रोबोट
ना रिश्ते ना जज्बात ना अपना पन न एहसास
ना शिकवे ना शिकायते ना अपनी सी कोई बात
ना रूठना ना मनाना ना सुनना ना सुनाना
ना अपनी कहना ना किसी से कह लाना
दिल गमो से लबरेज हो तो भी सब सह जाना
आंखों में आंसुओं का समंदर लेकर
बड़ी खूबसूरती से छुपाना
दर्द का सैलाब आंसू बनकर ही बहता है
उस दर्द को छिपाकर होले से मुस्कुराना
क्या कहें किसी मशीन की मानिंद हो गई यह जिंदगी
दिखावे की दुनिया में खो गई है जिंदगी
जब तक समझ पाते और समझा पाते
इस भरी भीड़ का हिस्सा हो गई जिंदगी
क्या पता कैसे हुआ क्यों हुआ और कब हुआ
सच कहें प्रीति तो रोबोट सी हो गई जिंदगी
प्रीतिमनीष दुबे
मण्डला मप्र
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