अनेकता में एकता
आओ हम सब मिल भारत देश सजाएं,
एक-एक फूल पिरोकर माला एक बनाएं।
धर्म अलग हैं, जाति अलग हैं, अलग है वेशभूषा ,
पर जुड़े हुए हैं एक लड़ी में, जैसे हों गुलदस्ता।
चाहे रहें कहीं भी, चाहे करें काम कोई भी,
हो जाते हैं एक तभी, आए विपदा कोई भी।
मॉं के लिए बराबर सब जो जन्मा इस धरती पे,
पालन करती हैं, सभी का एक ही नज़र से।
रखना होगा हमको भारत मॉं का मान यहॉं,
पूरे विश्व में पहचान हमारी तभी बनेगी नेक यहॉं।
है सदियों की जो परंपरा उसका ध्यान रखें,
माला टूट ना जाए इसका सतत प्रयास करें।
पंजाबी, मद्रासी हों या गुजराती, बंगाली,
चाहे हों मराठी, मारवाड़ी,या हों काश्मीरी।
रहना होगा एक हमें, हाथों में हाथ डालकर यहॉं,
लालच और स्वार्थ में पड़कर भूल ना जाएं एकता।
विश्व में होगा नाम हमारा करेंगे सब सम्मान हमारा
वसुधैव कुटुंबकम् की परंपरा बनी रहेगी सदा।
©मनीषा अग्रवाल
इंदौर मध्यप्रदेश
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