आवारा बादल (भाग 17) मिलन


अगले दिन रवि मीना भाभी के घर गया तो देखा कि औरतों की भीड़ लग रही है । शांति ताई ने मौहल्ले की सारी औरतों को सुंदरकांड के पाठ के लिये बुला लिया था । रवि ने अपना सिर पकड़ लिया ।" क्या से क्या हो गया , भाभी , तेरे प्यार में " । इस भीड़ में तो दर्शन भी दुर्लभ हैं भाभी के । अब क्या होगा ?  वह सोचने लगा "भाभी को सुंदरकांड के पाठ वाली बात कहनी ही नहीं चाहिए थी । हो गई ना ऐसी तैसी अब । फ्री फंड में सुंदरकांड का पाठ कराओ और भीड़ में खो जाओ । हुंह !  ईनाम में कुछ भी नहीं । बस, खाना खा जाना । ये भी कोई बात है " ? मीना भाभी पर उसे गुस्सा आने लगा । कैसे निपटें इस समस्या से ? क्या आज भी मिलन संभव नहीं होगा ? रवि का सारा ध्यान उधर चला गया । 
भाभी रवि के मन के भाव ताड़ गई । उसने हलके से मुस्कुराते हुए रवि को अपने पास बुलाने के प्रयोजन से कहा " लाल जी, जरा ये सामान यहां से ले जाकर वहां पर रख देना । थोड़ा भारी है इसलिए मुझसे उठ नहीं रहा है " । 

रवि बेमन से वहां आया "सारी बेगार मुझसे ही करवायेगी क्या" ? उसके मन से हूक सी उठने लगी । रवि की इस हालत पर मीना भाभी को बहुत मजा आ रहा था । लड़कियों की आदत है कि वे अपने प्रेमियों को हद दरजे तक तड़पाती हैं , सताती हैं । लड़के जब तंग आ जाते हैं फिर सबकी भरपाई एक साथ में कर देती हैं । मीना को भी रवि की इस हालत पर हंसी आ रही थी । 

जब रवि मीना के पास आया तो धीरे से मीना ने कहा "ये मुंह क्यों बिगाड़ रखा है ?  जब भगवान ने एक सुंदर सा चेहरा दिया है तो कम से कम उसकी लाज तो रख लो । और इतना गुस्सा क्यों ? रात तो अपनी है ना । आज रात को आ जाना फिर जन्नत का दीदार करा दूंगी" । उसकी आंखें प्रेम की गंगा बहा रही थीं । 
"लेकिन रात में कैसे आऊंगा, भाभी  ?  तुम्हारा दरवाजा तो बंद रहेगा ना" ? 
"उसकी चिंता मत करो । मैं पहले से ही कुंडी खोलकर रखूंगी । तुम तो चुपचाप आकर 'बिल्ली' की हलकी सी आवाज निकाल देना 'म्याऊँ'  । मुझे पता चल जायेगा । फिर मेरे कमरे में आ जाना" । 
"लेकिन मुन्ना जाग गया तो" ? 
"उसकी भी चिंता मत करो । उसका भी कोई जुगाड़ बैठा लूंगी । अब खुश ! ऐ लाल जी , मुस्कुरा दो ना ! यूं ऐसे खिजे खिजे से अच्छे नहीं लगते हो" । 

रवि बुझे मन से मुस्कुराया । वह सोचने लगा कि रात में आते वक्त किसी ने देख लिया तो ? शांति ताई को पता चल गया तो ? मुन्ना जाग गया तो" ? इस चिंता फिकर में था कि इतने में मीना भाभी ने हलके से रवि का हाथ अपने हाथों में ले लिया । रवि को इससे थोड़ा संबल मिला जैसे किसी भूखे आदमी को रोटी का टुकड़ा दिख गया हो और इससे उसे थोड़ी सी आस जग गई थी । वह पाठ का सामान उठाकर बाहर ले आया और सुंदरकांड के पाठ की तैयारियां करने लगा । 

लगभग एक घंटे में सुंदरकांड का पाठ हो गया । सब औरतें बड़ी खुश लग रही थीं । पाठ के बाद सबने रवि को शाबाशी देते हुए कहा "वाह रवि । तू तो बहुत बढिया पाठ सुनाता है । बिल्कुल पंडितों की तरह से । हमें तो पड़ोस में ही एक पंडित मिल गया है । अब तो जब चाहे तब पाठ करवा लिया करेंगे " । 
हां ताई जी , कहकर रवि ने जल्दी से पीछा छुड़ाया । रवि अपने घर जाने लगा तो शांति ताई ने कहा "रवि बेटा, कहाँ जा रहा है ? खाना खाकर जाना बेटा" । 
"नहीं ताईजी, देर हो रही है । मां डांटेगी " । 
"ऐसे कैसे डांटेगी ? इतनी मेहनत से तो पाठ करवाया है । भूखा प्यासा रहा है दिन भर । खाना तो खायेगा ही ना । तो बेटा वहां नही खाकर यहीं खा ले । ये भी तो तेरा ही घर है । मीना ने बड़े चाव से बनाया है , हलवा पूरी । खास तेरी पसंद का । आजा , चल हाथ मुंह धो ले " । 

रवि ने एक नजर मीना को देखा । कितना आग्रह था उसकी आंखों में जैसे कह रही हों "खा लीजिए न । हम भी सुबह से बाट जोह रहे हैं आपकी" । 

मीना की आंखों की भाषा से रवि का दिल पसीज गया । वह खाना खाने बैठ गया । मीना ने हलवा पहले से बना रखा था । अब वह गरम गरम पूरियां देसी घी में तलने लगी । रवि को नरम नरम पूड़ियां बहुत स्वादिष्ट लग रही थीं । मीना के प्यार का स्वाद जो भरा हुआ था हलवा, पूरी और सब्जी में । वह गर्मागर्म पूरियां खाता गया । मीना खिलाती गयी । शांति ताई ने आग्रह पूर्वक हलवा खिलाया । गले तक भर गया था रवि का पेट । अब और गुंजाइश नहीं थी उसके पेट में । खाते खाते रवि थक गया था मगर खिलाते खिलाते मीना नहीं थकी थी । उसकी मुस्कुराहट में, आंखों में गजब का आमंत्रण था । मीना ने जैसे उसे सम्मोहित कर दिया हो । आखिरकार खाना तो खत्म करना ही था , किया । मीना उसके हाथ धुलवाने के लिए एक कोने में रवि को ले गई । चुपके से उसने कह दिया "ग्यारह बजे इंतजार करूंगी" । रवि ने मुस्कान से विदा ली । 

घर पर आते ही मां ने क्लास ले ली । इतनी देर कर दी । खाना ठंडा हो रहा है । मगर रवि ने बता दिया कि उसे जबरदस्ती खाना खिला दिया शांति ताई और मीना भाभी ने । गले तक खिलाया है उन लोगों ने । अब बिल्कुल भी गुंजाइश नहीं है । अब नींद आ रही है । सोने जा रहा हूँ, जगाना मत । मां के जवाब की प्रतीक्षा किये बिना वह अपने कमरे में सोने चला गया । लाइट बंद की और सो गया । 

नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी । रह रहकर मीना भाभी का सुंदर चेहरा उसकी आंखों के सामने आ जाता था । अभी तक तो एक 'किस' तक नहीं किया था उसने मीना भाभी को । क्या आज उसकी मुराद पूरी होने वाली है ? पता नहीं । हां भी उसकी और ना भी उसकी । अपना कुछ नहीं ।  देखते हैं कि भाभी कितना "प्रसाद" देती हैं आज की रात । 

जैसे तैसे करके ग्यारह बजे । पूरे घर में सन्नाटा पसर गया था । मां और बाबूजी दोनों सो गये थे । घर में अंधेरा था । रवि चुपके से उठा और अपने बिस्तर पर दो तीन तकिये ऐसे रखे जैसे कोई सो रहा हो । एक चादर उढ़ाकर वह अपने कमरे से बाहर आ गया । सधे कदमों से दरवाजे तक पहुंचा और बहुत धीमे से सांकल खोलकर दरवाजा खोला फिर बाहर निकला और मीना भाभी के घर पर आ गया । 

दरवाजा बंद था । रवि ने हलके. हाथ से दबाया तो दरवाजा धीरे धीरे खुलने लगा । रवि अंदर दाखिल हो गया और फिर धीरे से दरवाजा बंद कर लिया । रवि ने धीरे से "म्याऊं" की आवाज निकाली । उस घर में भी घुप अंधेरा था । "म्याऊँ" की आवाज सुनकर मीना भाभी अपने कमरे से बाहर आई और अंधेरे में ही उसने रवि को पहचान लिया । इशारे से रवि को अपने पास बुलाया । रवि उसके पास गया । मीना ने रवि का हाथ अपने हाथों में लिया और धीरे से चूम लिया । रवि के पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गयी । मीना ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और रवि से लिपट गई । दोनों बहुत देर तक ऐसे ही लिपटे रहे । रवि ने उसे किस करना चाहा तो मीना ने उसे रोक दिया । "अभी नहीं ना । थोड़ा सा सब्र करो । पूरी रात पड़ी है अभी तो । बाद में करना, जी भरकर करना । आज तो कोई रोकने वाला भी नहीं होगा तुम्हें । मुन्ना भी नहीं है आज तो" मीना कमल के फूल की तरह खिल रही थी । 
"अब सब्र नहीं होता है भाभी । बहुत तरसाया है तुमने । अब तो मन कर रहा है कि ..." 
"क्या" ? 
"कि कि कि" 
"खुलकर कह दो ना । अब शर्म कैसी " ? 
"सच ! बुरा तो नहीं मानोगी ना" ? 
"नहीं, बिल्कुल नहीं" । मीना ने भी अपना हाथ उसके गालों पर फिराते हुये कहा 
"भाभी, आज तो मन कर रहा है कि तुम्हें नीबू सा निचोड़ दूं" 
"धत्त । पहले ही दिन ? इतना तड़प रहे हो मेरे लिए" ? 
"अब क्या बताऊ भाभी कि कितना तड़प रहा हूँ । मन तो कर रहा है कि तुम्हें कच्चा चबा जाऊं । पर ये मुन्ना कहाँ है आज ? कहीं भेज दिया है क्या उसे" ? 
अंधेरे में भाभी की धीमी हंसी की खनक सुनाई दी । "अपनी भाभी के दिमाग की प्रशंसा करो । उसे मां जी के पास सुला दिया है । आज तो हमारे मिलन की रात है ना । फिर उसे कैसे सुलाती अपने पास । अब आ जाओ । मैं भी बहुत देर से इंतजार कर रही हूं तुम्हारा " । 
भाभी ने रवि को धक्का देकर पलंग पर गिरा दिया और खुद भी रवि के ऊपर गिर पड़ी । फिर चला लंबा दौर चुंबन, आलिंगन का । रवि को आज चुंबन का अलग ही मजा आ रहा था । भाभी इस सबके लिए पहले से ही तैयार थी । रवि उतावली करने लगा पर भाभी ने उसे रोक दिया । "आहिस्ता आहिस्ता से । मैं कही भागी जा रही हूं क्या ? रात भी आपकी, मीना भी आपकी । हर काम आनंद पूर्वक करो । चलो मैं सिखाती हूँ । मैं जैसे जैसे बताती जाऊं तुम वैसे वैसे ही करते जाना । क्यों ठीक है ना" मीना ने प्रश्न उछाल दिया । 
"भाभी, जैसे तुम कहोगी वैसा ही करूंगा मैं । बताओ , 
पहले क्या करना है ? 
और भाभी रवि को गाइड करने लगी । कमरे में प्यार का तूफान आया हुआ था जो दो घंटे में सब कुछ बहा ले गया । दोनों निढ़ाल होकर पलंग पर पड़े हुये थे एक दूसरे से चिपके हुये । 

फिर मीना उठी और कपड़े पहनने लगी । रवि को भी कपड़े पहनने के लिए कह दिया मीना ने । रवि कपड़े पहन ही रहा था कि इतने में मुन्ने के रोने की आवाज आई । साथ ही शांति ताई की आवाज "मीना, बेटी, मुन्ना जग गया है , इसे ले जा बेटी और अपने पास सुला ले । कह रहा है कि मम्मी के पास सोऊंगा । आजा, ले जा इसे" 
मीना ने रवि को जल्दी कपड़े पहनने के लिए कहा और वह जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगा । मीना ने उसे किस करके बिदा किया और मुन्ने को लाकर सो गई । 

उधर रवि चुपचाप अपने मकान में आया, दरवाजा बंद किया, कमरे में आया और दरवाजे में कुंडी लगा ली । उसने लाइट जला दी और अचानक चौंक पड़ा वह । सामने आलमारी पर आईना फिक्स था उसमें उसका चेहरा दिख रहा था । उस चेहरे को देखकर वह भी चौंक गया । पूरे चेहरे पर लिपिस्टिक के निशान छपे हुये थे । अबकी बार उसने उन निशानों को देखा और उन लिपिस्टिक के निशानों को अपनी उंगली से छूता और किस कर लेता । उसके होंठ दर्द करने लगे थे , इतनी तेज 'सक' किया था भाभी ने । न जाने कबसे भूखी प्यासी थी वह । उसका चेहरा भाभी के लिए खेल का एक मैदान नजर आया था शायद । भाभी ने खूब बैटिंग की थी उस रात । 

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