के व्यंजन न मिलने की शिकायत कर रहे थे। जिन्हें बड़े यही समझा रहे थे कि गरीबों की शादी में सारे व्यंजन नहीं मिल पाते। जो अच्छा दिखे, वही खा लो। अब तुम्हारी चाची जरा गरीब घर से हैं। 

  हालांकि अभी तक शिवानी भी इसे बड़े परिवार की महानता ही समझ रही थी। आखिर बड़े लोगों के रुतबे बड़े ही होते हैं। 

  पर विवाह के बाद भी उसे बार बार उलाहना देना जारी रहा। बार बार शिवानी को अहसास दिलाया जाता रहा कि वास्तव में उसपर अहसान ही किया गया है। 

जिस चकाचौंध के लोभ में उसने प्रवेश को भी धोखा दिया था, नजदीक से देखने पर वह चकाचौंध आंखों की किरकिरी बनने लगी। वैसे समय हर जख्म का इलाज कर देता है। पर शिवानी के मामले में जख्म समय के साथ बढता गया। जबकि दयानाथ भी उसकी उपेक्षा करने लगा। 

  अब शिवानी की स्थिति घर में किसी नौकरानी से अधिक नहीं थी। वैसे अपने घर में काम करने में कोई बुराई भी नहीं है। पर बात बराबरी की आती है। जबकि घर की कोई भी बहू घर का कोई काम नहीं करती तो केवल उससे घर के काम के लिये बोलना निश्चित ही उसकी अवहेलना ही है। 

   अच्छी या बुरी बात थी कि शिवानी विरोध करना भी जानती थी। विरोध करने से स्थितियां सुधर जाती हैं अथवा बिगड़ भी जाती हैं। स्थितियों को सुधारने के लिये किया गया विरोध स्थितियों को बिगड़ता गया। शिवानी और दयानाथ के मध्य दूरियां बढती गयीं। झूठे प्रेम की नींव पर तैयार रिश्ते की इमारत खोखली होती गयी। फिर यकायक गिर गयी। 

  बड़े लोगों के खिलाफ कभी भी कोई नहीं बोलता है। वैसे भी शिवानी के प्रति किसी ने क्या अत्याचार किया था। घर के काम काज के लिये बोलना कौन सा अत्याचार है। वैसे काम भी क्या करना है। सारे काम तो नौकर ही करते हैं। बस घर का खाना बनाने के लिये ही बोला था। निश्चित ही जब परिवार की स्त्रियां भोजन बनाती हैं तो परिवार में प्रेम रहता है। 

   वास्तव में छोटे लोगों की सोच ही छोटी है। अगर किसी साधारण परिवार में विवाह होता तब मालूम होता कि घर का काम क्या होता है। 

   समाज के मुख को बंद करना कब आसान है। कुछ के हिसाब से यह शिवानी के माता पिता की ही क्षुद्रता है। वे ही नहीं चाहते कि बेटी का घर बसे। संबंध बिच्छेद के नाम पर एक धनी परिवार से अच्छी खासी धनराशि मिल जायेगी। सत्य ही कहा है कि कलयुग में मनुष्य अपनी बेटी को बेचकर भी आय करेगें। यह भी उसी का एक प्रकार है। 

   वैसे भी शिवानी का दयानाथ से विवाह परिवार की इच्छा के विपरीत हुआ था। अब उनके लिये अच्छा मौका था। वे तो एकमुश्त अच्छी राशि देकर जल्द मामले को समाप्त करना चाहते थे। अनेकों तरीकों से दबाब बढाया जा रहा था। 

   निश्चित ही शिवानी का हसता खेलता घर मिट जाता। प्रवेश को धोखा देने का दंड उसे इस संसार में ही मिल जाता। पर ऐसा नहीं हुआ। एक दिन सारे समीकरण बदल गये। दयानाथ शिवानी को लेने आ गया। पर अब वह शिवानी को अपने घर वापस लेकर नहीं जायेगा। पारिवारिक व्यापार को त्याग वह दूर एक नौकरी करेगा। शिवानी को वह अपने साथ रखेगा। तथा शिवानी को उसकी आय में ही संतुष्ट होना होगा। 

  जिन सपनों की खातिर उसने दयानाथ से प्रेम का दिखावा किया था, निश्चित ही शिवानी के वे सपने पूरे नहीं होंगें। यदि अनेकों ऐशोआराम पर ठोकर मार अपने प्रेम को अपनाना प्रेम ही है तो संभवतः दयानाथ का प्रेम शिवानी के प्रेम से अधिक व्यापक था। 

  पर क्या शिवानी के मन में भी दयानाथ के लिये वही प्रेम आ सकता है। इस समय उसके पास दो तरीके हैं। या तो दयानाथ से संबंध बिच्छेद कर मिली राशि से अपने सपने पूरे करे। अथवा दयानाथ के प्रेम को स्वीकार कर सामान्य तरीके से अपना जीवन गुजार दे। 

  यही मन की विकलता है। अक्सर मन सही राह को समझ नहीं पाता। अक्सर उसे गलत और सही का विवेक नहीं होता। 

   शायद यह ईश्वर की कृपा ही थी कि अनेकों वर्षों से प्रेम को खिलबाड़ समझती आयी शिवानी इस बार प्रेम को नजरअंदाज नहीं कर पायी। दयानाथ के साथ सामान्य तरीके से जीवन जीने को चल दी। 

क्रमशः अगले भाग में
दिवा शंकर सारस्वत 'प्रशांत'

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