"रोबोट"




मानव भी अब धीरे-धीरे,
बन रहा है एक रोबोट सा,
भाव से हीन संवेदनाशून्य,
जी रहा है जैसे किसी यंत्र सा।

बातें खो गई, एहसास सो गये,
खुद की दुनिया में सिमट सब गए,
रोबोट की तरह कर रहे अनुकरण,
चलता-फिरता मशीनी तंत्र सा।

हंसने के भी बहाने ढूंढ रहे हैं,
पर पीड़ा से नजरे चुरा रहे हैं,
बन रहे खिलौना अपने हाथों के,
बनता जा रहा मन परतंत्र सा।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार

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