"शहर"
शोर में भी मौन यह शहर,
अपनों में अजनबी यह शहर,
रोशनी से चौंधिया देती आंखें,
मन के अंधेरों से घिरा यह शहर।
किसी रिश्तों में मिठास नहीं है,
अपनेपन का एहसास नहीं है,
मेले में ढूंढ रहा हर कोई अपना,
भीड़ में भी तन्हा यह शहर।
बढ़ रही दूरियां, छूट रहे अपने,
सब लगे हैं पूरा करने में सपने,
नहीं किसी को किसी की परवा,
अपनों में ढूंढे अपना यह शहर।
कईं मुखौटे अपने चेहरे पर लगाएं,
खुद से ही अपनी पहचान छुपाए,
तलाश रहा मन का कोई कोना,
क्षणभर तो ठहरे भागता यह शहर।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार
Comments
Post a Comment