सन्नाटा
सिन्हा साहब के अचानक स्वर्गवास हो जाने पर सबके मुंह से यही निकला,--क्या होगा मिसेस सिन्हा का। कितनी पटती थी मियां बीबी में...अच्छे खासे स्वस्थ थे सिन्हाजी... क्या शानदार व्यक्तित्व के मालिक।कैसी सुंदर जोड़ी थी दोनो की।सुनते है उस ज़माने में प्रेम विवाह किया था..लोग आपस मे बात कर रहे थे.।महिलाये दुख के साथ धीमे धीमे बतिया रही थी..कैसी लगेगी बिना साज श्रृंगार के कामिनी... महिलाओ में ज़्यादा कानाफूसी इसी बात की हो रही थी,उच्च शिक्षा प्राप्त कामिनी,।पहनने ओढ़ने की बेहद शौक़ीन थी।,सुंदर बिछुए से सजे उनके पैर ,।हाथ मे भरी भरी चूड़ियां..माथे पर लाल बिंदी और सजा चटक लाल सिंदूर उनके सांवले रंगत को चमकदार बना देता था।महंगी और सुर्ख रंग की साड़ियां ही उनका पहनावा। हो भी क्यो न सिन्हाजी उच्च अधिकारी तो थे ही,और उन्होंने मिसेस सिन्हा का कभी खर्च को लेकर हाथ भी न पकड़ा था। बिंदास...हँसमुख ,और हाज़िर जवाबी की वजह से किसी भी महफ़िल की जान होती थी कामिनी सिन्हा।56 -57 बरस में भी ऊर्जा से भरपूर..अपनी हाज़िरजवाबी से महफ़िल की जान होती थी..
शुद्धता के दिन घर की महिलाये बेचैन और कामिनी मौन ,एक तरह की चुप्पी धारण किये..घर की सभी महिलाये परेशान कि कैसे हिम्मत करे ,और कहे कामिनी से कि अब सब बदल गया।आखिर उनकी भाभी ने हिम्मत की ,दीदी ये कपड़े बदल लो।अचानक चुप्पी तोड़ कामिनी ने तेज़ स्वर में कहा--मैं ये सब रीति रिवाज नही मानती।उनकी कुछ ही तो निशानियां है जिसके सहारे मैं अपना पूरा जीवन काटूंगी।ये कैसा रिवाज़ कि जाने वाले के साथ उसकी निशानियां भी मिटा दी जाएं।ये सिंदूर,चूड़ियां,बिछुए जो सब उनके नाम के है,मैं उन्हें ज़बरदस्ती अपने से अलग न करूंगी.... कमरे में घोर सन्नाटा छा गया...
श्रद्धा निगम
बाँदा उप
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