इंकलाब ज़िंदाबाद : भगत सिंह भाग ८
लेलिन मृत्यु वार्षिकी पर तार -
21 जनवरी 1930 को लाहौर षड्यंत्र केस के सभी अभियुक्त अदालत में लाल रुमाल बांधकर उपस्थित हुए। जैसे ही मजिस्ट्रेट ने अपना आसन ग्रहण किया उन्होंने "समाजवादी क्रांति जिंदाबाद" , "कम्युनिस्ट इंटरनेशनल जिंदाबाद" "जनता जिंदाबाद ," " लेनिन का नाम अमर रहेगा ",और "समाजवाद का नाश हो" के नारे लगाए। इसके बाद भगत सिंह ने अदालत में तार का मजमून पढ़ा और मजिस्ट्रेट से इसे तीसरी इंटरनेशनल को भिजवाने का आग्रह किया।
लर्निंग दिवस के अवसर पर हम उन सभी को हार्दिक अभिनंदन भेजते हैं जो महान नलिन के आदर्शों को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भी कर रहे हैं। हम रूस द्वारा किए जा रहे हैं महान प्रयोग की सफलता की कामना करते हैं। सर्वहारा विजई होगा। पूंजीवाद पराजित होगा। साम्राज्यवाद की मौत होगी।
पिताजी के नाम पत्र -
30 सितंबर 1930 को भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह ने ट्रिब्यूनल को एक अर्जी देकर बचाओ पेश करने के लिए अवसर की मांग की। सरदार किशन सिंह सेम देश भक्ति और राष्ट्रीय आंदोलन में जेल जाते रहते थे।उन्हें वह कुछ अन्य देशभक्तों को लगता था कि शायद बचाव पक्ष पेश कर भगत सिंह को फांसी के संदेश से बचाया जा सकता है लेकिन भगत सिंह और उनके साथी बिल्कुल अलग नीति पर चल रहे थे। उनके अनुसार ब्रिटिश सरकार बदला लेने की नीति पर चल रही है वह न सिर्फ ढकोसला है। किसी भी तरीके से उसे सजा देने से रोका नहीं जा सकता। उन्हें लगता था कि यदि इस मामले में कमजोरी दिखाई गई तो जन जनता में अंकुरित हुआ क्रांति बीज स्थित नहीं हो पाएगा। पिता द्वारा दी गई अर्जी से भगत सिंह की भावनाओं को भी चोट लगी थी लेकिन अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर अपने सिद्धांतों पर जोर देते हुए उन्होंने 4 अक्टूबर 1930 को एक पत्र लिखा जो उनके पिता को देर से मिला। 7 अक्टूबर 1930 को मुकदमे का फैसला सुना दिया गया।
4 अक्टूबर 1930
पूज्य पिताजी
मुझे यह जानकर हैरानी हुई कि आपने मेरे बचाव पक्ष के लिए स्पेशल क्रिमिनल को एक आवेदन भेजा है। यह खबर इतनी यात्रा में थी कि मैं इसे खामोशी से बर्दाश्त नहीं कर सका। इस खबर ने मेरे भीतर की शांति भंग कर उधर पुथल मचा दी है। मैं यही नहीं समझ सकता कि वर्तमान स्थितियों में और इस मामले में आप किस तरह का आवेदन दे सकते हैं?
आपका पुत्र होने के नाते मैं आप के पैतृक भावनाओं और इच्छाओं का पूरा सम्मान करता हूं लेकिन इसके बावजूद मैं समझता हूं कि आपको मेरे साथ सलाह मशविरा किए बिना ऐसे आवेदन देने का कोई अधिकार नहीं था। आप जानते थे कि राजनैतिक क्षेत्र में मेरे विचार आप से काफी अलग हैं। मैं आपकी सहमति या असहमति का ख्याल किए बिना सदा स्वतंत्रता पूर्वक काम करता रहा हूं।
मुझे यकीन है कि आपको यह बात याद होगी कि आप आरंभ से ही मुझसे यह बात मनवा लेने की कोशिश करते रहे हैं कि मैं अपना मुकदमा संजीदगी से लडू और अपना बचाव ठीक से प्रस्तुत करूंगा लेकिन आपको यह भी मालूम है कि मैं सदा इसका विरोध करता रहा हूं ।मैंने कभी भी अपना बचाव करने की इच्छा प्रकट नहीं की और ना ही मैंने कभी इस पर संजीदगी से गौर किया है।
आप जानते हैं कि हम एक निश्चित नीति के अनुसार मुकदमा लड़ रहे हैं। मेरा हर कदम इस नीति मेरे सिद्धांतों और हमारे कार्यक्रम के अनुरूप होना चाहिए। आज स्थितियां बिल्कुल अलग हैं। लेकिन अगर स्थितियां इससे कुछ और भी अलग होती तो भी मैं अंतिम व्यक्ति होता जो बच्चों प्रस्तुत करता ।इस पूरे मुकदमे में मेरे सामने एक ही विचार था और वह यह कि हमारे विरुद्ध जो संगीन आरोप लगाए गए हैं बावजूद उनके हम पूर्णतया इस संबंध में अभिना का व्यवहार करें। मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनैतिक कार्यकर्ताओं को ऐसी स्थितियों में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो भी कठोरतम सजा दी जाए वह उन्हें हंसते-हंसते बर्दाश्त करनी चाहिए। इस पूरे मुकदमे के दौरान हमारी योजना इसी सिद्धांत के अनुरूप रही हैं। हम ऐसा करने में सफल हुए या नहीं यह फैसला करना मेरा काम नहीं। हम खुदगर्जी को त्याग कर अपना काम कर रहे हैं।
वायसराय ने लाहौर साजिश के ऑर्डिनेंस जारी करते हुए इसके साथ जो वक्तव्य दिया था ,उसमें उन्होंने कहा था कि इस साजिश के मुजरिम शांति व्यवस्था को समाप्त करने के प्रयास कर रहे हैं। इससे जो हालात पैदा हुए उनमें हमें यह मौका दिया कि हम जनता के समस्या बाद प्रस्तुत करें कि वह स्वयं देख ले कि शांति व्यवस्था एवं कानून समाप्त करने की कोशिशें हम कर रहे हैं या हमारे विरोधी? इस बात पर मतभेद हो सकता है। शायद आप भी उनमें से एक हो जो इस बात पर मतभेद रखते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप मुझसे सलाह किए बिना मेरी ओर से ऐसे कदम उठाएं। मेरी जिंदगी इतनी कीमती नहीं जितनी कि आप सोचते हैं। कम से कम मेरे लिए तो इस जीवन की इतनी कीमत नहीं कि इसे सिद्धांतों को कुर्बान कर के बचाया जाए। मेरे अलावा मेरी और साथी भी हैं जिनके मुकदमे इतने ही संगीन है जितना कि मेरा मुकदमा। हमने एक और संयुक्त योजना बनाई है और उस योजना पर हम अंतिम समय तक डटे रहेंगे। हमें इस बात की कोई परवाह नहीं की हमें व्यक्तिगत रूप में इस बात के लिए कितना मूल्य चुकाना पड़ेगा।
पिता जी मैं बहुत दुख अनुभव कर रहा हूं। मुझे वह है आप पर दोषारोपण करते हुए या इससे बढ़कर आपके इस काम की निंदा करते हुए मैं कहीं सभ्यता की सीमाएं ना लांग जाऊं और मेरे शब्द ज्यादा सख्त ना हो जाए। लेकिन मैं स्पष्ट शब्दों में अपनी बात अवश्य कहूंगा। यदि कोई अन्य व्यक्ति मुझसे ऐसा व्यवहार करता तो मैं इसे गद्दारी से कम नहीं मानता, लेकिन आप के संदर्भ में मैं इतना ही कहूंगा कि यह कमजोरी है- निचले स्तर की कमजोरी।
यह एक ऐसा समय था जब हम सब का इम्तिहान हो रहा था। मैं यह कहना चाहता हूं कि आप इस इंतिहान मेक नाकाम रहे हैं। मैं जानता हूं कि आप भी इतने ही देश प्रेमी है जितना कि कोई और व्यक्ति हो सकता है। मैं जानता हूं कि आपने अपनी पूरी जिंदगी भारत की आजादी के लिए लगा दी है लेकिन इस अहम मोड़ पर आपने ऐसी कमजोरी दिखाइए बाद में समझ नहीं सकता।
अंत में मैं आपसे आपके अन्य मित्रों एवं मेरे मुकदमे में दिलचस्पी लेने वाले से यह कहना चाहता हूं कि मैं आपके इस कदम को नापसंद करता हूं। मैं आज भी अदालत में अपना कोई बचा प्रस्तुत करने के पक्ष में नहीं हूं। अगर अदालत हमारे कुछ साथियों की ओर से स्पष्टीकरण आदि के लिए प्रस्तुत किए गए आवेदन को मंजूर कर लेती तो भी मैं कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत ना करता।
भूख हड़ताल के दिनों में ट्रिब्यूनल को जो आवेदन पत्र मैंने दिया था, और उन दिनों में जो साक्षात्कार दिया था उन्हें गलत अर्थों में समझा गया और अखबारों में प्रकाशित कर दिया गया कि मैं अपना स्पष्टीकरण प्रस्तुत करना चाहता हूं ,हालांकि मैं हमेशा स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के विरोध में रहा। आज भी मेरी वही मान्यता है जो उस समय थी ।
बोटल जेल में बंदी मेरे साथ ही इस बात को मेरी ओर से गद्दारी और विश्वासघात ही समझ रहे होंगे। मुझे उनके सामने अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर भी नहीं मिल सकेगा।
मैं चाहूंगा कि इस संबंध में जो उलझने पैदा हो गई हैं उनके विषय में जनता को असलियत का पता चल जाए। इसलिए मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप जल्द से जल्द या चिट्ठी प्रकाशित कर दे।
आपका आज्ञाकारी
भगत सिंह
क्रमशः
गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार
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