अंगों का व्यापार
मानवता की हद सारी यह पार करने लगा
अरे अब तो यह अंगों का व्यापार करने लगा
विद्या बुद्धि बल को शर्मसार करने लगा
मानवहोके मानव का संहार करने लगा
धरती का भगवान मानकर पूजा जिसे है जाता
जीवन उसके हाथ सौंपते जिससे ना कोई नाता
वह भी जान बचाने में है पूरी जान लगाता
खुशियां देता है सबको तो दुगनी खुशियां पाता
फिर भी कुछ मक्कारों को यह जीवन नहीं है भाता
पैसों का लालच उनसे यह गलत काम करवाता
अंग तस्करों से मिलकर वह दानव फिर बन जाता
अपने कौशल को फिर वह बद नीयति में है लगाता
करते हैं खिलवाड़ जान से जो चंगुल में आता
तब मरीज की जान से उसका रह जाता ना नाता
तस्कर गैंग में शामिल होकर जेबे भारी करने लगा
अरे अब तो यह अंगों का व्यापार करने लगा
प्रीति मनीष दुबे
. मण्डला मप्र
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